साहित्यशिल्पी-बस्तर यात्रा वृतांत श्रंखला, आलेख - 18

Started by Atul Kaviraje, February 27, 2023, 10:24:47 PM

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Atul Kaviraje

                                     "साहित्यशिल्पी"
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मित्रो,

     आज पढते है, "साहित्यशिल्पी" शीर्षक के अंतर्गत, सद्य-परिस्थिती पर आधारित एक महत्त्वपूर्ण लेख. इस आलेख का शीर्षक है- "बस्तर यात्रा वृतांत श्रंखला, आलेख - 18 वीरता जो अब पाठ्यपुस्तक का हिस्सा है"

बस्तर यात्रा वृतांत श्रंखला, आलेख - 18 वीरता जो अब पाठ्यपुस्तक का हिस्सा है- [यात्रा वृतांत] - राजीव रंजन प्रसाद--
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     राष्ट्रपति पदक, फिजिकल ब्रेवरी अवॉर्ड सहित अनेक प्रतिष्ठित वीरता पुरस्कारों से सम्मानित की गयी अंजली सिंह गौतम इन दिनो पुन: चर्चा में हैं क्योंकि सीबीएसई के पाठ्यक्रम में पाँचवी कक्षा के बच्चों को उनकी कहानी अब पढाई जा रही है। मैंने तय किया था कि इस यात्रा में अंजलि से अवश्य मुलाकात करूंगा। दंतेवाड़ा जिले का गर्व हैं अंजलि जिनकी रोमांचित कर देने वाली कहानी सुनने के लिये मैं नकुलनार स्थित उनके आवास पहुँचा। अंजलि के पिता अवधेश गौतम कॉग्रेस पार्टी से सम्बद्ध हैं तथा एक दौर में चर्चित आदिवासी नेता महेंद्र कर्मा के करीबी रहे हैं। अवधेश गौतम लम्बे समय से नक्सलियों के निशाने पर रहे तथा उनपर अनेक बार प्राणघातक हमले हुए हैं। बस्तर में नक्सलवाद ने हत्या और हमलों की जितनी घटनाओं से इतिहास के पन्नों को लाल-लाल रंगा है उसमें से क्या और कितना याद रखा जायेगा, किस तरह इसे याद किया जायेगा; इसका स्पष्ट उत्तर स्वयं अंजलि हैं।

     आज अंजलि बीस वर्ष की युवती हैं तथा बीएससी (अंतिम वर्ष) की छात्रा हैं। आज उनके पास आतंकवाद को ले कर स्पष्ट विचार हैं, देश-समाज और विकास जैसे विषयों पर अपनी राय रखना भी जानती हैं। कल्पना कीजिये लगभग छ: वर्ष पूर्व की बालिका अंजलि के विषय में। तेरह-चौदह वर्ष की आयु में विपरीत परिस्थिति के समयों में गंभीर निर्णय लेने की कितनी मानसिक परिपक्वता होती है तथा अपने भय से निजात पा कर कितने बच्चे असम्भव लगने वाला साहस दिखा पाते हैं? अंजलि को विषम परिस्थितियों में जो मानसिक संयम दिखाया वही उनको उल्लेखनीय तथा अनुकरणीय बनाता है। मैंने उनसे ही जानना चाहा कि आखिर क्या हुआ था उस रात? अंजलि के लिये याद करने जैसी कोई बात नहीं थी। उन्होंने विवरण मुझे इस तरह सुनाया जैसे अब भी सबकुछ उनकी आँखों के सामने से गुजर रहा था।

     वर्ष 2010 के 7 जुलाई की घटना है। यह अंजलि का जन्मदिन था अत: घर के सभी लोग देर से ही सोने के लिये गये थे। लगभग रात्रि के साढे बारह बजे के बाद अचानक लगभग पाँच सौ की तादाद में नक्सलियों ने उनके घर को चारो ओर से घेर कर हमला कर दिया। नक्सलियों का निशाना निश्चित ही अवधेश गौतम थे लेकिन हत्यारी विचारधाराओं के लिये जो भी सामने आया वही जीवन बेमानी होता है। घर के बाहर बरामदे में अंजलि के मामा तथा ड्राईवर सो रहे थे वे इस हमले का पहला निशाना बने और वहीं मार डाले गये। चलायी जाने वाली गोली उम्र और कारण पूछ कर तो किसी को छलनी नहीं करती, यही हुआ भी। अंजलि के छोटे भाई के पैरों में गोली लग गयी थी और वह बालक बुरी तरह जख्मी हुआ था अब भागना भी उसके लिये संभव नहीं था। अवधेश गौतम के लिये लगाये गये गिनती के सुरक्षाकर्मी एक साथ सैंकडों नक्सलियों से लोहा ले रहे थे। खतरे का आभास होते ही स्वयं अवधेश भी छत पर आ गये और यथासम्भव स्वयं पर हुए हमले का प्रत्युत्तर देने लगे। इस बीच परिवार के जो भी सदस्य सुरक्षित बाहर निकाले जा सके वे किसी के अहाते और किसी की छत से होते हुए अपनी सुरक्षा करने में सफल हो गये थे लेकिन घर के भीतर दो नन्हीं जान रह गयी थी। गोलीबारी में ट्यूबलाईट फूट जाने के कारण घनघोर अंधेरा था और बाहर नक्सलियों द्वारा जोर जोर से दरवाजा पीटा जा रहा था। अंजलि ने जहाँ छुपना चाहा वही उसे अपने घायल भाई की आहट मिली। उसने छू कर देखा तो भाई के दोनो पैर खून से लतपथ थे लेकिन सबसे पहला निर्णय दोनो बच्चों ने इस दर्द को सहते हुए भी चुप-चाप रहने का लिया जिससे वे नक्सलियों की पकड़ में न आ सकें। लगभग पन्द्रह नक्सली कमरे में घुस आये थे और उन्होंने अंजलि को बाहर आने के लिये बाध्य कर दिया। अंजलि ने भाई को भी बाहर लाने की कोशिश की लेकिन जख्मी होने के कारण संभव नहीं था। त्वरित निर्णय लेते हुए उसने पास से चादर खींचा और अपने भाई के जख्मी पैरों से निरंतर बहते खून को रोकने के लिये उसपर बाँधने लगी।

--राजीव रंजन प्रसाद
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                     (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-साहित्यशिल्पी.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-27.02.2023-सोमवार.
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