भारत डिस्कव्हरी-अंग्रेज़

Started by Atul Kaviraje, February 28, 2023, 10:40:50 PM

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Atul Kaviraje

                                   "भारत डिस्कव्हरी"
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मित्रो,

     "भारत डिस्कव्हरी" विषया-अंतर्गत, आज पढेंगे "इतिहास-कोश" इस श्रेणी-अंतर्गत एक इतिहास लेख. इस लेख का शीर्षक है- अंग्रेज़.

                                       "अंग्रेज़"
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                  मुग़ल राजनीति में हस्तक्षेप--

     धीरे-धीरे अंग्रेज़ों का मुग़ल राजनीति में हस्तक्षेप प्रारम्भ हो गया। 1686 ई. में हुगली को लूटने के बाद अंग्रेज़ और मुग़ल सेनाओं में संघर्ष हुआ, जिसके परिणामस्वरूप ईस्ट इण्डिया कम्पनी को सूरत, मसुलीपट्टम, विशाखापत्तनम आदि कारखानों से अपने अधिकार खोने पड़े, परन्तु अंग्रेज़ों द्वारा क्षमा याचना करने पर औरंगज़ेब ने उन्हें डेढ़ लाख रुपये मुआवजा देने के बदले पुनः व्यापार के अधिकार दे दिये और 1691 ई. में एक फ़रमान निकाला, जिसमें 3000 रुपये के निश्चित वार्षिक कर के बदले बंगाल में कम्पनी को सीमा शुल्क देने से छूट दे दी गई। 1698 ई. में तत्कालीन बंगाल के सूबेदार 'अजीमुश्शान' द्वारा कम्पनी ने तीन गाँव- सुतानाती, कलकत्ता और गोविन्दपुर की ज़मीदारी 12000 रुपये भुगतान कर प्राप्त कर ली। 1700 ई. तक 'जॉब चारनाक' ने इसे विकसित कर कलकत्ता का रूप दिया। कलकत्ता में फ़ोर्ट विलियम की स्थापना हुई। इसका पहला गर्वनर 'चार्ल्स आयर' हुआ।

                   औरंगज़ेब से क्षमा--

     बंगाल में सूबेदार शाहशुजा के फ़रमान के बाद भी अंग्रेज़ों को बंगाल में बल-पूर्वक चुगिंयाँ अदा करनी पड़ती थीं, जिसके कारण कम्पनी ने अपनी सुरक्षा खुद करने के उद्देश्य से थाना के मुग़ल क़िलों पर अधिकार कर लिया। 1686 ई. में मुग़ल सेना ने अंग्रेज़ों को हुगली से पलायन करने एवं ज्वारग्रस्त फुल्टा द्वीप पर शरण लेने के लिए मजबूर किया। फ़रवरी, 1690 में एजेंट जॉब चारनाक को बादशाह औरंगज़ेब से क्षमा मांगनी पड़ी। बाद में कम्पनी को पुनः उसके अधिकार प्राप्त हो गए। लेकिन कम्पनी को क्षतिपूर्ति के लिए 1 लाख पचास हज़ार रुपया हर्जाना देना पड़ा।

                   फ़र्रुख़सियर का फ़रमान--

     1715 ई. में जॉन सर्मन के नेतृत्व में एक व्यापारिक मिशन तत्कालीन मुग़ल बादशाह फ़र्रुख़सियर से मिलने गया। इस व्यापारिक मिशन में 'एडवर्ड स्टीफ़ेंसन', 'विलियम हैमिल्टन' (सर्जन) तथा 'ख़्वाजा सेहुर्द' (अर्मेनियाई द्विभाषिया) शामिल थे। डॉक्टर विलियम हैमिल्टर, जिसने सम्राट फ़र्रुख़सियर को एक प्राण घातक फोड़े से निजात दिलाई थी, की सेवा से ख़ुश होकर 1717 ई. में सम्राट फ़र्रुख़सियर ने ईस्ट इंडिया कम्पनी के लिए निम्नलिखित सुविधाओं वाला फ़रमान जारी किया-

बंगाल में कम्पनी को 3000 रुपये वार्षिक देने पर निःशुल्क व्यापार का अधिकार मिल गया।
कम्पनी को कलकत्ता के आस-पास की भूमि किराये पर लेने का अधिकार दे दिया गया।
कम्पनी द्वारा बम्बई की टकसाल से जारी किये गये सिक्कों को मुग़ल साम्राज्य में मान्यता प्रदान की गई, और
सूरत में 10,000 रुपये वार्षिक कर देने पर निःशुल्क व्यापार का अधिकार प्राप्त हो गया।

                    जेराल्ड आंगियर--

     इतिहासकार 'ओर्म्स' ने फ़र्रुख़सियर द्वारा जारी किये गये इस फ़रमान को 'कम्पनी का महाधिकार पत्र' कहा। 1669 ई. से 1677 ई. तक बम्बई का गर्वनर 'जेराल्ड आंगियर' ही वास्तव में बम्बई का महानतम संस्थापक था। 1687 तक बम्बई पश्चिमी तट का प्रमुख व्यापारिक केन्द्र बना रहा। जेराल्ड आंगियर ने बम्बई में क़िलेबन्दी के साथ ही गोदी का निर्माण कराया तथा बम्बई नगर की स्थापना और एक न्यायालय और पुलिस दल की स्थापना की। जेराल्ड आंगियर ने बम्बई के गर्वनर के रूप में यहाँ से तांबे और चाँदी के सिक्के ढालने के लिए टकसाल की स्थापना की। जेराल्ड आंगियर के समय में बम्बई की जनसंख्या 60,000 थी। उसका उत्तराधिकारी 'रौल्ट' (1677 - 1682 ई.) हुआ था।

--भारत डिस्कव्हरी
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                    (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-भारत डिस्कव्हरी.org)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-28.02.2023-मंगळवार.
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