मेरी धरोहर-कविता सुमन-75-फूल पे पांव पड़ें. …छाला हो जाता है...

Started by Atul Kaviraje, February 25, 2023, 10:04:55 PM

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Atul Kaviraje

                                       "मेरी धरोहर"
                                     कविता सुमन-75
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मित्रो,

     आज पढेंगे, ख्यातनाम, "मेरी धरोहर" इस शीर्षक अंतर्गत, मशहूर, नवं  कवी-कवियित्रीयोकी कुछ बेहद लोकप्रिय रचनाये. आज की कविता का शीर्षक है- "फूल पे पांव पड़ें. ...छाला हो जाता है..."

                            "फूल पे पांव पड़ें. ...छाला हो जाता है..."   
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अक्सर ही संजोग ऐसा हो जाता है
ख़ुद से मिले भी एक अरसा हो जाता है

मैं बोलूँ तो हंगामा हो जाता है
मैं ख़ामोश तो सन्नाटा हो जाता है

धीरे धीरे दिन धुंधला हो जाता है
मेरे मूड का आईना हो जाता है

रात की गहरी काली नद्दी जाते ही
दिन का पर्वत आ के खड़ा हो जाता है

तेरी याद की शम्में जब बुझ जाती हैं
ज़ेह्न मिरा आसेबज़दा(1) हो जाता है

ये तो बरसों देखा है तहज़ीबों ने
रफ़्ता रफ़्ता डर ही ख़ुदा हो जाता है.

जाने क्यूँ दानिश्वर(2) ऐसा कहते हैं
बढ़ते बढ़ते दर्द दवा हो जाता है

कभी कभी तो याद तिरी आती ही नहीं
कोई-कोई दिन यूं ज़ाया हो जाता है

देखा है इन आँखों ने ये आलम भी
बहता दरिया भी सहरा हो जाता है

ऐसी अदालत में है मेरा केस जहां
हरिक वाक़या अफ़साना हो जाता है

पूछे है वो हाल हमारा कुछ ऐसे
ज़ख्मे – जुदाई और हरा हो जाता है

जी करता है घर में घूमूं नंग-धड़ंग
कभी कभी मन बच्चा सा हो जाता है

आदत है इन तलवों को तो काँटों की
फूल पे पांव पड़ें. ...छाला हो जाता है

1 भुतहा 2 बुद्धिमान
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--सुबोध साक़ी
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--yashoda Agrawal
(Friday, October 18, 2013)
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                    (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-४ यशोदा.ब्लॉगस्पॉट.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-25.02.2023-शनिवार.
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