गौतम बुद्ध की जीवनी

Started by Atul Kaviraje, November 06, 2024, 09:33:40 PM

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Atul Kaviraje

गौतम बुद्ध की जीवनी-

गौतम बुद्ध, जिनका वास्तविक नाम सिद्धार्थ गौतम था, भारतीय इतिहास के सबसे महान और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे। उनका जन्म लगभग २५६० साल पहले नेपाल के लुंबिनी गाँव में हुआ था। उन्होंने अपने जीवन के माध्यम से न केवल भारत, बल्कि सम्पूर्ण विश्व को एक सशक्त आंतरिक शांति और दुख से मुक्ति पाने का मार्ग बताया। उनका जीवन एक प्रेरणा है और उनके द्वारा दिया गया उपदेश आज भी लाखों लोगों की जीवन दिशा निर्धारित करता है।

सिद्धार्थ का जन्म और प्रारंभिक जीवन
गौतम बुद्ध का जन्म शाक्य गणराज्य के शाक्य वंश के राजा शुद्धोधन और रानी महामाया के घर हुआ था। उनका जन्म लुंबिनी में हुआ था, जो अब नेपाल में स्थित है। उनके जन्म के समय एक महात्मा ने भविष्यवाणी की थी कि सिद्धार्थ यदि घर पर रहते हैं तो वे एक महान सम्राट बनेंगे, लेकिन यदि वे घर छोड़ देंगे तो वे दुनिया के महान संत बनेंगे।

सिद्धार्थ का पालन-पोषण ऐश्वर्य और सुख-सुविधाओं के बीच हुआ। उनका जीवन महल में भरा पड़ा था और वे राजसी जीवन जीते थे। परंतु, एक दिन उन्होंने महल के बाहर आम जीवन देखा और उन्हें यह एहसास हुआ कि इस संसार में दुख, रोग, बुढ़ापा और मृत्यु जैसी वास्तविकताएँ हैं। यह दृश्य सिद्धार्थ के मन को गहरे रूप से प्रभावित किया और उन्होंने जीवन के सच्चे उद्देश्य की खोज में घर छोड़ने का निर्णय लिया।

सन्यास और तपस्वी जीवन
सिद्धार्थ ने महल और परिवार को छोड़ दिया और अपना नाम बदलकर "सिद्धार्थ" से "गौतम बुद्ध" तक की यात्रा शुरू की। उन्होंने संतों और तपस्वियों से शिक्षा ली और लंबे समय तक आत्मज्ञान की खोज में तपस्या की। उन्होंने कई वर्षों तक कठिन तपस्या की, लेकिन फिर भी उन्हें शांति और सत्य की प्राप्ति नहीं हो पाई।

अंततः, एक दिन वे बोधगया में एक पीपल के पेड़ के नीचे बैठ गए और उन्होंने आत्मचिंतन और ध्यान के माध्यम से "बुद्धत्व" को प्राप्त किया। उन्हें समझ में आया कि जीवन में दुःख का कारण मानव की इच्छाएँ और आसक्तियाँ हैं।

चतुरार्थ सत्य (चार आर्य सत्य)
गौतम बुद्ध ने अपने ज्ञान के आधार पर चार प्रमुख सत्य दिए, जिन्हें "चतुरार्थ सत्य" के नाम से जाना जाता है:

दुःख (दुःख) – जीवन में दुःख है, और यह जन्म, बुढ़ापा, बीमारी, मृत्यु आदि रूपों में प्रकट होता है।
दुःख का कारण (समुदय) – दुःख का कारण हमारी इच्छाएँ, आसक्तियाँ और जीवन के प्रति हमारी भ्रांतियाँ हैं।
दुःख का निवारण (निरोध) – दुःख का निवारण संभव है, यदि हम अपनी इच्छाओं को नियंत्रित करें और सांसारिक मोह-माया से मुक्त हों।
दुःख निवारण का मार्ग (मार्ग) – दुःख से मुक्ति पाने के लिए आठfold मार्ग का पालन करें, जिसे अष्टांगिक मार्ग कहते हैं।
अष्टांगिक मार्ग
अष्टांगिक मार्ग में आठ मुख्य बातें शामिल हैं:

सही दृष्टिकोण (Right View)
सही संकल्प (Right Intention)
सही शब्द (Right Speech)
सही क्रिया (Right Action)
सही जीवनयापन (Right Livelihood)
सही प्रयास (Right Effort)
सही स्मरण (Right Mindfulness)
सही ध्यान (Right Concentration)
धर्म का प्रचार और संतों का मार्गदर्शन
गौतम बुद्ध ने अपनी शिक्षा और धर्म का प्रचार शुरू किया और उन्होंने एक समुदाय (संघ) का गठन किया जिसमें भिक्षु और भिक्षुणियाँ शामिल थे। उन्होंने यह बताया कि प्रत्येक व्यक्ति के अंदर आध्यात्मिक शक्ति और शांति की क्षमता है, और यह केवल भीतर के आत्मज्ञान से ही प्राप्त हो सकती है।

उन्होंने सभी को यह सिखाया कि किसी भी व्यक्ति को उसकी जाति, वर्ग या लिंग के आधार पर तुच्छ नहीं समझना चाहिए। उनका धर्म मानवता, करुणा, और समानता का संदेश देता है। बुद्ध के उपदेश में अहिंसा, प्रेम, और दया का विशेष महत्व था।

परिनिर्वाण और मृत्यु
गौतम बुद्ध ने 80 वर्ष की आयु में कुशीनगर (वर्तमान उत्तर प्रदेश, भारत) में परिनिर्वाण प्राप्त किया। परिनिर्वाण का मतलब है - शरीर का नाश होने के बाद आत्मा का मुक्त होना, जो कि उनके जीवन के अंतिम उद्देश्य का प्रतीक था।

निष्कर्ष
गौतम बुद्ध का जीवन और उनका उपदेश आज भी लाखों लोगों को मानसिक शांति, सामूहिक भलाई और आत्मज्ञान की दिशा में मार्गदर्शन प्रदान करता है। उनका सिद्धांत जीवन के दुःख को समझने, उसे स्वीकारने और उसे समाप्त करने का मार्ग है। वे हमें सिखाते हैं कि जीवन में दुःख का कारण हमारी आसक्तियाँ और इच्छाएँ होती हैं, और हम इनसे मुक्त होकर शांति और संतोष प्राप्त कर सकते हैं।

गौतम बुद्ध की शिक्षा ने न केवल भारत, बल्कि सम्पूर्ण विश्व में एक महान आध्यात्मिक और सामाजिक आंदोलन को जन्म दिया। उनकी उपदेशों में जीवन को सरल, शांति और करुणा से जीने का संदेश है, जो आज भी उतना ही प्रासंगिक और महत्वपूर्ण है।

--संकलन
--अतुल परब
--दिनांक-06.11.2024-बुधवार.
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