II श्री हनुमान जयंती II-कविता-7

Started by Atul Kaviraje, April 06, 2023, 01:36:30 PM

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Atul Kaviraje

                                    II श्री हनुमान जयंती II
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मित्रो,

     आज दिनांक-०६.०४.२०२३-गुरुवार है. आज "हनुमान जयंती" है. हनुमान जयन्ती एक हिन्दू पर्व है। यह चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस दिन हनुमानजी का जन्म हुआ था यह माना जाता है। हनुमान जी को कलयुग में सबसे प्रभावशाली देवताओं में से एक माना जाता है। मराठी कविताके मेरे सभी हिंदी भाई-बहन कवी-कवयित्रीयोको हनुमान जयंती की हार्दिक शुभकामनाये. आईए, पढते है, कुछ कविताये-रचनाये.

     हम आपको बताना चाहते हैं कि हनुमानजी अंजनीपुत्र, माहा बलि, बजरंग बलिआदि नाम से प्रसिद्ध हैं। भारत में हम हनुमानजी के बहुत सारे मंदिर देख सकते हैं। कुछ मंदिर बहुत प्रसिद्ध हैं और अब वे मील के पत्थर में परिवर्तित हो गए हैं। हम इन मंदिरों का पता गूगल मैप में भी देख सकते हैं। नई दिल्ली में भी हम भगवान हनुमान के झंडेवालान मंदिर को देख सकते हैं। इस मंदिर में हनुमान जी की मूर्ति बहुत लंबी है। अब हम आपको हनुमान जी के तथ्यों के बारे में बताने जा रहे हैं।

बाल समाय रवि भक्षि लियो तब, टिन्हुं लोक गोडो अंधियारों.
ताही सो त्रास गोयो जाग को, यह संक्त काहु सोन जात न तारो.
देवन आनि करी विनती तब, चाड़ि दियो रवि क्षण निवारो.।
को नहीन जानत है जाग में कपि, संकतमोचन नाम तिहारो.।

बालि की त्रास कपीस बसाई गिरि, जात महाप्रभु पन्थ निहारो.
चुंकी महामुनि शाप दियो तब, अग्य कौन बिचारो.
काइद्विज रुप लिवाय महाप्रभु, सो तुम दास के शोक निवारो.।
को नहीन जानत है जाग में कपि, संकतमोचन नाम तिहारो.।
अंगद के संग लेन गाई सिय, खोज कपीश यह बाइन उचारो.
जीवत ना बचिहौ हम सो जु, बिना सुधि लाये इहान पगु धारो।
हेरी थके तत सिंधु सुबाब तब, लाई सिया-सुधी प्रान उबारो.।
को नहीन जानत है जाग में कपि, संकतमोचन नाम तिहारो.।
रावण त्रास दे सिय को तब, रक्षासी सो कही सोक निवारो.
ताही समाय हैनुमान महाप्रभु, जाई महा राजनीचर मारो.
चाहत सीय आसोक सोन अगिसु, दाई प्रभु मुद्रिका सोक निवारो.।
को नहीन जानत है जाग में कपि, संकतमोचन नाम तिहारो.।
बान लग्यो उर लचिमन के तब, प्रान तजे सुत रावन मारो.
लाइ ग्रह बाइड्य सुषेन समेत, तबाई गिरि ड्रोण सुबीर उपारो.
अनि संजीवन हाथ देई तब, लचिमन के तुम प्रान उबारो.।
को नहीन जानत है जाग में कपि, संकतमोचन नाम तिहारो.।
रावन युद्ध अजान कीयो तब, नाग की फान्स सुबाई सिर डारो.
श्री रागुनाथ समे साब दाल, मोह गोयो यह संकत भारो.
अनि खगेस तबाई हौनुम जु, बादन काति सुत्रास निवारो.।
को नहीन जानत है जाग में कपि, संकतमोचन नाम तिहारो.।
बंधु समेत जबाई अहिरावन, लाय रगुनाथ पाताल सिधारो.
देवहिन पुजी भली विधि सोन बलि, देव सबाब मिलि मन्त्र विचारो.
जाये सहाई गोयो तब ही, अहिरावन सिन्यर समे संहारो.।
को नहीन जानत है जाग में कपि, संकतमोचन नाम तिहारो.।
काज कीजी बद देवन के तुम, बीर महाप्रभु मेहि बिचारो.
कुन सो संकता मोर गरीब को, जो तुमसो नहीन जात है तारो.
बेगी हरो हैनुमान महाप्रभु, जो कचु संक्त होई हमार.।
को नहीन जानत है जाग में कपि, संकतमोचन नाम तिहारो.।
लाल देह लाली लसे, अरु धरी लाल लंगूर.
बजर देह दानव दलन, जाय जाय जाय कपि सूर.।

                      (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-sr-rs.फेसबुक.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-06.04.2023-गुरुवार.
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