ऑल इंडिया ब्लॉगर्स असोसिएशन-भाग-भाग कर ही तो सभी ने संन्यास लिया है

Started by Atul Kaviraje, February 26, 2023, 10:02:27 PM

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Atul Kaviraje

                              "ऑल इंडिया ब्लॉगर्स असोसिएशन"
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मित्रो,

     आज सुनते है, "ऑल इंडिया ब्लॉगर्स असोसिएशन" इस ब्लॉग के अंतर्गत, एक लेख/कविता.

                      भाग-भाग कर ही तो सभी ने संन्यास लिया है--
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भाग-भाग कर ही तो सभी ने संन्यास लिया है,
ऐसा कौन है जिसने बिना भागे संन्यास लिया है,
भागता न संसार से तो ज्ञानी न होता,
पड़ा रहता यही और अज्ञानी वो होता,

बिन भागे उसे ज्ञान कैसे होगा,
ज्ञान के लिए भागना तो पड़ेगा,
एक बार गर वो फंस गया गृहस्थी के चक्कर में,
सारी जिन्दगी फिर घनचक्कर बनना पड़ेगा,

महल में रहकर किसने पाया है ?
एक नाम भी है जिसने महल में रहकर ज्ञान पाया है ?

     महल में आदमी जागता नहीं है, महल में आदमी सोता है, कहा भी गया है, या सोवे राजा का पूत, या सोवे योगी निर्धूत, तो वो राजा के पूत थे तो महल में सोते ही, न की जागते, और स्त्री को तो महल ही चाहिए, उसे पुरुष के ज्ञान ध्यान से क्या लेना देना,

     राजा जनक को ज्ञान नहीं हुआ था, अगर राजा जनक को ज्ञान होता तो वह अपने राजमहल में ज्ञानियों को बुला-बुला कर उनसे उपदेश नहीं सुनता, राजा जनक को ज्ञान होने का भ्रम मात्र था, 

     एक रात घर से बाहर, बिना किसी आश्रय के, बिना पैसे के, बिना किसी आधार के, रहकर देख लो, जो ज्ञान एक रात का होगा, घर से बाहर, अनजान जगह पर, वह घर पर रहकर, सौ रातें जागकर भी नहीं, पा सकते हो,

     श्री कृष्ण को ज्ञान कैसे कह सकते हैं, जब वह अपने देह को बचाने के लिए लाख उपाय करता है, अगर ज्ञान  हुआ था, कंस को उसको मारने की बुद्धि ही बदल देनी थी, यदि ज्ञान था तो पूतना को न मारना था, श्री कृष्ण को ज्ञान नहीं उस समय का गोड फादर कह सकते हैं, जो हर कार्य अपनी मर्जी से करवाना चाहता है, और अपने आप को भगवान् सिद्ध करवाना चाहता है, चाहे उसके लिए कोई भी कदम उठाना पड़े, ज्ञान में और गोड फादर में फर्क होता है, 

     किसी को जानने की इच्छा नहीं है, यह तो मात्र एक बहाना है, असली बात को छिपाने का, असली बात है भागने की वह अपने जो शक्ति है उसके पास वह शक्ति वह स्त्री में खर्च नहीं करना चाहता है, और अगर वह भागेगा नहीं तो निश्चित ही उसकी शक्ति स्त्री में खर्च हो जायेगी, और जब वह भागता है तो उसको भागने के लिए शक्ति चाहिए, और जब वह अकेले सुनसान जगहों पर रहता है, और किसी का आसरा नहीं रहता है तो फिर वह अपनी शक्ति को बचा लेता है, और इसी बची हुई शक्ति से वह ज्ञान को पा लेता है, क्यूंकि आज के संन्यास में तो बहुत से आवलंबन हैं, परन्तु जो पहले संन्यास लिया जाता था, उसमे कोई आवलंबन नहीं होता था, और संन्यासी को पैदल चलना होता था, वह पैर में जूता नहीं पहन सकता है, वह छाता नहीं ले सकता है, वह किसी वाहन का प्रयोग नहीं कर सकता है, वह वस्त्र नहीं पहन सकता है, वह धन को छू नहीं सकता है, वह भोजन के लिए किसी पात्र का प्रयोग नहीं कर सकता है, कर ही उसका पात्र है, मतलब की वह समाज से पूरी तरह काट दिया जाता था, और फिर जब वह वस्त्र ही नहीं पहनेगा तो फिर वह कैसे समाज में आएगा, जंगल में ही रहेगा, और जंगल में ही तपस्या करेगा, तो इसके लिए उसे अपनी उर्जा को तो बचाना ही पड़ेगा, और जब उसकी उर्जा बचेगी तो इसी उर्जा के सहारे तो वह, ज्ञान को पा लेगा

--Brahmachari Prahladanand
(शुक्रवार, 2 दिसंबर 2011)
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   (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-allindiabloggersassociation.blogspot.com)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-26.02.2023-रविवार.
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