दिन-विशेष-लेख-जागतिक वृद्धजन अवमान विरोध दिन-A

Started by Atul Kaviraje, June 15, 2023, 05:29:48 PM

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Atul Kaviraje

                                   "दिन-विशेष-लेख"
                         "जागतिक वृद्धजन अवमान विरोध दिन"
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मित्र/मैत्रिणींनो,

     आज दिनांक-15.06.2023-गुरुवार आहे, १५-जून हा दिवस "जागतिक वृद्धजन अवमान विरोध दिन" म्हणूनही ओळखला जातो. वाचूया, तर या दिवसाचे महत्त्व, आजच्या या "दिन-विशेष-लेख" या शीर्षकI-अंतर्गत.

     प्रतिवर्ष १५-जून को अंतर्राष्ट्रीय वृद्धजन दिवस के रूप में मनाया जाता है। दुनिया भर में वृद्धों के साथ हो रहे दुर्व्यवहार, भेदभाव, उपेक्षा और अन्याय को रोका जा सके, इस हेतु लोगों के अंदर जागरूकता लाने के लिये यह दिवस मनाया जाता है। इस दिवस को मनाए जाने के पीछे एक उद्देश्य यह भी है कि वृद्धजनों के प्रति सामाजिक व्यवहार बेहतर हो सके।

     संयुक्त राष्ट्र आम सभा ने वृद्धों के हितों को ध्यान में रखते हुए 14 दिसंबर, 1990 को एक संकल्प पत्र (45/106) पेश किया जिसमें वृद्धों के प्रति वैश्विक स्तर पर हो रहे बुरे बर्ताव व भेदभाव को दूर करने की बात कही गई थी। इस प्रस्ताव के आम सहमति से पारित होने पर प्रति वर्ष १५-जून को अंतर्राष्ट्रीय वृद्धजन दिवस मनाया जाने लगा। पहली बार यह दिवस १५-जून को मनाया गया। इससे पूर्व ही इसकी विस्तृत पृष्ठभूमि निर्मित हो चुकी थी। जहाँ वर्ष 1982 में इससे संबंधित वियना अंतर्राष्ट्रीय कार्य योजना प्रस्तुत की जा चुकी थी वहीं वृद्धजनों की समस्याओं को लेकर विश्व सभा भी हो चुकी थी। इन सबने संयुक्त राष्ट्र में इसकी नींव रखी। वर्ष 1999 को अंतर्राष्ट्रीय वृद्धजन वर्ष के रूप में मनाया गया।

     इस दिवस के आयोजन हेतु संयुक्त राष्ट्र प्रतिवर्ष एक थीम निर्धारित करता है। वर्ष 2020 जब कोविड महामारी वैश्विक स्तर पर आपदा का रूप ले चुकी थी और स्वास्थ्य उस एक अति महत्त्वपूर्ण मुद्दा बन गया था, तब संयुक्त राष्ट्र ने इस दिवस के लिये 'स्वस्थ युग के दशक में बहुआयामी दृष्टिकोण' जैसी थीम को प्रस्तुत किया। वर्ष 2021 में इस दिवस की थीम 'सभी उम्र के लिये डिजिटल इक्विटी' थी जो कि तकनीकी रूप से पिछड़े हुए वृद्धों के लिये एक महत्त्वपूर्ण विषय रहा। वर्ष 2022 में इस दिवस की थीम 'बदलते विश्व में वृद्धजनों का समावेशन' है। इस वर्ष यह न्यूयॉर्क, वियना और जिनेवा में ग़ैरसरकारी संगठनों द्वारा इस दिवस को मनाया जाना तय हुआ है जिसमें इस विषय से जुड़े अनेक योजनाओं पर चर्चाएँ शामिल हैं। इस वर्ष की कार्ययोजना में महिलाओं पर विशेष ध्यान देने का प्रयास किया गया है। यह समाज में महिलाओं के योगदान का एक स्मरणोत्सव भी है इसलिये विश्व स्तर पर उम्र व लिंग के आधार पर डेटा तैयार करने पर भी काफ़ी ज़ोर देने की कोशिश की गई है ताकि भविष्य की योजनाओं का प्रारूप इन आँकड़ों के आधार पर तैयार किया जा सके। इसमें सभी सदस्य देशों, संयुक्त राष्ट्र की संस्थाओं, संयुक्त राष्ट्र के महिला विभाग, सिविल सोसाइटी आदि को सम्मिलित कर योजना बनाना व समाज में लैंगिक असमानता आदि को दूर करने के लिये ठोस कदम उठाए जाने पर विचार किया जाना शामिल है।

     समय परिवर्तन के साथ जीवन जीने की गुणवत्ता में सुधार हुआ है। विज्ञान, तकनीक व स्वास्थ्य सेवाओं के बेहतर होने से जीवन प्रत्याशा में वृद्धि दर्ज की गई है। वर्ष 1950 में जीवन प्रत्याशा 46 थी जो कि वर्ष 2010 में बढ़कर 68 हो गयी। वर्ष 2019 में पूरे विश्व में ऐसी जनसंख्या जिसकी उम्र 65 वर्ष से अधिक थी, 70 करोड़ से भी अधिक रही। यदि इन आँकड़ों पर क्षेत्रवार ध्यान केंद्रित किया जाए तो हम पाएँगे कि पूर्वी और दक्षिण पूर्वी एशिया में ही या आबादी छब्बीस करोड़ से अधिक हो चुकी है तथा वर्ष 2050 तक इसके 57 करोड़ से अधिक हो जाने का अनुमान लगाया गया है। यूरोप और उत्तरी अमेरिका में 20 करोड़ से ज़्यादा बुजुर्ग हैं। दक्षिण अफ़्रीका और पश्चिम एशिया में यह आबादी 29 करोड़ से अधिक रही जिसके वर्ष 2050 तक 96 करोड़ से अधिक हो जाने की उम्मीद है। कुल मिलाकर देखें तो वर्ष 2050 तक यह आबादी 150 करोड़ से भी अधिक होने वाली है। यहाँ गौर करने वाली बात यह है कि इसमें से अधिकांश आबादी (लगभग 80 प्रतिशत से भी अधिक आबादी) ऐसे देशों की है जो निम्न या मध्यम आय वाले देश माने जाते हैं। भारत भी वर्तमान में उच्च आय वाले देशों की श्रेणी में शामिल नहीं है इसलिये यहाँ बुजुर्गों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि चुनौतियों को जन्म देने वाली है।

--अनुराग सिंह
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                         (साभार आणि सौजन्य-संदर्भ-द्रीष्टी ias.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-15.06.2023-गुरुवार.
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