साहित्यशिल्पी-बस्तर यात्रा वृतांत श्रंखला, आलेख - 15

Started by Atul Kaviraje, March 05, 2023, 10:29:56 PM

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Atul Kaviraje

                                     "साहित्यशिल्पी"
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मित्रो,

     आज पढते है, "साहित्यशिल्पी" शीर्षक के अंतर्गत, सद्य-परिस्थिती पर आधारित एक महत्त्वपूर्ण लेख. इस आलेख का शीर्षक है- "बस्तर यात्रा वृतांत श्रंखला, आलेख - 15 कोलाकामिनी मंदिर जिसकी छत नहीं बनायी जाती"

बस्तर यात्रा वृतांत श्रंखला, आलेख - 15 कोलाकामिनी मंदिर जिसकी छत नहीं बनायी जाती - [यात्रा वृतांत] - राजीव रंजन प्रसाद--
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     बस्तर के मंदिर अपनी विशेषताओं के लिये जाने जाते हैं। मंदिर की सीढ़ी पर बैठ कर आप किसी सिरहा, किसी गुनिया या गाँव के किसी सयान से कहानी सुनेंगे तो अभिभूत हुए बिना नहीं रह सकेंगे। ये कहानियाँ अभूतपूर्व चमत्कारों की नहीं है, अलौकिक शक्तियों या संग्रामों की नहीं हैं अपितु लोकजीवन के कंधे से कंधा मिला कर खड़ी हैं। दंतेवाड़ा जिले के अनेक रहस्यपूर्ण तथा ऐतिहासिक महत्व के धार्मिक स्थलों में एक है कोलाकामिनी मंदिर। यह मंदिर ऐतिहासिक महत्व के गाँव समलूर में है जहाँ नाग शासन काल का एक भव्य शिवमंदिर भी अवस्थित है। जंगलों के बीच प्रकृति की नैसर्गिकता के साथ और शंखिनी-डंकिनी नदी के संगम से केवल एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह मंदिर अपनी अनेक विशेषताओं के कारण जन-आकर्षण का केंद्र तो है ही, पर्यटन विकसित करने का आयाम भी बन सकता है।

     देवी कोलाकामिनी को दो अन्य नामों जलकामिनी तथा तपेश्वरी माता के नामों से भी जाना जाता है। इन तीनों ही नामों से परिचय की पृथक पृथक कहानियाँ हैं। माता के कालिया अर्थात सिंह वाहन होने के कारण नाम कोलाकामिनी, जालंगा झोड़ी (जल स्त्रोत) के तट पर स्थित होने के कारण जलकामिनी एवं काली पहाड़ के नीचे तपमुद्रा में अवस्थित होने के कारण तपेश्वरी नाम दिये गये हैं। ये तीनों ही नाम समान रूप से प्रचलन में हैं तथापि तपेश्वरी माता होने की ख्याति अधिक इसलिये है चूंकि तपमुद्रा की प्रतिमा को खुले आकाश के नीचे इस दृष्टिकोण से स्थापित रखा गया है जिससे कि उनकी तपस्या में किसी तरह का व्यवधान उत्पन्न न हो। आस्थायें कितने सुंदर तर्क सामने रखती हैं और परम्परायें उनकी जटिलताओं का अक्षरश: निर्वहन करती हैं। प्रतिमा और आस्थायें दो अलग अलग कहानियाँ वर्णित करती हैं जो कुछ बाह्य निरीक्षण से ज्ञात होता है उसके अनुसार यह भरवी की प्रतिमा है जिसमें त्रिशूल और डमरू स्पष्टत: दिखाई पडते हैं। प्रतिमा को चांदी के आभूषणों और वस्त्रों से ढक दिया गया है अत: सम्बंधित बारीक जानकारियों को प्रस्तुत करना मुमकिन नहीं है।

--राजीव रंजन प्रसाद
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                     (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-साहित्यशिल्पी.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-05.03.2023-रविवार.
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