श्रीकृष्ण जन्माष्टमी-कविता-8

Started by Atul Kaviraje, September 06, 2023, 08:20:17 PM

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Atul Kaviraje

                                    "श्रीकृष्ण जन्माष्टमी"
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मित्रो,

     आज दिनांक-०६.०९.२०२३-बुधवार है. आज "श्रीकृष्ण जन्माष्टमी" है. हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र में भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाता है। जानें इस साल सितंबर में कब है जन्माष्टमी- भाद्रपद कृष्ण अष्टमी तिथि 06 सितंबर को दोपहर 03 बजकर 37 मिनट से प्रारंभ होगी और 07 सितंबर 2023 को शाम 04 बजकर 14 मिनट पर समाप्त होगी। मराठी कविताके मेरे सभी हिंदी भाई-बहन, कवी-कवियित्रीयोको श्रीकृष्ण जन्माष्टमीकी बहोत सारी दिली शुभकामनाये. आईये, पढते है जन्माष्टमी पर कविता.

     जन्माष्टमी पर्व का हिन्दू धर्म में बहुत महत्व माना गया है | इस पर्व को भगवान श्री कृष्ण के जन्म दिवस के रूप में मनाया जता है | जन्माष्टमी को अलग-अलग नाम से जाना जाता है जैसे बहुत नाम है जैसे कृष्णाष्टमी, गोकुलाष्टमी, अष्टमी रोहिणी, श्री कृष्ण जयंती, श्री कृष्णा जयंती आदि | वर्ष 2023 में जन्माष्टमी 6 सितम्बर को मनाई जाएगी | भगवान श्री कृषण के रूपों, नाम व बाल लीला को जन्माष्टमी कविता Krishna Janmashtami Poem भगवान कृष्ण पर कविताएं में दर्शाया है |

               भगवान कृष्ण पर कविता/जन्माष्टमी पर कविता--

कृष्ण तुम पर क्या लिखूं! कितना लिखूं
रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिखूं!

प्रेम का सागर लिखूं! या चेतना का चिंतन लिखूं
प्रीति की गागर लिखूं या आत्मा का मंथन लिखूं
रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिखूं

ज्ञानियों का गुंथन लिखूं या गाय का ग्वाला लिखूं
कंस के लिए विष लिखूं या भक्तों का अमृत प्याला लिखूं
रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिखूं!

पृथ्वी का मानव लिखूं या निर्लिप्त योगेश्वर लिखूं
चेतना चिंतक लिखूं या संतृप्त देवेश्वर लिखूं
रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिखूं

जेल में जन्मा लिखूं या गोकुल का पलना लिखूं
देवकी की गोदी लिखूं या यशोदा का ललना लिखूं
रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिखूं

गोपियों का प्रिय लिखूं या राधा का प्रियतम लिखूं
रुक्मणि का श्री लिखूं या सत्यभामा का श्रीतम लिखूं
रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिखूं

देवकी का नंदन लिखूं या यशोदा का लाल लिखूं
वासुदेव का तनय लिखूं या नंद का गोपाल लिखूं
रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिखूं

नदियों-सा बहता लिखूं या सागर-सा गहरा लिखूं
झरनों-सा झरता लिखूं या प्रकृति का चेहरा लिखूं
रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिखूं

आत्मतत्व चिंतन लिखूं या प्राणेश्वर परमात्मा लिखूं
स्थिर चित्त योगी लिखूं या यताति सर्वात्मा लिखूं
रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिखूं

कृष्ण तुम पर क्या लिखूं! कितना लिखूं
रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिखूं

--Anil Saini
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                           (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-rkअलर्ट.इन)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-06.09.2023-बुधवार. 
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