साहित्यशिल्पी-बस्तर यात्रा वृतांत श्रंखला, आलेख - 15

Started by Atul Kaviraje, March 06, 2023, 10:38:48 PM

Previous topic - Next topic

Atul Kaviraje

                                      "साहित्यशिल्पी"
                                     ---------------

मित्रो,

     आज पढते है, "साहित्यशिल्पी" शीर्षक के अंतर्गत, सद्य-परिस्थिती पर आधारित एक महत्त्वपूर्ण लेख. इस आलेख का शीर्षक है- "बस्तर यात्रा वृतांत श्रंखला, आलेख - 15 कोलाकामिनी मंदिर जिसकी छत नहीं बनायी जाती"

बस्तर यात्रा वृतांत श्रंखला, आलेख - 15 कोलाकामिनी मंदिर जिसकी छत नहीं बनायी जाती - [यात्रा वृतांत] - राजीव रंजन प्रसाद--
------------------------------------------------------------------------

     यह मंदिर इस लिये भी विशेष है चूंकि जिया परिवार के लोग ही यहाँ के परम्परागत पुजारी हैं इस तरह दंतेवाड़ा और दंतेश्वरी मंदिर से भी देवी कोलाकामिनी का सम्बंध स्वत: ही जुड़ जाता है। इस खुले आकाश के नीचे स्थित मंदिर में मुख्य रूप से निकटवर्ती सात गावों आलनार, कुण्डेनार, बड़े सुरोखी, छोटे सुरोखी, सियानार, समलूर एवं बुधपदर की आस्थायें जुडी हुई हैं व उनके ही संरक्षण में यहाँ नित्य सुबह शाम पूजा-आरती सम्पन्न होती है। इस देवी स्थान पर प्रत्येक बैशाख शुक्ल पक्ष में मेला लगता है और निकटवर्ती गावों के हजारों लोग इसमें सम्मिलित होते हैं। शारदीय तथा बासंतिक नवरात्रि में देवी दुर्गा की पूजा प्रार्थना यहाँ नियमपूर्वक होती है, सैंकडों दीप यहाँ इस अवसर पर दैनिक रूप से प्रज्ज्वलित किये जाते हैं, इस अवसर पर यहाँ कलश स्थापना भी की जाती है एवं हवन पश्चात शंखिनी डंकिनी नदी में उसे विसर्जित कर दिया जाता है। यह स्थान इतना नैसर्गिक और प्रकृति की गोद में अवस्थित है कि स्वत: ही आपकी मन में पवित्र भावनाओं का अभ्युदय होता है।

     समलूर क्षेत्र केवल प्राचीन शिव मंदिर अथवा कोलाकामिनी माता के मंदिर के लिये ही नहीं जाना जाता अपितु यदि पुरातात्विक दृष्टि से समुचित शोध किया जाये तो निकटस्थ बहुत सी प्राचीन प्रतिमायें अथवा बहत्व के अवशेष निश्चित ही प्राप्त होंगे। कुछ देर की खोजबीन में ही मुझे एक राजपुरुष की प्रतिमा जमीन में आधी धँसी हुई, एक देवी चरण चिन्ह व कुछ प्राचीन मंदिर के भग्नावशेष आस-पास ही प्राप्त हुए हैं। बस्तर में जो कुछ खोज लिया गया है वह तो महत्व का है ही किन्तु जो कुछ नहीं खोजा गया है वह दबे-छिपे हमारी अवधारणाओं को निरंतर चुनौती देता है जिसके आधार पर हमने बस्तर को सतत पिछडा निरूपित किया हुआ है। बस्तर के इतिहास ने अनेक करवटें देखी हैं जो यहाँ निरंतर प्राप्त होती पुरातात्विक महत्व की प्रतिमाओं से स्पष्ट हो जाता है।

--राजीव रंजन प्रसाद
------------------

                     (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-साहित्यशिल्पी.कॉम)
                     ----------------------------------------   

-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-06.03.2023-सोमवार.
=========================================