साहित्यशिल्पी-बस्तर यात्रा वृतांत श्रंखला, आलेख - 18

Started by Atul Kaviraje, February 28, 2023, 10:26:03 PM

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Atul Kaviraje

                                      "साहित्यशिल्पी"
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मित्रो,

     आज पढते है, "साहित्यशिल्पी" शीर्षक के अंतर्गत, सद्य-परिस्थिती पर आधारित एक महत्त्वपूर्ण लेख. इस आलेख का शीर्षक है- "बस्तर यात्रा वृतांत श्रंखला, आलेख - 18 वीरता जो अब पाठ्यपुस्तक का हिस्सा है"

बस्तर यात्रा वृतांत श्रंखला, आलेख - 18 वीरता जो अब पाठ्यपुस्तक का हिस्सा है- [यात्रा वृतांत] - राजीव रंजन प्रसाद--
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     नक्सली बार बार अंजलि से उसके पिता के विषय में पूछ रहे थे। नक्सली महिलायें अंजलि को गालियाँ दे रही थीं। इन सबकी परवान न करते हुए, डर, अपमान और प्रताडना की सम्मिलित मनोभावनाओं के बीच भी वह अपने भाई को बाहर उस बरामदे तक ले आयी जहाँ पहले ही दो लाशें पड़ी हुई थीं। गोली चलने की निरंतर आवाजें, चीखने-चिलाने का शोर, गाली-गलौच और धमकी पुकार के बीच अंजलि ने अपने भीतर कैसा संयम रखा होगा यह अकल्पनीय है। तभी एक नक्सली वहाँ आया और वह अंजलि को एक ओर ले जाने लगा। उसने घर के पीछे का रास्ता पूछा जो अंजलि ने बता दिया। इसबीच वह अपना हाथ छुडा कर भागने में सफल हुई और वह पुन: अपने भाई के पास चली आयी। एकाएक भयावह धमाका हुआ और बगल में स्थित मकान को नक्सलियों ने धमाके के साथ उड़ा दिया, उनका घर भी हिल उठा था। अंजलि ने किसी अनिष्ट का सोच कर अपने भाई को बचाने के उद्देश्य से सीढी से नीचे धकेल दिया। छोटे भाई को पुन: चोट आयी लेकिन इस दर्द को सहने के अतिरिक्त और कोई रास्ता नहीं था। अब धमाके के बाद की परिस्थिति का लाभ उठा कर अंजलि ने अपने साहस को बटोरा, अपने जख्मी भाई को कंधे पर उठाया और तेजी से भागी। नक्सली महिलाओं में से किसी ने देखा और उसे रुकने का इशारा किया। इसके बाद अंजली को नहीं पता कि उसमे हिम्मत कहाँ से और कैसे आयी। वह नहीं जानती कि कितनी बंदूखों का वह निशाना था अथवा अब वह जीवित भी रहेगा या नहीं। वह चाहती तो भाई को उसके हाल पर छोड कर भी भाग सकती थी लेकिन तेजी से दौडते हुए वह एक गड्ढे में गिर पड़ी। फिर उठी, भाई को उठाया और फिर दौड लगा कर मुख्य सड़क तक पहुँची। सारा नगर डर की चादर ओढ कर चुपचाप था। निकट ही उनके दादा का मकान था, अंजलि उस ओर दौड़ी फिर गड्ढें में गिरी लेकिन उठ कर आखिरकार भाई समेत सुरक्षित स्थान तक पहुँचने में उसने सफलता हासिल कर ली थी।

     मैंने जब अंजलि से पूछा कि इस पूरी घटना के दौरान तुम्हारे दिमाग में क्या चल रहा था? उत्तर ने मुझमें सिहरन भर दी। अंजलि ने कहा कि मैंने मान लिया था कि मेरे पूरे परिवार को नक्सलियों ने मार दिया है और केवल वह तथा भाई ही जीवित बचे हैं। अंजलि किसी भी तरह अपने जख्मी भाई का जीवन बचाना चाहती थी जिसमें वह सफल हुई। सुबह के लगभग साढे तीन बजने तक फोर्स नकुलनार पहुँच गयी और नक्सलियों को असफल ही वापस लौटना पड़ा। यह पूरे परिवार के लिये राहत का विषय था कि बड़ी क्षति नहीं हुई लेकिन यह विपरीत परिस्थितियों के लिये साहस की मिसाल घटना सिद्ध हुई। अंजलि के प्रेरणास्पद कदम को निरंतर सराहा गया, सम्मानित किया गया और वे उदाहरण बन गयी हैं। यह कहानी सिद्ध करती है कि नक्सलवाद का भविष्य नहीं लेकिन उसके विरुद्ध प्रदर्शित की गयी वीरता की हर कहानी चिरजीवी है। हार्दिक बधाई अंजलि क्योंकि इस देश को नक्सल वर्दी पहन कर बारूदी सुरंगे फोडने और लाशों की विडियो बनाने वाली महिलाओं पर नहीं अपितु आप जैसी बालिकाओं के असाधारण साहस पर गर्व है।

--राजीव रंजन प्रसाद
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                     (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-साहित्यशिल्पी.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-28.02.2023-मंगळवार.
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