साहित्यशिल्पी-वर्तमान पत्रकारिता पर एक दृष्टि [आलेख]

Started by Atul Kaviraje, February 24, 2023, 10:12:31 PM

Previous topic - Next topic

Atul Kaviraje

                                    "साहित्यशिल्पी"
                                   ---------------

मित्रो,

     आज पढते है, "साहित्यशिल्पी" शीर्षक के अंतर्गत, सद्य-परिस्थिती पर आधारित एक महत्त्वपूर्ण लेख. इस आलेख का शीर्षक है- "वर्तमान पत्रकारिता पर एक दृष्टि [आलेख]"

              वर्तमान पत्रकारिता पर एक दृष्टि [आलेख]- शशांक मिश्र भारती--
             -------------------------------------------------------

     हिन्दी के प्रथम समाचार पत्र उदंत मार्तंड के प्रवेषांक 30 मई 1826 से लेकर आज तक के समय में कभी भी विज्ञापन से अधिक जनहित समाज व देश हित को महत्व दिया गया है ।यह बात हिन्दी पत्रकारिता के जनक पं. युगलकिषोर शुक्ल से लेकर बनारसी दास चतुर्वेदी गणेश शंकर विद्यार्थी से होती हुई अब तक मानी जाती रही है।भले ही कुछ समय से दृश्य श्रृव्य मीडिया के अधिकांश पत्रकार अपने उ{श्याो कर्तव्याो से भटक गये हैं परन्तु इसका आशय यह नहीं कि शत प्रतिषत पत्रकारिता या पत्रकारों में कर्तव्य हीनता आ गई ।अभी पत्रकारिता के सत्पथों पर समर्पित होने वालों की एक लम्बी श्रंृखला है।आधुनिक तकनीकों संचार क्रान्ति से कम्प्यूटर ईमेल फैक्स वाट्सअप आदि का प्रभाव बढ़ा है।काफी कुछ यह पत्रकारिता को प्रभावित कर रहे हैं।उसके तरीकों सुविधा सुलभता को परिवर्तित कर रहे हैं।दिनों का काम घण्टों में घण्टों का काम मिनटों और सेकण्डों में होने लगा हैं। सबसे अधिक बदलाव सामग्री प्रेषण उसके तरीकों में आया है जहां कभी समाचार सूचना भेजना ही दुर्लभ होता था आज वहां सचित्र ही नहीं श्रृव्य या दृश्य अथवा दोनों ही स्वरूपों में सामग्री पहुंचायी जा रही है।इन सब में से किसी माध्यम से जुड़ा व्यक्ति भले ही वह किसी समाचार पत्र या पत्रिका से न जुड़ा हो संपादक या पत्रकार भी न हो मात्र समाज को समय पर कसौटी पर कसने वाला हो पत्रकार कहा जा सकता है।ठीक उसी प्रकार जैसाकि बुद्ध कबीर तुलसी अपनी समाज के प्रति प्रतिबद्धता के चलते माने गये हैं।

     यदि इन सभी का उपयोग सदुपयोग के रूप में सत्यनिष्ठा से आदर्शपत्रकारिता के मापदण्डों पर चलते हुए हो तो न केवल जनहित समाज व देश का कल्याण होगा अपितु पत्रकारों के मान सम्मान और कार्य का क्षेत्र बढ़ेगा।पत्रकारिता नित नये नूतन आयामों का स्पर्श करेगी।गौरवान्वित होगी।पत्रकार का दायित्व मात्र किसी समस्या को पकड़ना सुलझाना या सामने लाना ही नहीं होता अपितु उसको व्यावहारिक धरातल पर लाकर सुलझाना जनसेवा की परम्परा का महान अंग बनाना भी होता है ।कई बार किसी समस्या के समाधान के लिए पत्रकार के द्वारा दिया गया मत लोकजीवन के परम्परागत मत से मेल भी नहीं खाता है पर निर्भीक व निष्पक्ष पत्रकार समय की आवश्यकता को देखते हुए अपना मत व्यक्त करने का खतरा उठाता है।लोक जीवन के लाचार विचारों को नियंत्रित कर एक क्रान्ति दूत सा आगे बढ़ता जाता है।समय के प्रवाह में अपने पैरों को डाल-डाल कर अपनी पीढ़ी को थाह ले लेकर बताता जाता है।उसको पार ले जाता है।अपने विरोधियों का वह सामना अपने चरित्र की दृढ़ता से उनको विरोध करने का पूरा पूरा अवसर देते हुए करता है। जिस प्रकार एक मजबूत वृक्ष अपने जीवन का रस कीचड़ में से खींचता है उसी प्रकार यह जन जीवन की समस्याओं चिन्तन और घटनाओं से सीखकर विश्वास बनाते हैं ।किसी को प्रसन्न करने की मानसिकता इनकी नहीं होती कहीं पर जानबूझकर अतिश्योक्ति नहीं करते सन्देह को भ्रान्तिमान या भ्रान्तिमान को सन्देह यह नहीं करते।इनके वाक्य हों या शब्द नपे तुले और विचारों की कसौटी पर तुले हुए होते हैं।

--शशांक मिश्र भारती
बड़ागांव, शाहजहांपुर
-------------------

                    (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-साहित्यशिल्पी.कॉम)
                   -----------------------------------------   

-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-24.02.2023-शुक्रवार.
=========================================