ऑल इंडिया ब्लॉगर्स असोसिएशन-यूँ तो चमचा कहकर

Started by Atul Kaviraje, February 19, 2023, 10:36:23 PM

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Atul Kaviraje

                             "ऑल इंडिया ब्लॉगर्स असोसिएशन"
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मित्रो,

     आज सुनते है, "ऑल इंडिया ब्लॉगर्स असोसिएशन" इस ब्लॉग के अंतर्गत, एक लेख/कविता.

                                   यूँ तो चमचा कहकर--
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यूँ तो चमचा कहकर,
हर कोई चमचे का मजाक उडा देता है,
पर वो क्या जानता नहीं,
चमचा किस-किस काम आता है,

गर चमचा न हो तो,
गरमा-गर्म दाल में हाथ कौन डाले,
गर चमचा न हो तो,
कडवी दवाई को कौन झेले,

चमचा ही तो हर गर्मी को ठंडा कर देता है,
चमचा ही तो हर तकलीफ को सहन कर लेता है,
देखो चमचा कैसे गर्म दूध में चला जाता है,
चावल को मिलकर खीर पकाकर लाता है,

गर चमचा न होता तो,
कितनों के हाथ जल गए होते,
गर चमचा न होता तो,
कितनों को छाले पड़ गए होते,

सोचो चमचा की तपस्या कितनी है,
सोचते उसमे जान न उतनी है,
कैसे बिलकुल निढाल रहता है,
तुम्हारी ढाल बनके रहता है,

आग में, पानी में, दूध में,
चमचा ही तो तपता है,
तेरा ही तो ख्याल रख के,
हर चीज़ लाकर देता है,

चमचा गर्मी, ठंडक झेल लेता है,
चाय में डालो की आइश्क्रीम में,
तुम्हे न कुछ अहसाश होने देता है,
अपनी भावनाओं को संभाल लेता है,

चमचे की तपस्या बहुत बड़ी है मेरे यार,
उसी तपस्या से तप-तप कर, तभी तो पाया प्यार,
तभी तो बनानेवाली उसे खुसी से चूम लेती है,
क्यूंकि इसी से अपनी उंगलियाँ बचा लेती है,

चमचा है बड़े काम की चीज़,
पर पता नहीं लोग क्यूँ करते हैं खीज,
किसी को किसी का चमचा बनते देख,
क्यूँ वो उसमे मीन निकालते और मेख,

चमचा बनना, न इतना आसान है,
हर मुसीबत झेलना, न इतना आसान है,

अपने अरमानों को मारना, न इतना आसान है,
अपने-आपको खो देना, न इतना आसान है,

चुप वो रहता है, सहता है सब,
गर्मी हो, ठंडक हो, सबको देता है सब,

उसकी तपस्या पे गौर करो,
हर काम वही तो कर लाता है,
तुम्हारे हाथ से पहले,
वही तो तुम्हारे मुंह में जाता है,

तभी तो चमचे बड़ों के मुंह लगे होते हैं,
इस आदत से पले होते हैं,
दूर इनको कैसे करोगे,
ये तो बड़े भले होते हैं,

चमकता है जो चम-चम,
तभी तो वह है चमचा,
उसकी चमक उसकी दमक से है,
तभी तो वह है चमचा,

अब तो, चमचो की, आदत-सी हो, गयी है,
न जाने, उंगलियाँ, कहाँ खो, गयी हैं,

हमें, जिन्दगी के, अहसास का, क्या पता,
हमें न, आग की, तपिस का, पता,
न हमें, पानी की, ठंडक का, पता,

हर चीज़, हम, चमचे से, निकालते हैं,
उसी, चमचे को, मुंह में, डालते हैं,

हमें, शहद की, चिपचिपाहट का, क्या पता,
हमें, अचार की, चिरपिराहट का, क्या पता,

हाथों की, उँगलियों को, को संभाल, रखा है,
तभी तो, हमने चमचा, पाल, रखा है,

                                                       ------- बेतखल्लुस

--Brahmachari Prahladanand
(बुधवार, 7 दिसंबर 2011)
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   (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-allindiabloggersassociation.blogspot.com)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-19.02.2023-रविवार.
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