त्रिपुरी पूर्णिमा: महत्व, इतिहास और पूजा विधि-3

Started by Atul Kaviraje, November 15, 2024, 07:07:54 PM

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Atul Kaviraje

त्रिपुरी पूर्णिमा: महत्व, इतिहास और पूजा विधि (Tripuri Purnima: Significance, History, and Rituals)-

त्रिपुरी पूर्णिमा हिंदू धर्म में एक विशेष दिन के रूप में मनाई जाती है, जो कार्तिक माह की पूर्णिमा को होती है। यह दिन विशेष रूप से भगवान शिव के एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम से जुड़ा हुआ है, जब उन्होंने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध किया था। त्रिपुरी पूर्णिमा का पर्व विशेष रूप से भगवान शिव की पूजा, दीपदान और व्रत करने का दिन होता है, जो अज्ञान और अंधकार को नष्ट करने का प्रतीक माना जाता है।

त्रिपुरी पूर्णिमा का इतिहास (Historical Significance of Tripuri Purnima)
1. त्रिपुरासुर का वध
त्रिपुरी पूर्णिमा का मुख्य ऐतिहासिक महत्व भगवान शिव द्वारा त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध करने से जुड़ा हुआ है। त्रिपुरासुर ने अपनी शक्तियों से देवताओं को परेशान किया था और बहुत से आतंक फैलाए थे। वह भगवान शिव के खिलाफ था और अपने अद्भुत शक्ति और आक्रमण से पृथ्वी पर अत्याचार कर रहा था।

भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध करने के लिए पशुपतास्त्र का उपयोग किया। इसके बाद त्रिपुरासुर की बुराई समाप्त हो गई और पृथ्वी पर पुनः धर्म की स्थापना हुई। यही कारण है कि त्रिपुरी पूर्णिमा के दिन भगवान शिव की पूजा विशेष रूप से की जाती है, और इस दिन को त्रिपुरी महोत्सव के रूप में मनाया जाता है।

2. त्रिपुरी महोत्सव (Tripuri Mahotsav)
त्रिपुरी पूर्णिमा को त्रिपुरी महोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन भगवान शिव का वध और उनके द्वारा धर्म की पुनःस्थापना की गई थी, इसलिए यह दिन विशेष रूप से शिव भक्ति के लिए समर्पित होता है। इस दिन शिव के पशुपतिनाथ रूप, कालभैरव रूप, और नटराज रूप की पूजा की जाती है।

त्रिपुरी पूर्णिमा का तात्त्विक महत्व (Philosophical Significance of Tripuri Purnima)
1. अंधकार से प्रकाश की ओर
त्रिपुरी पूर्णिमा का तात्त्विक महत्व अंधकार और अज्ञान से ज्ञान और प्रकाश की ओर बढ़ने के रूप में देखा जाता है। त्रिपुरासुर का प्रतीक अज्ञान और पाप का होता है, जबकि भगवान शिव का प्रतीक ज्ञान, शांति, और सत्य का होता है। इस दिन भगवान शिव की पूजा करने से भक्तों के जीवन से अंधकार और भ्रम दूर होते हैं, और ज्ञान एवं शांति की प्राप्ति होती है।

2. कर्म की महत्ता
भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध किया, जो अपने अधर्म के कारण त्रस्त था। इससे यह सिद्ध होता है कि कर्म का फल अत्यंत महत्त्वपूर्ण होता है। हर व्यक्ति को अपने कर्मों का सही मार्ग पर होना चाहिए, तभी उसे सच्ची शांति और सफलता मिलती है। त्रिपुरी पूर्णिमा इस सत्य को उजागर करती है कि पापों का नाश और पुण्य का प्रतिफल कर्मों के आधार पर ही मिलता है।

3. भक्ति और साधना
यह दिन भक्ति और साधना के माध्यम से ईश्वर के प्रति समर्पण की भावना को बढ़ाने का दिन है। इस दिन भक्त ईश्वर के प्रति अपनी श्रद्धा और भक्ति को प्रगाढ़ करने के लिए उपवास रखते हैं, पूजा करते हैं और ध्यान साधना करते हैं।

--संकलन
--अतुल परब
--दिनांक-15.11.2024-शुक्रवार.
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