साहित्यशिल्पी-होली महोत्सव [इतिहास व आलेख]

Started by Atul Kaviraje, March 12, 2023, 10:33:40 PM

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Atul Kaviraje

                                     "साहित्यशिल्पी"
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मित्रो,

     आज पढते है, "साहित्यशिल्पी" शीर्षक के अंतर्गत, सद्य-परिस्थिती पर आधारित एक महत्त्वपूर्ण लेख. इस आलेख का शीर्षक है- "होली महोत्सव [इतिहास व आलेख]"

                होली महोत्सव [इतिहास व आलेख]- डॉ अ कीर्तिवर्धन--
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                  होली पर्व का वैज्ञानिक आधार :--

     भारत ऋषि मुनियों का देश है । ऋषि-मुनि यानी उस समय के वैज्ञानिक जिनका सार चिंतन- दर्शन विज्ञान की कसौटी पर खरा-,परखा, प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करता रहा है । पश्चिम के लोग भारत को भूत-प्रेत व सपेरों का देश कहते हैं ,मगर वह भूल जाते हैं कि विश्व में भारत ही एक मात्र देश है जिसके सारे त्यौहार, पर्व ,पूजा पाठ, चिंतन-दर्शन सब विज्ञान की कसौटी पर खरा- परखा है । हमारे ऋषि-मुनियों ने विज्ञान व धर्म का ताना-बाना बुना और ताने-बाने से निर्मित इस चदरिया को त्योहारों व पर्वों के नाम से समाज के अंग-अंग में प्रचलित किया ।

     भारत में मनाया जाने वाला होली पर्व भी विज्ञान पर आधारित है । इसकी प्रत्येक क्रिया प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मानव स्वास्थ्य और शक्ति को प्रभावित कराती है । एक रात में ही संपन्न होने वाला होलिका दहन ,जाड़े और गर्मी की ऋतू संधि में फूट पड़ने वाली चेचक,मलेरिया,खसरा तथा अन्य संक्रामक रोग कीटाणुओं के विरुद्ध सामूहिक अभियान है । स्थान -स्थान पर प्रदीप्त अग्नि आवश्यकता से अधिक ताप द्वारा समस्त वायुमंडल को उष्ण बनाकर सर्दी में सूर्य की समुचित उष्णता के अभाव से उत्पन्न रोग कीटाणुओं का संहार कर देती है । होलिका प्रदक्षिणा के दौरान 140 डिग्री फारनहाईट तक का ताप शरीर में समाविष्ट होने से मानव के शरीरस्थ समस्त रोगात्मक जीवाणुवों को भी नष्ट कर देता है ।

     होली के अवसर पर होने वाले नाच-गान ,खेल-कूद ,हल्ला-गुल्ला ,विविध स्वांग, हंसी -मजाक भी वैज्ञानिक दृष्टि से लाभप्रद हैं । शास्त्रानुसार बसंत में रक्त में आने वाला द्रव आलस्य कारक होता है । बसंत ऋतु में निंद्रा की अधिकता भी इसी कारण होती है । यह खेल-तमाशे इसी आलस्य को भगाने में सक्षम होते हैं ।

महर्षि सुश्रुत ने बसंत को कफ पोषक ऋतु माना है ।

कफश्चितो हि शिशिरे बसन्तेअकार्शु तापित: ।
हत्वाग्निं कुरुते रोगानातस्तं त्वरया जयेतु ।।

अर्थात शिशिर ऋतू में इकट्ठा हुआ कफ ,बसंत में पिघलकर कुपित होकर जुकाम, खांसी,श्वास , दमा आदि रोगों की सृष्टि करता है और इसके उपाय के लिए ---

तिक्ष्नैर्वमननस्याधैर्लघुरुक्षैश्च भोजनै:।
व्यायामोद्वर्तघातैर्जित्वा श्लेष्मान मुल्बनं ।।

     अर्थात तीक्षण वमन,लघु रुक्ष भोजन,व्यायाम,उद्वर्तन और आघात आदि काफ को शांत करते हैं । ऊँचे स्वर में बोलना, नाचना, कूदना, दौड़ना-भागना सभी व्यायामिक क्रियाएं हैं जिससे कफ कोप शांत हो जाता है ।

     होली रंगों का त्यौहार है । रंगों का हमारे शारीर और स्वास्थ्य पर अद्भुत प्रभाव पड़ता है । प्लाश अर्थात ढाक के फूल यानी टेसुओं का आयुर्वेद में बहुत ही महत्व पूर्ण स्थान है । इन्ही टेसू के फूलों का रंग मूलत: होली में प्रयोग किया जाता है । टेसू के फूलों से रंगा कपड़ा शारीर पर डालने से हमारे रोम कूपों द्वारा स्नायु मंडल पर प्रभाव पड़ता है । और यह संक्रामक बीमारियों से शरीर को बचाता है ।

--डॉ अ कीर्तिवर्धन
मुज़फ्फरनगर-उत्तर प्रदेश
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                     (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-साहित्यशिल्पी.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-12.03.2023-रविवार.
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