बुद्ध पूर्णिमा-बुद्धं शरणं गच्छामि-कविता-8-A

Started by Atul Kaviraje, May 05, 2023, 10:52:05 AM

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Atul Kaviraje

                                      "बुद्ध पूर्णिमा"
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मित्रो,

     आज दिनांक-०५.०५.२०२३-शुक्रवार है. आज "बुद्ध पौर्णिमा" है. हिंदू धर्म में हर माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा पर महीने का आखिरी दिन होता है. अभी वैशाख महीना चल रहा है. 5 मई 2023 को वैशाख पूर्णिमा है, इस दिन बौद्ध धर्म के संस्थापक भगवान गौतम बुद्ध का जन्मोत्सव भी मनाया जाता है. इसे बुद्ध पूर्णिमा और बुद्ध जयंती भी कहते है. मराठी कविताके मेरे सभी हिंदी भाई-बहन, कवी-कवियित्रीयोको  बुद्ध पूर्णिमा की अनेक हार्दिक शुभकामनाये. आईए, पढते है भगवान बुद्ध की कुछ कविताये-रचनाये.

  बुद्ध के समूचे जीवन और समाज का दर्शन कराती है हरिवंश राय बच्चन की कविता--

ध्वनित-प्रतिध्वनित
तुम्हारी वाणी से हुई आधी ज़मीन
भारत, बर्मा, लंका, स्याम,
तिब्बत, मंगोलिया जापान, चीन
उठ पड़े मठ, पैगोडा, बिहार,
जिनमें भिक्षुणी, भिक्षुओं की क़तार
मुँड़ाकर सिर, पीला चीवर धार
करने लगी प्रवेश
करती इस मंत्र का उच्चार
"बुद्धं शरणम् गच्छामि,
धम्मं शरणम् गच्छामि,
संघं शरणं गच्छामि।"
कुछ दिन चलता है तेज़
हर नया प्रवाह,
मनुष्य उठा चौंक, हो गया आगाह।
वाह री मानवता,
तू भी करती है कमाल,
आया करें पीर, पैगम्बमर, आचार्य,
महंत, महात्मा हज़ार,
लाया करें अहदनामे इलहाम,
छाँटा करें अक्ल बघारा करें ज्ञान,
दिया करें प्रवचन, वाज़,
तू एक कान से सुनती,
दूसरे से देती निकाल,
चलती है अपनी समय-सिद्ध चाल।
जहाँ हैं तेरी बस्तियाँ, तेरे बाज़ार,
तेरे लेन-देन, तेरे कमाई-खर्च के स्थान,

वहाँ कहाँ हैं
राम, कृष्ण, बुद्ध, मुहम्मद, ईसा के
कोई निशान।
इनकी भी अच्छी चलाई बात,
इनकी क्या बिसात,
इनमें से कोई अवतार,
कोई स्वर्ग का पूत,
कोई स्वर्ग का दूत,
ईश्वर को भी इनसे नहीं रखने दिया हाथ।
इसने समझ लिया था पहले ही
ख़ुदा साबित होंगे ख़तरनाक,
अल्लाह, वबालेजान, फज़ीहत,
अगर वे रहेंगे मौजूद
हर जगह, हर वक्त।
झूठ-फरेब, छल-कपट, चोरी,
जारी, दग़ाबाजी, छोना-छोरी, सीनाज़ोरी
कहाँ फिर लेंगी पनाह
ग़रज़, कि बंद हो जाएगा दुनिया का सब काम,
सोचो, कि अगर अपनी प्रेयसी से करते हो तुम प्रेमालाप
और पहुँच जाएँ तुम्हारे अब्बा जान,
तब क्या होगा तुम्हारा हाल।
तबीयत पड़ जाएगी ढीली,
नशा सब हो जाएगा काफ़ूर,
एक दूसरे से हटकर दूर
देखोगे न एक दूसरे का मुँह?
मानवता का बुरा होता हाल
अगर ईश्वार डटा रहता सब जगह, सब काल।
इसने बनवाकर मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर
ख़ुदा को कर दिया है बंद
ये हैं ख़ुदा के जेल,
जिन्हें यह-देखो तो इसका व्यंग्य
कहती है श्रद्धा-पूजा के स्थान।
कहती है उनसे,
"आप यहीं करें आराम,
दुनिया जपती है आपका नाम,
मैं मिल जाऊँगी सुबह-शाम,
दिन-रात बहुत रहता है काम।"
अल्ला पर लगा है ताला,
बंदे करें मनमानी, रँगरेल।
वाह री दुनिया,
तूने ख़ुदा का बनाया है खूब मज़ाक,
खूब खेल।"

जहाँ ख़ुदा की नहीं गली दाल,
वहाँ बुद्ध की क्या चलती चाल,
वे थे मूर्ति के खिलाफ,
इसने उन्हीं की बनाई मूर्ति,
वे थे पूजा के विरुद्ध,
इसने उन्हीं को दिया पूज,
उन्हें ईश्वर में था अविश्वास,
इसने उन्हीं को कह दिया भगवान,
वे आए थे फैलाने को वैराग्य,
मिटाने को सिंगार-पटार,
इसने उन्हीं को बना दिया श्रृंगार।
बनाया उनका सुंदर आकार

उनका बेलमुँड था शीश,
इसने लगाए बाल घूंघरदार
और मिट्टी,लकड़ी, पत्थर, लोहा,
ताँबा, पीतल, चाँदी, सोना,
मूँगा, नीलम, पन्ना, हाथी दाँत
सबके अंदर उन्हें डाल, तराश, खराद, निकाल
बना दिया उन्हें बाज़ार में बिकने का सामान।
पेकिंग से शिकागो तक
कोई नहीं क्यूरियों की दूकान
जहाँ, भले ही और न हो कुछ,
बुद्ध की मूर्ति न मिले जो माँगो।
बुद्ध भगवान,
अमीरों के ड्राइंगरूम,
रईसों के मकान
तुम्हारे चित्र, तुम्हारी मूर्ति से शोभायमान।
पर वे हैं तुम्हारे दर्शन से अनभिज्ञ,
तुम्हारे विचारों से अनजान,
सपने में भी उन्हें इसका नहीं आता ध्यान।
शेर की खाल, हिरन की सींग,
कला-कारीगरी के नमूनों के साथ
तुम भी हो आसीन,
लोगों की सौंदर्य-प्रियता को
देते हुए तसकीन,
इसीलिए तुमने एक की थी
आसमान-ज़मीन ?

--हरिवंश राय बच्चन
काव्य डेस्क
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                        (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-अमर उजाला.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-05.05.2023-शुक्रवार.
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