मेरी धरोहर-कविता सुमन-87-मैं अपनी सलीब आप उठा लूँ...

Started by Atul Kaviraje, March 09, 2023, 10:25:00 PM

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Atul Kaviraje

                                      "मेरी धरोहर"
                                    कविता सुमन-87
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मित्रो,

     आज पढेंगे, ख्यातनाम, "मेरी धरोहर" इस शीर्षक अंतर्गत, मशहूर, नवं  कवी-कवियित्रीयोकी कुछ बेहद लोकप्रिय रचनाये. आज की कविता का शीर्षक है- "मैं अपनी सलीब आप उठा लूँ..."

                             "मैं अपनी सलीब आप उठा लूँ..."   
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फूलों से लहू कैसे टपकता हुआ देखूँ
आंखो को बुझा लूँ कि हक़ीक़त को बदल दूं

हक़ की बात कहूंगा मगर ऐ जुर्रत-ऐ- इज़हार
जो बात न कहनी हो वही बात न कह दूं

हर सोच पे खंजर-सा गुज़र जाता है दिल से
हैरां हूं कि सोचूं तो किस अंदाज़ में सोचूं

आंखे तो दिखाती हैं फ़क़त बर्फ़-से पैकर
जल जाती हैं पोरें जो किसी जिस्म को छू लूं

चेहरे हैं कि मरमर से तराशी हुई लौहें
बाज़ार में या शहरे-ख़ामोशां में खड़ा हूं

सन्नाटे उड़ा देते हैं आवाजों के पुर्ज़े
यारों को अगर दस्त-ए-मुसीबत में पुकारूँ

मिलती नहीं जब मौत भी मांगे से, तो या रब
हो इज़्न तो मैं अपनी सलीब आप उठा लूँ

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हक़ः सच, जुर्रत-ए- इज़हारः अभिव्यक्ति का साहस, बर्फ़-से पैकरः आकृति,
लौहें: पत्थर के टुकड़े सलीब लिखकर क़ब्र में लगाते हैं,
शहरे-ख़ामोशां: क़ब्रिस्तान, दस्त-ए-मुसीबतः मुसीबत का जंगल,
इज़्नः इज़ाज़त
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-अहमद नदीम क़ासमी
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(यह रचना मुझे दैनिक भास्कर के रसरंग पृष्ट से प्राप्त हुई)
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--yashoda Agrawal
(Friday, October 04, 2013)
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                     (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-४ यशोदा.ब्लॉगस्पॉट.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-09.03.2023-गुरुवार.
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