लक्ष्मी पूजन-कविता-2-दीप से दीप जले

Started by Atul Kaviraje, November 12, 2023, 10:34:38 PM

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Atul Kaviraje

                                      "लक्ष्मी पूजन"
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मित्रो,

     आज दिनांक-१२.११.२०२३-रविवार है. आज "लक्ष्मी पूजन" है. दिवाली हिंदू धर्म के सबसे प्रमुख त्योहारों में से एक है। दिवाली पर पूरे घर और आस-पास की जगहों को दीपों से रोशन किया जाता है। साथ ही इस दिन लक्ष्मी पूजन का विशेष महत्व है। ऐसे में आइए जानते हैं दिवाली पर लक्ष्मी पूजन के कुछ उपाय जिनके द्वारा आप अपने भाग्य में वृद्धि कर सकते हैं। मराठी कविताके मेरे सभी भाई-बहन, कवी-कवियित्रीयोको लक्ष्मी पूजन और दीपावली त्योहार की बहोत सारी हार्दिक शुभकामनाये. आईए, पढते है लक्ष्मी पूजन पर कविता.

     छात्र इन कविताओं का संदर्भ कर सकते हैं और यह भी कोशिश कर सकते हैं कि वे अपनी खुद की कविताएँ बनाएं या रचें। कविता रचते समय, छात्रों को कविता में छवियाँ शामिल करने की कोशिश करनी चाहिए, कविता को दिलचस्प बनाने के लिए नई शब्दों की खोज करनी चाहिए, एक उत्सवपूर्ण भावना और माहौल बनाना चाहिए। छात्र अपनी आत्मरचित कविताओं को अपने सहवार्गियों के साथ साझा कर सकते हैं और एक-दूसरे की कविताएँ पढ़ सकते हैं। इससे छात्रों को एक ही विषय पर कविता लिखने के विभिन्न तरीकों और दृष्टिकोणों को समझने में मदद मिलेगी। यह गतिविधि उनका साहस बढ़ाएगी और शब्दों के साथ कविता के रूप में लिखने और प्रयोग करने के लिए उत्साह और उत्सव को बढ़ाएगी।

            2. दीप से दीप जले--

सुलग-सुलग री जोत दीप से दीप मिलें
कर-कंकण बज उठे, भूमि पर प्राण फलें।

लक्ष्मी खेतों फली अटल वीराने में
लक्ष्मी बँट-बँट बढ़ती आने-जाने में
लक्ष्मी का आगमन अँधेरी रातों में
लक्ष्मी श्रम के साथ घात-प्रतिघातों में
लक्ष्मी सर्जन हुआ
कमल के फूलों में
लक्ष्मी-पूजन सजे नवीन दुकूलों में।।

गिरि, वन, नद-सागर, भू-नर्तन तेरा नित्य विहार
सतत मानवी की अँगुलियों तेरा हो शृंगार
मानव की गति, मानव की धृति, मानव की कृति ढाल
सदा स्वेद-कण के मोती से चमके मेरा भाल
शकट चले जलयान चले
गतिमान गगन के गान
तू मिहनत से झर-झर पड़ती, गढ़ती नित्य विहान।।

उषा महावर तुझे लगाती, संध्या शोभा वारे
रानी रजनी पल-पल दीपक से आरती उतारे,
सिर बोकर, सिर ऊँचा कर-कर, सिर हथेलियों लेकर
गान और बलिदान किए मानव-अर्चना सँजोकर
भवन-भवन तेरा मंदिर है
स्वर है श्रम की वाणी
राज रही है कालरात्रि को उज्ज्वल कर कल्याणी।।

वह नवांत आ गए खेत से सूख गया है पानी
खेतों की बरसन कि गगन की बरसन किए पुरानी
सजा रहे हैं फुलझड़ियों से जादू करके खेल
आज हुआ श्रम-सीकर के घर हमसे उनसे मेल।
तू ही जगत की जय है,
तू है बुद्धिमयी वरदात्री
तू धात्री, तू भू-नव गात्री, सूझ-बूझ निर्मात्री।।

युग के दीप नए मानव, मानवी ढलें
सुलग-सुलग री जोत! दीप से दीप जलें।

-माखनलाल चतुर्वेदी
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--jagran josh-SAKSHI KABRA
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                        (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-जाग्रण जोश.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-12.11.2023-रविवार.
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