मेरी धरोहर-कविता सुमन-80-पत्ता पत्ता राज बग़ावत कर बैठे...

Started by Atul Kaviraje, March 02, 2023, 10:16:45 PM

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Atul Kaviraje

                                      "मेरी धरोहर"
                                    कविता सुमन-80
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मित्रो,

     आज पढेंगे, ख्यातनाम, "मेरी धरोहर" इस शीर्षक अंतर्गत, मशहूर, नवं  कवी-कवियित्रीयोकी कुछ बेहद लोकप्रिय रचनाये. आज की कविता का शीर्षक है- "पत्ता पत्ता "राज " बग़ावत कर बैठे..."

                            "पत्ता पत्ता "राज " बग़ावत कर बैठे..."   
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सहते सहते सच झूठा हो जाता है
परबत कांधे का हलका हो जाता है

डरते डरते कहना चाहा है जब भी
कहते कहते क्या से क्या हो जाता है

हल्की फुल्की बारिश में ढहते देखा
पुल जब रिश्तों का कच्चा हो जाता है

धीरे धीरे दुनिया रंग बदलती है
कल का मज़हब अब फ़ितना हो जाता है

ईश्वर को भी बहुतेरे दुःख हैं यारो
वो भी भक्तों से रुसवा हो जाता है

भीतर बहते दरिया मरते जाते हैं
धीरे-धीरे सब सहरा हो जाता है

पत्ता पत्ता "राज " बग़ावत कर बैठे
जंगल का जंगल नंगा हो जाता है

--राजमोहन चौहान
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--yashoda Agrawal
(Monday, October 14, 2013)
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                      (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-४ यशोदा.ब्लॉगस्पॉट.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-02.03.2023-गुरुवार.
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