साहित्यशिल्पी-वर्तमान पत्रकारिता पर एक दृष्टि [आलेख]

Started by Atul Kaviraje, February 26, 2023, 09:56:51 PM

Previous topic - Next topic

Atul Kaviraje

                                      "साहित्यशिल्पी"
                                     --------------

मित्रो,

     आज पढते है, "साहित्यशिल्पी" शीर्षक के अंतर्गत, सद्य-परिस्थिती पर आधारित एक महत्त्वपूर्ण लेख. इस आलेख का शीर्षक है- "वर्तमान पत्रकारिता पर एक दृष्टि [आलेख]"

              वर्तमान पत्रकारिता पर एक दृष्टि [आलेख]- शशांक मिश्र भारती--
             ------------------------------------------------------

     वर्तमान में हत्या बलात्कार अत्याचार हिंसा के समाचारों हीरोइनों माडलोa खेलसमाचारों को छापना दिखाना प्रचार-प्रसार व जनमत की अपेक्षा को देखते हुए बुरा नहीं कहा जा सकता।लेकिन इनमें मर्यादित आचरण की सीमा तो होनी ही चाहिए इन सबको सामान्य जनहित की सूचनाओं समाचारों से अधिक महत्व नहीं दिया जाना चाहिए।समय को समय का महत्व समझ उपयोग करें।आजकल का पाठक हो या दर्शक समय का दुरुपयोग नहीं चाहता उसकी जेब का मोबाइल या हाथ का रिमोट बदलने में देर नहीं करता।अधिकांश देखा गया है कि कई टी. वी. चैनल एक ही घटना या समाचार को तीन-तीन दिन तक अथवा बार-बार दिखलाते रहते हैं जानबूझकर उप्रेजक एक पक्षीय बनाकर प्रस्तुत करने का प्रयास हो जाता है। किसी की ओर झुकाव हो जाता है परिणामतः आज के जनमानस का झुकाव कम हो जाता है। यह सब अच्छा नहीं माना जा सकता और न ही इससे दीर्घकालिक लाभ उठाया जा सकता है।

     इसलिए आवश्यक हो जाता है कि लघु समाचार पत्र-पत्रिकाओं से लेकर देश विदेश स्तर तक के समाचार पत्रों टी.वी. चैनलों रेडियों आदि तक को स्वस्थ पत्रकारिता के मानदण्डों को अपनाते हुए जनहित समाज व देशहित को सर्वोप्रम मानकर उसके प्रति अपने-अपने कर्तव्य का निर्वहन करना चाहिए।वर्तमान का समय 1827 का नहीं है जब देशोद्वार के लिए पाठकों में जोश और जेल जाना दो ही दायित्व अधिकांश पत्रकारों के होते थे।आजकल तो विविध विषयों मु{्दों पर जनमत को जागरूक कर समझाया जा सकता है।चर्चायें करवायी जा सकती हैं।शिक्षा स्वास्थय समाज धर्म राजनीति भ्रष्टाचार आतंकवाद पर्यावरण रक्षा विदेष नीति रोजगार जनसंख्या जनसुरक्षा महिलासशक्तीकरण औद्योगीकरण नगरीकरण आदि पत्रकारिता के लिए असख्ंय विषय हैं। जिन पर विचार प्रेषण विनिमय चर्चाओं निष्कर्षों तक जाने की आवश्कता है।

--शशांक मिश्र भारती
बड़ागांव, शाहजहांपुर
-------------------

                     (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-साहित्यशिल्पी.कॉम)
                    -----------------------------------------

-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-26.02.2023-रविवार.
=========================================