स्वतंत्रता दिवस-कविता-37

Started by Atul Kaviraje, August 15, 2023, 04:59:06 PM

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Atul Kaviraje


                                   "स्वतंत्रता दिवस"
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मित्रो,

     आज दिनांक १५.०८.२०२३-मंगलवार है. आज भारत का "स्वतंत्रता दिवस" है. सन् 1947 में इसी दिन भारत के निवासियों ने ब्रिटिश शासन से स्‍वतंत्रता प्राप्त की थी। यह भारत का राष्ट्रीय त्यौहार है। लाल किले पर फहराता तिरंगा; स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर फहरते झंडे अनेक इमारतों व स्थानों पर देखे जा सकते हैं। प्रतिवर्ष इस दिन भारत के प्रधानमंत्री लाल किले की प्राचीर से देश को सम्बोधित करते हैं। यह आज़ादी हमें 200 सालों की यातना, उत्पीड़न, युद्ध और बलिदान के बाद 15 अगस्त, 1947 को मिली. ब्रिटिश कोलोनियल शासन से कड़ी मेहनत से हासिल की गई यह आजादी लोकतंत्र का जश्न है. यह भारत के इतिहास में एक नये युग की शुरुआत का प्रतीक है। दशकों के अथक संघर्ष और बलिदान से सजी स्वतंत्रता की यात्रा कठिन थी। मराठी कविताके मेरे सभी हिंदी भाई-बहन कवी-कवयित्रीयोको इस दिन कि बहोत सारी हार्दिक शुभकामनाये. आइये पढते है कुछ कविताये, रचनाये.

हाँ कठिन है स्याहियो से पीर का विस्तार लिखना
हाँ कठिन है प्रष्ट पर जो छीन रहा अधिकार लिखना
राष्ट्र कल जो वक्ष अपना शान से ताने खड़ा था
है कठिन वो देश मेरा हो रहा लाचार लिखना

मैं मगर सामर्थ्य इसका आजमाना चाहता हूँ
मैं कलम से सो रहा भारत जगाना चाहता हूँ

वो जिन्होंने इस धरा के वास्ते निज प्राण खोए
तीर झेले छातियों पर दुश्मन के और न रोएँ
घास की रोटी चबाई महल अपने तज गार जो
पुष्प से पाले गये और कटको पर रात सोए

जिन्होंने बालपन में खेल में बंदूक बोई
अनगिनत बलिदान जिनके भूल कैसे पाए कोई
वो की जिनपर वीरता को भी अभिमान होगा
पीढियों तक याद रखे जाएगे यशगान होगा

मैं उन्ही के स्वप्न का भारत बनाना चाहता हूँ
मैं कलम से सो रहा भारत जगाना चाहता हूँ

थक गार है अब नयन इन क्रन्दनों के गुन्ज्नो से
हे विधाता आ छुडाओं रुढियों के बन्धनों से
कंठ मेरा हो गया है पीर के गीतों से आहत
पुष्प बेसुध हो गये कंटक के ज्यो आलिंगनों से

मैं अमन के गीत फिर से गुनगुनाना चाहता हूँ
मैं कलम से सो रहा भारत जगाना चाहता हूँ

लेखनी ललकारती आओ मिटाएं हर कुरीति
खत्म कर दे द्वेष हिंसा, स्वार्थ सिंचित राजनीति
जो मिले हमसे कहें अब हर तरह ही रौशनी है
कोई भी अब न सुनाए आसुओं की आपबीती

फिर से मैं स्वर्ण गौरेया बनाना चाहता हूँ
मैं कलम से सो रहा भारत जगाना चाहता हूँ

--निखिल महेश तुरकर
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                        (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-एस्से ऑन हिंदी.इन)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-15.08.2023-मंगळवार.   
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