साहित्यशिल्पी-होली महोत्सव [इतिहास व आलेख]

Started by Atul Kaviraje, March 11, 2023, 10:39:19 PM

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Atul Kaviraje

                                     "साहित्यशिल्पी"
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मित्रो,

     आज पढते है, "साहित्यशिल्पी" शीर्षक के अंतर्गत, सद्य-परिस्थिती पर आधारित एक महत्त्वपूर्ण लेख. इस आलेख का शीर्षक है- "होली महोत्सव [इतिहास व आलेख]"

                 होली महोत्सव [इतिहास व आलेख]- डॉ अ कीर्तिवर्धन--
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                   इतिहास में होली का वर्णन --

     वैदिक कालीन होली की परम्परा का उल्लेख अनेक जगह मिलता है । जैमिनी मीमांशा दर्शनकार ने अपने ग्रन्थ में " होलिकाधिकरण" नामक प्रकरण लिखकर होली की प्राचीनता को चिन्हित किया है । विन्ध्य प्रदेश के रामगढ़ नामक स्थान से 300 ईशा पूर्व का एक शिलालेख बरामद हुआ है जिसमे पूर्णिमा को मनाये जाने वाले इस उत्सव का उल्लेख है । वात्सायन महर्षि ने अपने कामसूत्र में " होलाक" नाम से इस उत्सव का उल्लेख किया है । इसके अनुसार उस समय परस्पर किंशुक यानी ढाक के पुष्पों के रंग से तथा चन्दन-केसर आदि से खेलने की परम्परा थी । सातवी सदी में विरचित "रत्नावली" नाटिका में महाराजा हर्ष ने होली का वर्णनकिया है । ग्यारहवीं शताब्दी में मुस्लिम पर्यटक "अलबरूनी" ने भारत में होली के उत्सव का वर्णन किया है । तत्कालीन मुस्लिम इतिहासकारों के वर्णन से पता चलता है कि उस समय हिन्दू और मुसलमान मिलकर होली मनाया करते थे । सम्राट अकबर और जहांगीर के समय में शाही परिवार में भी इसे बड़े समारोह के रूप में मनाये जाने के उल्लेख हैं ।

                      विश्व व्यापी पर्व है होली --

     होलिकोत्सव विश्व व्यापी पर्व है । भारतीय व्यापारियों के कालांतर में विदेशों में बस जाने के बावजूद उनकी स्मृतियों में यह त्यौहार रचा बसा है और समय के साथ साथ यह पर्व उन देशों की आत्मा से मिलजुल कर , मगर मौलिक भावना संजोते हुए विभिन्न रूपों में आज भी प्रचलित है ।

     इटली में यह उत्सव फरवरी माह में "रेडिका " के नाम से मनाया जाता है ।शाम के समय लोग भांति -भांति के स्वांग बनाकर "कार्निवल" की मूर्ति के साथ रथ पर बैठकर विशिष्ट सरकारी अधिकारी की कोठी पर पहुंचते हैं । फिर गाने-बजाने के साथ यह जुलुस नगर के मुख्य चौक पर आता है । वहां पर सूखी लकड़ियों में इस रथ को रखकर आग लगा दी जाती है । इस अवसर पर लोग खूब नाचते-गाते हैं और हो-हल्ला मचाते हैं ।

     फ़्रांस के नार्मन्दी नामक स्थान में घास से बनी मूर्ति को शहर में गाली देते हुए घुमाकर, लाकर आग लगा देते हैं । बालक कोलाहल मचाते हुए प्रदक्षिणा करते हैं ।

     जर्मनी में ईस्टर के समय पेड़ों को काटकर गाड दिया जाता है। उनके चारों तरफ घास-फूस इकट्ठा करके आग लगा दी जाती है । इस समय बच्चे एक दुसरे के मुख पर विविध रंग लगाते हैं तथा लोगों के कपड़ों पर ठप्पे लगा कर मनोविनोद करते हैं ।

     स्वीडन नार्वे में भी शाम के समय किसी प्रमुख स्थान पर अग्नि जलाकर लोग नाचते गाते और उसकी प्रदक्षिणा करते हैं । उनका विश्वास है की इस अग्नि परिभ्रमण से उनके स्वास्थ्य की अभिवृद्धि होती है ।

     साइबेरिया में बच्चे घर-घर जाकर लकड़ी इकट्ठा करते हैं । शाम को उनमे आग लगाकर स्त्री -पुरुष हाथ पकड़कर तीन बार अग्नि परिक्रमा कर उसको लांघते हैं ।

     अमेरिका में होली का त्यौहार " हेलोईन " के नाम से 31 अक्टूबर को मनाया जाता हैं ।" अमेरिकन रिपोर्टर" ने अपने 12 मार्च 1954 के अंक में लिखा :- हैलोइन का त्यौहार अनेक दृष्टि से भारत के होली त्यौहार से मिलता-जुलता है । जब पुरानी दुनिया के लोग अमेरिका पहुंचे थे तो अपने साथ हैलोइन का त्यौहार भी लाये थे । इस अवसर पर शाम के समय विभिन्न स्वांग रचकर नाचने-कूदने व खेलने की परम्परा है ।

--डॉ अ कीर्तिवर्धन
मुज़फ्फरनगर-उत्तर प्रदेश
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                     (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-साहित्यशिल्पी.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-11.03.2023-शनिवार.
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