महावीर जयंती-निबंध-2

Started by Atul Kaviraje, April 04, 2023, 11:47:47 AM

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Atul Kaviraje


                                      "महावीर जयंती"
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मित्रो,

     आज दिनांक-०४.०४.२०२३-मंगळवार है. आज "महावीर जयंती" है. जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्मोत्सव इस वर्ष 04 अप्रैल, मंगळवार यानी मनाया जाएगा। जैन धर्म के अनुयायी महावीर जयंती को हर्षोल्लास से मनाते हैं। भगवान महावीर स्वामी का जन्म 599 ईसा पूर्व बिहार के कुंडलपुर के राज घराने में हुआ था। इनके माता का नाम त्रिशला और पिता सिद्धार्थ थे। हिंदी कविताके मेरे सभी भाई-बहन कवी-कवियित्रीयोको महावीर जयंती की बहोत सारी हार्दिक शुभकामनाये. आईए, पढते है, महावीर जयंती पर निबंध.

     'महावीर जयंती' जैन सम्प्रदाय का प्रसिद्द त्यौहार है। महावीर जयंती भगवान महावीर के जन्मदिन के रूप में मनाई जाती है। भगवान महावीर अंतिम तीर्थंकर थे। यह त्यौहार हिन्दू कैलेंडर के अनुसार मार्च- अप्रैल के महीने में पड़ता है।

     महावीर का जन्म राजघराने में हुआ था। उनके पिता का नाम राजा सिद्धार्थ एवं माता का नाम रानी त्रिसला था। उनका जन्म हिन्दू कैलेंडर के चैत्र माह के शुक्ल पक्ष क़ी त्रयोदशी को हुआ था।

     महावीर जयंती के दिन महावीर जी क़ी झाकियां एवं शोभा-यात्रा निकाली जाती हैं। सम्पूर्ण भारत में जैन मंदिरों में पूजा-अर्चना क़ी जाती है। जैन सम्प्रदाय के लोग विभिन्न प्रकार क़ी समाज सेवा करते हैं महावीर जी के नाम पर दान इत्यादि करते हैं।

     महावीर स्वामी के जन्म स्थान के विषय में बहुत से मतभेद है, कुछ लोग कहते हैं कि, इनका जन्म कुंडलीग्राम, वैशाली, लछौर, जामुई, कुंदलपुर, नालंदा या बसोकुंड में हुआ था। यद्यपि, उनके जन्म स्थान के बारे में अभी भी अनिश्चिताएं हैं। इनके माता-पिता पारसव के महान अनुयायी थे। इनका नाम महावीर रखा गया, जिसका अर्थ है महान योद्धा; क्योंकि इन्होंने बचपन में ही भयानक साँप को नियंत्रित कर लिया था। इन्हें सनमंती, वीरा और नातापुत्ता (अर्थात् नाता के पुत्र) के नाम से भी जाना जाता है। इनकी शादी के संदर्भ में भी बहुत अधिक मतभेद है, कुछ लोगों का मानना है कि, ये अविवाहित थे, वहीं कुछ लोग मानते हैं कि, इनका विवाह यशोदा से हुआ था और इनकी एक पुत्री भी थी, जिसका नाम प्रियदर्शना था।

     30 वर्ष की आयु में घर छोड़ने के बाद ये गहरे ध्यान में लीन हो गए और इन्होंने बहुत अधिक कठिनाईयों और परेशानियों का सामना किया। बहुत वर्षों के ध्यान के बाद इन्हें शक्ति, ज्ञान और आशीर्वाद की अनुभूति हुई। ज्ञान प्राप्ति के बाद, इन्होंने लोगों वास्तविक जीवन के दर्शन, उसके गुण और जीवन के आनंद से शिक्षित करने के लिए यात्रा की। इनके दर्शन के पांच यथार्थ सिद्धान्त अहिंसा, सत्य, असत्ये, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह थे। इनके शरीर को 72 वर्ष की आयु में निर्वाण प्राप्त हुआ और इनकी पवित्र आत्मा शरीर को छोड़कर और निर्वाण अर्थात् मोक्ष को प्राप्त करके सदैव के लिए स्वतंत्र हो गई। इनकी मृत्यु के बाद इनके शरीर का क्रियाक्रम पावापुरी में किया गया, जो अब बड़े जैन मंदिर, जलमंदिर के नाम से प्रसिद्ध है।

                        (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-हिंदी गाईड्स.इन)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-04.04.2023-मंगळवार.
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