हरतालिका तीज-निबंध-7

Started by Atul Kaviraje, September 18, 2023, 07:49:38 PM

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Atul Kaviraje

                                     "हरतालिका तीज"
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मित्रो,

     आज दिनांक-१८.०९.२०२३-सोमवार है. आज "हरतालिका तीज" है. हिंदू पंचांग के अनुसार, हरतालिका तीज भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है. इस बार हरतालिका तीज 18 सितंबर, सोमवार को मनाई जाएगी. इसको हरितालिका तीज और हरतालिका तीज के नाम से भी जाना जाता है. मराठी कविताके मेरे सभी हिंदी भाई-बहन, कवी-कवियित्रीयोको हरतालिका तीज की बहोत सारी हार्दिक शुभकामनाये. आईए, पढते है हरितालिका तीज पर निबंध.

     व्रत विधि की बात करें तो पौराणिक कथा के अनुसार राजा हिमाचल की पुत्री पार्वती ने भगवान षिव को पाने के लिए इस व्रत को किया था। पार्वती ने मन ही मन षिवजी को अपने पति के रूप में स्वीकार कर लिया था। उन्होंने षिवजी को पाने के लिए विषम परिस्थितियों में बारह साल तपस्या की। और इस व्रत के प्रभाव से प्रसन्न होकर भगवान षिव ने पार्वतीजी की मनोकामना पूर्ण की। प्राचीन समय से स्त्रियां इस व्रत को करती आ रही हैं। व्रत के दिन उपवास रखने के साथ ही पटिए पर शुद्ध बालू रेत के षिव-पार्वती की मूर्ति बनाकर उनका पूजन किया जाता है। विभिन्न प्रकार के फूल -पत्ते व मौसमी फल चढ़ाए जाते हैं। माता पार्वती को समस्त श्रंगार सामग्री चढ़ाई जाती है। व्रत की कथा पढ़ी जाती है। फिर रात भर जागरण कर भजन गाए जाते हैं। इस दौरान हर प्रहर में भगवान भोलेनाथ की पूजन व आरती की जाती है। फिर अगले दिन विधि-विधान से मूर्तियों का जल में विसर्जन कर जल ग्रहण किया जाता है। उस व्रत के माध्यम से महिलाओं को एक दिन अपने तरीके से जीने का मौका मिलता है। वे बाग बगीचों में जाकर फूल-पत्तियां चुनने के दौरान प्रकृति के सौंदर्य और सुगंध का एहसास कर पाती हैं। भांति-भांति के पेड़ पौधें से परिचित होती हैं। सुरम्य वातावरण में उनके मन का क्लेष और तनाव कम हो ताजे हैं। मन स्वच्छ निर्मल हो जाता है। अपनी सखियों के साथ समय गुजारने का अवसर मिलता है तो वे अपने पीहर की यादों को साझा करती हैं। हंसी ठिइौली के साथ खट्टी-मीठी यादें दोहराई जाती हैं। सजने संवरने और मेहंदी लगाने के बाद वे खुद के रूप को महसूस कर उस पर गर्व करती है। पेड़ों पर डले सावन के झूलों का आनंद भी इस दिन जी भर के लिया जाता है। इन सबका अनुभव अनूठा ही होता है। इसके साथ ही महिलाएं व्रत रखकर स्वयं की परीक्षा लेती हैं कि वे कितने समय तक अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण रख सकती हैं। बिना अन्न जल के प्रसन्न भाव से पूजन-अर्चन करने और रात भर जागरण करने की क्षमता उनमें है या नहीं। अपनी सखियों के साथ वे हर काम में तालमेल बैठा पाती हैं या नहीं। उनमें सहयोग की भावना कितनी है । अपने रिती रिवाजों से वे कितनी परिचित हैं। हर महिला स्व मूल्यांकन कर अपनी क्षमताओं का आकलन कर पाती है। यह सिर्फ भारतीय संस्कारों में ही संभव है। परिवर्तन के इस दौर के प्रभाव से हमारे व्रत-त्योहार भी अछूते नहीं रह पाए है।

     इस व्रत का अस्तित्व तो है पर स्वरूप में बहुत भिन्नता आ गई है। समय की कमी का हवाला देकर सारा सामान बाजार से खरीद लिया जाता है। सौंदर्य निखारने के लिए पार्लर का बाजार सदा तैयार रहता है। पति के लिए उपवास रखा जा रहा है तो बदले में उनसे महंगे उपहारों की फरमाइष पहले से कर दी जाती है। घर-परिवार की महिलाओं को देने के बजाय उनसे लेने की अपेक्षा अधिक हो गई है। शिवलिंग घर में बनाने के बजाय मंदिरों में पूजा करने का चलन हो गया है। वहां भी पूजन के समय होड़ सी लगी रहती है , पहले करने की। दबे रूप में महिलाएं एक-दूसरे की पूजन थाली देखकर कमियां निकालने से भी नहीं चूकती। कई महिलाएं सहनषीलता की कमी होने या स्वास्थ्य के साथ न देने से पहली पूजा के बाद जल-फल ग्रहण कर लेती है। जो अनुचित भी नहीं है। रात जागरण की परंपरा को फिल्म देखकर या खेल खेलकर पूरा किया जाता है। पर इन सबमें महिलाएं भूल ही जाती हैं कि भगवान षिव सिर्फ भक्ति-भाव के भूखे हैं। तभी तो वे भोलेनाथ भी कहे जाते है। व्रत-पूजन में श्रद्धा भक्ति और भावनाएं कहीं गुम सी गई है। जबकि मूल में देखें तो भावनाएं ही सर्वोपरि थीं। आधुनिक विचारों के चलते व्रत के दूसरे पहलू पर भी गौर किया जाना चाहिए। माता पार्वती ने भगवान षिव को पाने का अपना जीवन लक्ष्य निर्धारित कर लिया था। इस लक्ष्य को पाने के लिए वे चाहती तो अपने पिता या अन्य षक्ति का सहारा ले सकती थीं। पर उन्होंने स्वयं बारह साल तक तपस्या की। कई समस्याओं का सामना किया। विषम परिस्थितियों में भी लक्ष्य से विचलित नहीं हुई। आरंभिक प्रयासों में असफल होने पर भी हार नहीं मानी ।

     और अंततः लक्ष्य प्राप्त किया। वास्तव में यह व्रत हमें अपने लक्ष्य के प्रति निष्ठा और समर्पण की सीख देता है। एक जिद हो मनचाहा पाने के लिए। हम कठिन से कठिन डगर भी पार कर लें उस जिद की खातिर। और रूकें तभी जब लक्ष्य प्राप्त हो जाए। तो इस बरस मनाएं हरतालिका व्रत को पुराने रीति-रिवाजों के साथ , पूर्ण भक्ति भाव मन में रखकर एक लक्ष्य प्राप्ति के उददेष्य के साथ। और अपना मूल्यांकन करना न भूलें ईमानदारी से परखें जो अंक हासिल कर पाए उन्हें। फिर आप भी महसूस करेंगी इस अनुपम व्रत की के महत्व को और षिव पार्वती का आषीर्वाद आपकी खुषियों को कई गुना कर देगा।

--By Narender Sanwariya
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                    (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-हिंदी.करियर इंडिया.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-18.09.2023-सोमवार
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