कायमची बदलती परंपरा:-2

Started by Atul Kaviraje, November 14, 2024, 06:06:25 PM

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Atul Kaviraje

कायमची बदलती परंपरा:-

परंपरा में बदलाव के उदाहरण
दिवाली और पर्यावरण के प्रति जागरूकता: दिवाली का त्यौहार भारत में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है, लेकिन प्रदूषण और पर्यावरणीय प्रभाव के कारण इसमें बदलाव किया गया है। पहले दीवाली पर बड़े पैमाने पर पटाखे फोड़े जाते थे, जिससे पर्यावरण में प्रदूषण फैलता था। अब लोग जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण को ध्यान में रखते हुए, "ग्रीन दिवाली" को बढ़ावा दे रहे हैं, जिसमें कम प्रदूषण फैलाने वाले पटाखे फोड़ने, या पटाखे न फोड़ने की परंपरा विकसित की जा रही है। इसके साथ-साथ लोगों ने दिवाली पर पुराने सामानों का पुनः उपयोग, और घरों की सफाई तथा सजावट में प्राकृतिक और कम खर्चीले उपायों को अपनाया है।

शादी की परंपराएँ और सामाजिक परिवर्तन: भारतीय शादियों में कई परंपराएँ होती हैं, जैसे कि बड़े परिवारों का मिलना, विशेष प्रकार की रस्में आदि। हालांकि, बदलते समय के साथ शादियों में भी बदलाव आया है। आजकल, शादियाँ छोटे परिवारों में होती हैं और डिजिटल मीडिया का इस्तेमाल बढ़ा है, जैसे कि सोशल मीडिया के जरिए शादी का निमंत्रण देना। पहले की तुलना में शादियों का आयोजन अब सादगी से होता है, और खानपान, सजावट और अतिथियों की संख्या में कमी आई है।

महिलाओं के अधिकारों में सुधार: समाज में महिलाओं को लेकर जो परंपराएँ थीं, जैसे कि उनके लिए शिक्षा और रोजगार के अवसरों की कमी, अब उसमें बदलाव आ चुका है। महिलाओं को हर क्षेत्र में समान अधिकार प्राप्त हैं और वे घर के बाहर अपने करियर में भी सफलता प्राप्त कर रही हैं। पहले महिलाओं का स्थान केवल घर के कार्यों तक सीमित था, लेकिन अब वे राजनीति, विज्ञान, शिक्षा, खेल, और कला में अपने योगदान से समाज में महत्वपूर्ण स्थान बना रही हैं।

पारंपरिक शिक्षा पद्धतियाँ और आधुनिक शिक्षा: पहले परंपरागत शिक्षा पद्धतियाँ, जैसे गुरुकुल प्रणाली, घर पर शिक्षा देना आदि प्रचलित थीं। लेकिन आजकल शिक्षा का स्वरूप पूरी तरह बदल चुका है। अब स्कूल, कॉलेज, और विश्वविद्यालयों में आधुनिक पाठ्यक्रम, विज्ञान, गणित, और तकनीकी शिक्षा दी जाती है। इसके साथ ही ऑनलाइन शिक्षा, डिजिटल शिक्षण सामग्री, और तकनीकी उपकरणों का उपयोग भी शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव का उदाहरण हैं।

बदलती परंपरा और उसकी चुनौतियाँ
बदलती परंपराओं को अपनाना केवल सकारात्मक पहलू नहीं है, इसमें कई चुनौतियाँ भी होती हैं।

संस्कृति का विलयन:
अधिक बदलाव के कारण कभी-कभी परंपराओं का मूल तत्व खो जाता है। उदाहरण के लिए, कई सांस्कृतिक पहलू केवल वाणिज्यिक लाभ के लिए बदलते हैं, जिससे संस्कृति का असली उद्देश्य विलीन हो सकता है।

सामाजिक विरोध:
कुछ लोग परंपराओं में बदलाव के खिलाफ होते हैं और इसे अपनाने में संकोच करते हैं। उन्हें लगता है कि परंपराओं में बदलाव से उनकी पहचान खतरे में पड़ सकती है। ऐसे में बदलाव के प्रति मानसिकता बदलने में समय और प्रयास की आवश्यकता होती है।

मानवीय संवेदनाएँ और संतुलन:
परंपरा में बदलाव से समाज के पुराने सिद्धांतों को चुनौती मिलती है, जिससे समाज में असंतुलन हो सकता है। जैसे, समाज में लिंगभेद और जातिवाद को समाप्त करने के लिए परंपराओं में बदलाव की आवश्यकता है, लेकिन यह काम धीरे-धीरे ही संभव हो सकता है।

निष्कर्ष
कायमची बदलती परंपरा हमें यह समझने का अवसर देती है कि परंपरा केवल अतीत के रीति-रिवाजों को निभाने का नाम नहीं है, बल्कि यह एक गतिशील और बदलती हुई प्रक्रिया है जो समाज की जरूरतों, विश्वासों, और मूल्याओं के साथ विकसित होती है। समाज में हो रहे बदलाव, तकनीकी विकास, और वैश्विक प्रभाव के साथ परंपराएँ भी बदल रही हैं, और यह बदलाव समाज के समग्र विकास और उन्नति की दिशा में महत्वपूर्ण है।

समाज को अपनी परंपराओं में बदलाव लाने के साथ-साथ उनका सम्मान करना भी आवश्यक है। परंपराएँ केवल इतिहास नहीं होतीं, बल्कि वे वर्तमान को जोड़ने और भविष्य के निर्माण का एक तरीका होती हैं।

--संकलन
--अतुल परब
--दिनांक-14.11.2024-गुरुवार.
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