साहित्यशिल्पी-होली महोत्सव [इतिहास व आलेख]

Started by Atul Kaviraje, March 10, 2023, 10:38:41 PM

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Atul Kaviraje

                                    "साहित्यशिल्पी"
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मित्रो,

     आज पढते है, "साहित्यशिल्पी" शीर्षक के अंतर्गत, सद्य-परिस्थिती पर आधारित एक महत्त्वपूर्ण लेख. इस आलेख का शीर्षक है- "होली महोत्सव [इतिहास व आलेख]"

                 होली महोत्सव [इतिहास व आलेख]- डॉ अ कीर्तिवर्धन--
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होली का त्यौहार है ,प्यार और मनुहार का,
रंगों का साथ है ,अबीर और गुलाल का ।

     होली हिन्दुओँ का वैदिक कालीन पर्व है । इसका प्रारंभ कब हुआ , इसका कहीं उल्लेख या कोई आधार नहीं मिलता है । परन्तु वेदों एवं पुराणों में भी इस त्यौहार के प्रचलित होने का उल्लेख मिलता है । प्राचीन काल में होली की अग्नि में हवन के समय वेद मंत्र " रक्षोहणं बल्गहणम " के उच्चारण का वर्णन आता है।

     होली पर्व को भारतीय तिथि पत्रक के अनुसार वर्ष का अन्तिम त्यौहार कहा जाता है । यह पर्व फाल्गुन मास की पूर्णिमा को संपन्न होने वाला सबसे बड़ा त्यौहार है । इस अवसर पर बड़े -बूढ़े ,युवा -बच्चे, स्त्री-पुरुष सबमे ही जो उल्लास व उत्साह होता है, वह वर्ष भर में होने वाले किसी भी उत्सव में दिखाई नहीं देता है । कहा जाता है कि प्राचीन काल में इसी फाल्गुन पूर्णिमा से प्रथम चातुर्मास सम्बन्धी "वैश्वदेव " नामक यज्ञ का प्रारंभ होता था, जिसमे लोग खेतों में तैयार हुई नई आषाढी फसल के अन्न -गेहूं,चना आदि की आहुति देते थे और स्वयं यज्ञ शेष प्रसाद के रूप में ग्रहण करते थे । आज भी नई फसल को डंडों पर बांधकर होलिका दाह के समय भूनकर प्रसाद के रूप में खाने की परम्परा "वैश्वदेव यज्ञ " की स्मृति को सजीव रखने का ही प्रयास है । संस्कृत में भुने हुए अन्न को होलका कहा जाता है । संभवत : इसी के नाम पर होलिकोत्सव का प्रारंभ वैदिक काल के पूर्व से ही किया जाता है ।

     यज्ञ के अंत में यज्ञ भष्म को मस्तक पर धारण कर उसकी वन्दना की जाती थी , शायद उसका ही विकृत रूप होली की राख को लोगों पर उड़ाने का भी जान पड़ता है । समय के साथ साथ अनेक ऐतिहासिक स्मृतियां भी इस पर्व के साथ जुड़ती गई :-

                  नारद पुराण के अनुसार ---

     परम भक्त प्रहलाद की विजय और हिरन्यक्शिपु की बहन " होलिका " के विनाश का स्मृति दिवस है । कहा जाता है कि होलिका को अग्नि में नहीं जलने का आशीर्वाद प्राप्त था । हिरन्यक्शिपु व होलिका राक्षक कुल के बहुत अत्याचारी थे । उनके घर में पैदा प्रहलाद भगवान् भक्त था , उसको ख़त्म करने के लिए ही होलिका उसे गोद में लेकर अग्नि में बैठी थी मगर प्रभु की कृपा से प्रहलाद बच गया और होलिका उस अग्नि में ही दहन हो गई । शायद इसीलिए इस पर्व को होलिका दहन भी कहते हैं ।

     भविष्य पुराण के अनुसार कहा जाता है कि महाराजा रघु के राज्यकाल में " ढुन्दा "नामक राक्षसी के उपदर्वों से निपटने के लिए महर्षि वशिष्ठ के आदेशानुसार बालकों को लकड़ी की तलवार-ढाल आदि लेकर हो-हल्ला मचाते हुए स्थान स्थान पर अग्नि प्रज्वलन का आयोजन किया गया था । शायद वर्तमान में भी बच्चों का हो-हल्ला उसी का प्रतिरूप है ।

     होली को बसंत सखा "कामदेव" की पूजा के दिन के रूप में भी वर्णित किया गया है ।

     "धर्माविरुधोभूतेषु कामोअस्मि भरतर्षभ " के अनुसार धर्म संयत काम संसार में ईश्वर की ही विभूति माना गया है । आज के दिन कामदेव की पूजा किसी समय सम्पूर्ण भारत में की जाती थी । दक्षिण में आज भी होली का उत्सव " मदन महोत्सव " के नाम से ही जाना जाता है ।

      वैष्णव लोगों के किये यह " दोलोत्सव" का दिन है । ब्रह्मपुराण के अनुसार --

नरो दोलागतं दृष्टा गोविंदं पुरुषोत्तमं ।
फाल्गुन्यां संयतो भूत्वा गोविन्दस्य पुरं ब्रजेत ।।

     इस दिन झूले में झुलते हुए गोविन्द भगवान के दर्शन से मनुष्य बैकुंठ को प्राप्त होता है । वैष्णव मंदिरों में भगवान् श्री मद नारायण का आलौकिक श्रृंगार करके नाचते गाते उनकी पालकी निकाली जाती है । कुछ पंचांगों के अनुसार संवत्सर का प्रारंभ कृषण पक्ष के प्रारंभ से और कुछ के अनुसार शुक्ल प्रतिपदा से माना जाता है । पूर्वी उत्तर प्रदेश में पूर्णिमा पर मासांत माना जाता है जिसके कारण फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा को वर्ष का अंत हो जाता है और अगले दिन चैत्र कृषण प्रतिपदा से नव वर्ष आरम्भ हो जाता है । इसीलिए वहां पर लोग होली पर्व को संवत जलाना भी कहते हैं । क्योंकि यह वर्षांत पूर्णिमा है अत: आज के दिन सब लोग हंस गाकर रंग-अबीर से खेलकर नए वर्ष का स्वागत करते हैं ।

--डॉ अ कीर्तिवर्धन
मुज़फ्फरनगर-उत्तर प्रदेश
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                     (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-साहित्यशिल्पी.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-10.03.2023-शुक्रवार.
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