ऑल इंडिया ब्लॉगर्स असोसिएशन-ईमानदारी की बात में भी ईमानदारी नहीं...

Started by Atul Kaviraje, February 25, 2023, 10:17:28 PM

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Atul Kaviraje


                            "ऑल इंडिया ब्लॉगर्स असोसिएशन"
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मित्रो,

     आज सुनते है, "ऑल इंडिया ब्लॉगर्स असोसिएशन" इस ब्लॉग के अंतर्गत, एक लेख/कविता.

                          ईमानदारी की बात में भी ईमानदारी नहीं...
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     मित्रों वैसे भी  एनजीओ पर शिकंजा कसना जरूरी  है,  क्योंकि यहां बडे पैमाने  पर धांधली हो रही है । मैं इस बात का जवाब टीम अन्ना  से चाहता हूं  कि तमाम लोग आयकर  में छूट पाने के लिए सामाजिक संगठनों को चंदा देते हैं और यहां से रसीद हासिल करके आयकर रिटर्न में उसे दर्ज करते हैं । जब आयकर में एनजीओ की रसीद महत्वपूर्ण अभिलेख है तो क्यों नहीं एनजीओ को लोकपाल  के दायरे में आना चाहिए । मैं देखता हूं कि कारपोरेट जगत ही नहीं बडे बडे नेताओं और फिल्म कलाकार अपने पूर्वजों के नाम पर सामाजिक संस्था बनाते हैं और पैसे को काला सफेद करते रहते हैं ।

     यहां एक शर्मनाक वाकये की  भी चर्चा कर दूं । देश में बड़े बड़े साधु संत धर्मार्थ संगठन के नाम पर धोखाधड़ी  कर रहे हैं । साल भर पहले आईबीएन 7 के कैमरे पर कई बडे नामचीन साधु पकड़े गए थे, जो कालेधन को सफेद करने के लिए सौदेबाजी कर रहे थे । वो दस लाख रुपये लेकर 50 रुपये की रसीद दिया करते थे । धर्मार्थ संगठन गौशाला,  पौशाला, धर्मशाला, पाठशाला समेत कई अलग अलग काम के लिए सामाजिक संस्था बनाए हुए हैं । मेरा मानना है कि सामाजिक संस्थाओं  को सरकारी और गैरसरकारी जितनी मदद मिलती  है, अगर इसका ईमानदारी से उपयोग किया जाता तो आज देश  के गांव  गिरांव की सूरत बदल जाती । ये चोरी का एक आसान रास्ता  है, इसलिए पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी सेवा में रहते हुए एक  एनजीओ जरूर बना लेते हैं और सेवाकाल  के दौरान पद का दुरुपयोग करके इसे आगे बढाने में लगे रहते हैं, जिससे  सेवानिवृत्ति के बाद इसका स्वाद उन्हें मिलता रहे ।

     अच्छा हास्यास्पद लगता है कि प्रधानमंत्री को लोकपाल  के दायरे में लाने की बात की जा रही है, जबकि देश में आज तक  कोई ऐसा प्रधानमंत्री नहीं  हुआ है, जिसके लूट खसोट से जनता परेशान हो गई हो । अब आज की केंद्र सरकार को ही ले लें, सब कहते हैं कि आजाद भारत की ये सबसे भ्रष्ट्र सरकार है, लेकिन प्रधानमंत्री को सभी  ईमानदार बताते हैं । इसलिए अगर  लोकपाल के दायरे में प्रधानमंत्री को  एक बार ना भी शामिल किया जाए तो कोई पहाड़ टूटने वाला नहीं है, लेकिन जब सामाजिक  संगठनों की करतूतें सामने आने लगी हैं तो कोई कारण नहीं जो इन्हें लोकपाल  से अलग रखा  जाए । टीम अन्ना  से बस इतना ही कहूंगा  कि जनता देख रही है, कम से कम ईमानदारी की बात तो ईमानदारी से करो ।

--महेन्द्र श्रीवास्तव
(शनिवार, 3 दिसंबर 2011)
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   (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-allindiabloggersassociation.blogspot.com)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-25.02.2023-शनिवार.
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