दिन-विशेष-लेख-वनमहोत्सव दिन-A

Started by Atul Kaviraje, August 01, 2023, 04:47:58 PM

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Atul Kaviraje

                                   "दिन-विशेष-लेख"
                                   "वनमहोत्सव दिन"
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मित्र/मैत्रिणींनो,

     आज दिनांक-01.08.2023-मंगळवार आहे.  १ ऑगस्ट ते ७ ऑगस्ट-हा दिवस "वनमहोत्सव दिन" म्हणूनही ओळखला जातो. वाचूया, तर या दिवसाचे महत्त्व, आजच्या या "दिन-विशेष-लेख" या शीर्षकI-अंतर्गत.

            वन महोत्सव 2023 - जुलाई 01 से शुक्रवार, जुलाई 07--

     वन जीवन है। इसांन को यदि इस धरती पर जीवित रहना है तो उसे सांस लेने की जरुरत है यदि सांस लेने में ऑक्सीजन नहीं होगी तो हम जीवित भी नहीं होंगे। जिस तरह से रहना, खाना, पीना, सोना जरुरी है वैसे ही सांस लेना भी अति आवश्यक है। सांस लेने का एकमात्र जरिया है वो है वृक्ष। यदि वृक्ष नहीं होगें तो हम ताजा सांस नहीं ले सकते, हमें जरुरी तत्वों की प्राप्ति नहीं होगी। देखा जाए तो जिंदगी का पर्याय ही वृक्ष हैं। इन्हीं वृक्षों को बचाए रखने के लिए भारत में प्रतिवर्ष जुलाई माह के पहले सप्ताह को वन महोत्सव के रुप में मनाया जाता है। पूरे 1 सप्ताह तक चलने वाले इस महोत्सव का उद्देश्य मनुष्यों को वृक्षों के प्रति जागरुक करना है, उनकी महत्वता बताना है। सन् 1960 के दशक में कन्हैयालाल मणिकलाल मुंशी ने इस महोत्सव का आगाज किया था। उनसे पहले 1947 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु, राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद और मौलाना अब्दुल कलाम आजाद के प्रयासों से वन महोत्सव की शुरुआत की गई थी किन्तु यह सफल नहीं हुआ। जिसके बाद कन्हैयालाल मणिकलाल मुंशी ने इसका फिर से आगाज किया। तब से लेकर आज तक प्रतिवर्ष वृक्षों की महत्वता को ध्यान में रखते हुए वृक्ष महोत्सव जुलाई महीने में मनाया जाता है क्योंकिं जुलाई-अगस्त का महीना वर्षा ऋतु का होता है और पेड़-पौधों के उगने के लिए यह नमी का मौसम अच्छा माना जाता है। इस मौसम में पेड़-पौधे जल्दी उगते हैं। इस बार भारत में वन महोत्सव 1 जुलाई से 7 जुलाई  तक मनाया जाएगा।

             क्यों मनाया जाता है वन महोत्सव--

     कई लोगों के मन में यह सवाल आता है कि वन महोत्सव क्यों मनाना चाहिए, आखिर इसकी क्या आवश्यकता है। आज हम आधुनिक बनने की होड़ में वनों की उपयोगिता को ही भूलते जा रहे हैं। बड़े-बड़े शहर, हाईवे, सड़क, यातायात, फैक्ट्रियां इत्यादि बनाने की चाहत में वनों को ही समाप्त करते जा रहे हैं। जिससे लाखों पशु-पक्षी विलुप्त होते जा रहे हैं। एक समय था जब सुबह की शुरुआत पक्षियों की चहचाहट के साथ होती थी। घर के आंगन में गौरेया दाना चुगने आया करती आती । लेकिन आज उन आवाजों की जगह ट्रैफिक के शोर-शराबों ने ले ली है। पेड़ों की कटाई के कारण बड़ी संख्या में पशु-पक्षी, कीट-पतंगे बेघर हो गए हैं। कुछ पशु-पक्षियों का तो नामों निशान भी खत्म हो गया है। पेड़ की ठंडी हवाओं की जगह आज गाड़ियों से निकलते धुओं ने ले ली है। पेड़ों की छांव की जगह फैक्ट्रियों के कूड़े-करकट ने ले ली है। आज हम स्वच्छ हवा में सांस लेने तक को तरस गए हैं। हम पेड़ों की ताजा ठंडी हवा लेने के लिए शहरों से छुट्टी लेकर गांवों, पहाड़ों की ओर रुख करते हैं लेकिन हमारी बढ़ती लालसा के कारण शहर के बाद अब गांव-पहाड़ भी वृक्षों के अभाव में जीने को मजबूर होते जा रहे हैं। उल्लेखनीय है कि सामाजिक कार्यकर्ता अमृता देवी बिश्नोई ने कहा था कि "यदि किसी पेड़ को किसी के सिर की बली देकर भी बचाया जाता है, तो बचाना चाहिए है।" आज भारत में वृक्षों के संरक्षण के लिए कई त्यौहार, उत्सव मनाए जाते हैं। लेकिन इसके बावजूद पेड़ों के लगातार काटे जाने से हमें कई नुकसान भी हो रहे हैं। जैसे बरसात के दिनों की घटती संख्या और वर्षा की घटनाओं की तीव्रता के पीछे पेड़ों को अत्याधिक मात्रा में काटे जाना है। भारत में लंबे समय से बाढ़, सूखा, गर्मी की लहरें, चक्रवात, और अन्य प्राकृतिक आपदाओं ने अपने पैर पसारे हुए हैं। कभी तेज गर्मी से लोग तिलमिलाने लगते हैं तो कभी अंधाधुंध बारिश से, कहीं सूखा पड़ रहा है तो कई ठंड का प्रकोप बढ़ रहा है। नदी, नाले सूखते जा रहें हैं।

                  (साभार आणि सौजन्य-संदर्भ-फेस्टिवल्स ऑफ इंडिया.इन)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-01.08.2023-मंगळवार.
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