साहित्यशिल्पी-मजदूरीनामा [आलेख]

Started by Atul Kaviraje, February 22, 2023, 09:33:40 PM

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Atul Kaviraje

                                     "साहित्यशिल्पी"
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मित्रो,

     आज पढते है, "साहित्यशिल्पी" शीर्षक के अंतर्गत, सद्य-परिस्थिती पर आधारित एक महत्त्वपूर्ण लेख. इस आलेख का शीर्षक है- "मजदूरीनामा [आलेख]"

                           मजदूरीनामा [आलेख]- के. ई. सैम--
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     1 मई अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस दुनिया भर में मजदूरों के नाम पर मनाया जाता है. इस दिन को उन मजदूरों की याद में श्रधांजलिस्वरुप मनाया जाता है जिनकी लाशें पूंजीपतियों एवं सामंतवादी विचारधारा के लोगों के द्वारा सिर्फ इसलिए बिछा दी गईं थीं कि उन्होंने अपनी मेहनत के एवज में अपनी जायज मांगों को पूरा करने की मांग करने की हिमाकत दिखाया था. साधारणतः दिवसों को किसी ख़ुशी अथवा गम के रूप में मनाया जाता है, मगर मजदूर दिवस गम के साथ-साथ एक ऐसे दिवस के रूप में मनाया जाता है, जो हर साल दुनिया के मजदूरों के दिल और दिमाग को एक ऐसा एहसास दिलाता है कि तुम दबे रहो, कुचले रहो. तुम्हें अपनी उचित मांगों को मांगने का भी अधिकार नहीं है. तुम अपने खून-पसीनों को बहाते रहो. अमीरों की गुलामी करते रहो. पसीना बहाकर. पानी छानकर लाकर बलवानों का पैर धोते रहो. तुम्हें दबे रहना है, तुम्हें कुचले रहना है. तुम्हें अपना मुंह खोलने का अधिकार नहीं है. तुम सामंतों की केवल सेवा करते रहो. उन्हें खुश करते रहो, जिसके बदले में तुम्हारे सामने रोटी डाल दी जायेगी. तुम्हें जरा भी विरोध नहीं करना है. तुम सिर्फ सेवा करने के लिए ही बने हो. क्योंकि तुम तो ( इन सामंतवादियों की दृष्टि में ) मनुष्य नहीं हो? तुम तो केवल हाड़-मांस के एक टुकड़े हो.

     तुम इन अमीरों, बाहुबलियों की बराबरी क्यों और कैसे कर सकते हो! तुम तो कमजोर हो. और भला कमजोरों को खुश रहने का अधिकार है? क्या गरीबों को अपनी चाहतों को पूरा करने का अधिकार है? क्या मजदूरों को सामर्थवानों की बराबरी करने का अधिकार है? नहीं न! तुम स्वयं को मनुष्य समझने की भूल क्यों करते हो? तुम अपनी औकात! में रहो. वरना तुम जरा सा भी हिले, तुमने जरा भी अमीरों की बराबरी करने की कोशिश की, तुमने जरा भी अपने अरमानों को पूरा करने का ख्वाब देखा, तो तुम्हें गोलियों से भून दिया जायेगा. एक मई हर वर्ष दुनिया के मजदूरों, गरीबों को याद दिलाता है कि तुम कितने उपेक्षित हो. तुम्हारा एक अलग घटिया? समाज है. तुम्हें सहानुभूति की, तुम्हें सहायता की, तुम्हें प्यार की, तुम्हें प्रशंसा की, तुम्हें ईनाम की, तुम्हें श्रेय की उम्मीद ही नहीं रखनी चाहिए. तुम्हें अपने अरमानों का गला घोंट देना है. तुम्हें अपनी इच्छाओं को मार देना है. यह दिवस याद दिलाता है कि मजदूर हमेशा मजदूर ही रहेगा.

--के. ई. सैम
स्वतंत्र पत्रकार
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                     (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-साहित्यशिल्पी.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-22.02.2023-बुधवार.
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