महावीर जयंती-निबंध-3

Started by Atul Kaviraje, April 04, 2023, 11:49:13 AM

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Atul Kaviraje

                                      "महावीर जयंती"
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मित्रो,

     आज दिनांक-०४.०४.२०२३-मंगळवार है. आज "महावीर जयंती" है. जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्मोत्सव इस वर्ष 04 अप्रैल, मंगळवार यानी मनाया जाएगा। जैन धर्म के अनुयायी महावीर जयंती को हर्षोल्लास से मनाते हैं। भगवान महावीर स्वामी का जन्म 599 ईसा पूर्व बिहार के कुंडलपुर के राज घराने में हुआ था। इनके माता का नाम त्रिशला और पिता सिद्धार्थ थे। हिंदी कविताके मेरे सभी भाई-बहन कवी-कवियित्रीयोको महावीर जयंती की बहोत सारी हार्दिक शुभकामनाये. आईए, पढते है, महावीर जयंती पर निबंध.

                महावीर जयंती पर निबंध--

     भगवान महावीर जैन धर्म के प्रवर्तक थे। इनका जन्म आज से लगभग 2500 वर्ष पहले लिच्छवी वंश के राजा सिद्धार्थ के यहाँ हुआ था। इनके पिता क्षत्रिय जाति के थे। उनकी माँ का नाम त्रिषला देवी था। इनकी माँ एक धार्मिक महिला थीं।

     महावीर का बचपन का नाम वर्धमान था। किशोरावस्था में इन्होंने एक बार एक मद्मस्त हाथी को वश में कर लिया था। इसी प्रकार एक बार एक भयंकर नाग भी इन्होंने काबू में कर दिखाया था। उसी कारण लोग इन्हें महावीर कहने लगे। बाल अवस्था में ही अपनी इच्छाओं और इन्द्रियों पर विजय पा लेने के कारण भी इन्हें महावीर कहा जाता है।

     इनका विवाह एक सुन्दर राजकुमारी से हुआ। पर इनका मन सांसरिक सुखों और चीजों में नहीं लगा। वह सदैव ध्यान और चिंतन मनन में रमे रहते थे। पिता के स्वर्गवास हो जाने पर इन्हें वैराग्य हो गया।

     वर्धमान का मन हर समय जनकल्याण के लिये छटपटाता रहता था। मात्र तीस वर्ष की आयु में यह घर बार छोड़कर निकल पड़े। महावीर ने बारह वर्ष तक कठोर साधना व तप किया। तत्पश्चात इन्हें कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई। फिर इन्होंने कैवल्य ज्ञान और सत्य मार्ग का उपदेश जन जन तक पहुँचाया। इनके सरल उपदेशों और व्यावहारिक ज्ञान के कारण इनके भक्त और शिष्य बढ़ते गये।

     जैन धर्म के अन्तर्गत महावीर ने जीवन का उदे्दश्य मोक्ष प्राप्त करना बताया है। उन्होंने बताया कि उच्च नैतिक आचरण, अहिंसा, चोरी न करना, झूठ न बोलना इत्यादि सद्गुणों को अपनाकर अपने जीवन को सार्थक बनाया जा सकता है। भगवान महावीर ने अपनी शिक्षा में किसी को दुख न पहुँचाने और अपनी जरूरतओं को कम से कम रखने पर बल दिया। उनके इन्हीं सद्गुणों के कारण जैन धर्म के अनुयायी उनकी श्रद्धापूर्वक पूजा अर्चना करते हैं एवं उनके सिद्धान्तों का अनुकरण करते हैं।

     महावीर स्वामी, जैन धर्म के 24वें और आखिरी तीर्थांकार, 540 ईसा. पूर्व, भारत में बिहार के एक राजसी परिवार में जन्में थे। यह माना जाता है कि, उनके जन्म के दौरान सभी लोग खुश और समृद्धि से परिपूर्ण थे, इसी कारण इन्हें वर्धमान अर्थात् विद्धि के नाम से जाना जाता है। ये राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला के घर पैदा हुए थे। यह माना जाता है कि, उनके जन्म के समय से ही इनकी माता को इनके बारे में अद्भुत सपने आने शुरु हो गए थे कि, ये या तो ये सम्राट बनेगें या फिर तीर्थांकार। उनके जन्म के बाद इन्द्रदेव द्वारा इन्हें स्वर्ग के दूध से तीर्थांकार के रुप में अनुष्ठान पूर्वक स्नान कराया गया था।

     उन्होंने 30 वर्ष की आयु में धार्मिक जागरुकता की खोज में घर त्याग दिया था और 12 वर्ष व 6 महीने के गहरे ध्यान के माध्यम से इन्हें कैवल्य अर्थात् ज्ञान प्राप्त करने में सफलता प्राप्त हुई थी। इन्होंने पूरे भारत वर्ष में यात्रा करना शुरु कर दिया और लोगों को सत्य, असत्ये, अहिंसा, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह की शिक्षा देते हुए 30 वर्षों तक लगातार यात्रा की। 72 वर्ष की आयु में इन्होंने निर्वाण को प्राप्त किया और जैन धर्म के महान तीर्थांकारों में से एक बन गए, जिसके कारण इन्हें जैन धर्म का संस्थापक माना जाता है।

                       (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-हिंदी गाईड्स.इन)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-04.04.2023-मंगळवार.
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