मेरी धरोहर-कविता सुमन-74-दिल का इक कोना ग़ुस्सा हो जाता है...

Started by Atul Kaviraje, February 24, 2023, 10:04:23 PM

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Atul Kaviraje

                                     "मेरी धरोहर"
                                    कविता सुमन-74
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मित्रो,

     आज पढेंगे, ख्यातनाम, "मेरी धरोहर" इस शीर्षक अंतर्गत, मशहूर, नवं  कवी-कवियित्रीयोकी कुछ बेहद लोकप्रिय रचनाये. आज की कविता का शीर्षक है- "दिल का इक कोना ग़ुस्सा हो जाता है..."

                          "दिल का इक कोना ग़ुस्सा हो जाता है..."   
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रो-धो के सब कुछ अच्छा हो जाता है
मन जैसे रुठा बच्चा हो जाता है

कितना गहरा लगता है ग़म का सागर
अश्क बहा लूं तो उथला हो जाता है

लोगों को बस याद रहेगा ताजमहल
छप्पर वाला घर क़िस्सा हो जाता है

मिट जाती है मिट्टी की सोंधी ख़ुशबू
कहने को तो, घर पक्का हो जाता है

नीँद के ख़्वाब खुली आँखों से जब देखूँ
दिल का इक कोना ग़ुस्सा हो जाता है

--प्रखर मालवीय 'कान्हा'
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--yashoda Agrawal
(Saturday, October 19, 2013)
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                    (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-४ यशोदा.ब्लॉगस्पॉट.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-24.02.2023-शुक्रवार.
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