साहित्यशिल्पी-वर्तमान पत्रकारिता पर एक दृष्टि [आलेख]

Started by Atul Kaviraje, February 25, 2023, 10:13:00 PM

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Atul Kaviraje

                                      "साहित्यशिल्पी"
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मित्रो,

     आज पढते है, "साहित्यशिल्पी" शीर्षक के अंतर्गत, सद्य-परिस्थिती पर आधारित एक महत्त्वपूर्ण लेख. इस आलेख का शीर्षक है- "वर्तमान पत्रकारिता पर एक दृष्टि [आलेख]"

              वर्तमान पत्रकारिता पर एक दृष्टि [आलेख]- शशांक मिश्र भारती--
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     दुर्भाग्यवश देखा जा रहा है कि दूरदर्शन के विविध व असंख्य निजी चैनल रेडियो चैनल समाचार पत्र पत्रिकाओं के द्वारा अपने अमूल्य समय को अपनी ग्राहक और आर्थिक क्षमता बढ़ानें में अधिक उपयोग करते हैं इसके लिए एक पक्षीय घटनाओं उप्रेजक दृश्यों कतिपय फीचर समाचारों उदाहरणों का बार-बार या प्रमुखता से प्रसारण -प्रकाशन करते रहते हैं विज्ञापनों के सन्दर्भ में कई बार मर्यादा पार कर जाते हैं ।यहां तक कि स्वंय की प्रतिष्ठा से बढ़कर कई बार प्रसार सख्ंया को मानने लगते हैं।उनके बोल और प्रस्ततीकरण किसी के प्रतिनिधि जैसे लगते हैं।मेरे पिछले साल के एक प्रकरण में कतिपय पत्रकार सच के साथ नहीं स्थानीय पुलिस को प्रसन्न करते अधिक दिखे।यह सब जनहित से कोसों दूर है ही साथ ही समाज और देश के प्रति इनकी भूमिका को लेकर सन्देह उत्पन्न करता है।

     हमारे क्षेत्र में हिन्दुस्तान अमरउजाला राष्ट्रीय सहारा दैनिक प्रभात लक्ष्य जागरण स्वतंत्रभारत दैनिक जागरण सहित कई हिन्दी के समाचार पत्र आते हैं पर आमजनमानस पर छाप एक या दो पत्रकारों की ही है।पाठक न केवल उनकी प्रशंसा करते हैं अपितु सम्बन्धित का आदर पूर्वक नाम भी लेते हैं।वाहनों पर नजर डालें तो दो दर्जन से अधिक लोगों ने पत्रकार लिखा रखा है वह कैसे पत्रकार हैं या उनका उ{ेृश्य क्या है वही जानें। पर महत्वपूर्ण है आप अपने दायित्व का निर्वहन किस प्रकार करते हैं।जनसरोकारों से आपकी निकटता कितनी है।पत्रकार या मीडिया जगत का सर्वप्रथम दायित्व जनहित होता है।जिसके लिए सत्यनिष्ठा पारदर्शिता शीघ्रता व समयबद्धता होने ही नहीं चाहिए अपितु दिखनी भी चाहिए।मर्यादा व सीमाओं की जहां तक बात है कोई भी बन्धन जनकल्याण से बड़ा नहीं हो सकता।अतः पत्रकारिता से जुड़े लोगों को स्वंय ही मर्यादा का अतिक्रमण नहीं करना चाहिए।जनहित को हानि पहुंचाने वाले कार्यों से स्वंय को विरत कर लेना चाहिए। भले ही इससे आर्थिक हानि क्यों न हो जाये।आर्थिक हानि की भरपाई हो सकती है किन्तु जनहित समाजकल्याण देशहित की उपेक्षा अनदेखी की पूर्ति संभव नहीं होती। देश अपनी बहती स्वाभाविक धारा से काफी पीछे चला जाता है।

--शशांक मिश्र भारती
बड़ागांव, शाहजहांपुर
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                     (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-साहित्यशिल्पी.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-25.02.2023-शनिवार.
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