मेरी धरोहर-कविता सुमन-73-रात ढले मुझको ये क्या हो जाता है...

Started by Atul Kaviraje, February 23, 2023, 09:37:09 PM

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Atul Kaviraje

                                      "मेरी धरोहर"
                                    कविता सुमन-73
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मित्रो,

     आज पढेंगे, ख्यातनाम, "मेरी धरोहर" इस शीर्षक अंतर्गत, मशहूर, नवं  कवी-कवियित्रीयोकी कुछ बेहद लोकप्रिय रचनाये. आज की कविता का शीर्षक है- "रात ढले मुझको ये क्या हो जाता है..."

                           "रात ढले मुझको ये क्या हो जाता है..."   
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ताक़त का जिसको नश्शा हो जाता है
उसका लहजा ज़हर-बुझा हो जाता है

रुकता है इक रहरौ पास तमाशे के
देखते-देखते इक मजमा हो जाता है

और बहारों से क्या शिकवा है मुझको
ख़ाली दिल का ज़ख्म हरा हो जाता है

आँखों वाले लोग ही कौन से बेहतर हैं
आँखों को भी तो धोखा हो जाता है

कुछ अच्छा करने की कोशिश में मुझसे
काम हमेशा कोई बुरा हो जाता है

क्यों अम्बर के तारे गिनने लगता हूँ
रात ढले मुझको ये क्या हो जाता है

बिखरी खुशियों को आवाज़ लगाता हूँ
ग़म का दस्ता जब यकजा हो जाता है

सूरज की वहशत बढती जाती है और
'धीरे-धीरे सब सहरा हो जाता है'

'सौरभ' प्यार ज़माने से कुछ हासिल कर
सबको घर,गाड़ी,पैसा हो जाता है

--सौरभ शेखर
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--yashoda Agrawal
(Sunday, October 20, 2013)
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                     (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-४ यशोदा.ब्लॉगस्पॉट.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-23.02.2023-गुरुवार.
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