कृष्ण आणि व्रजराजाची गोपाळकथा-

Started by Atul Kaviraje, November 27, 2024, 05:23:49 PM

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Atul Kaviraje

कृष्ण आणि व्रजराजाची गोपाळकथा-
(Krishna and the Story of King Nanda's Gokul)

कृष्ण भगवान, जिन्हें हम श्री कृष्ण के नाम से भी जानते हैं, हिंदू धर्म के एक अत्यंत लोकप्रिय और पूज्य देवता हैं। उनका जीवन और उनके कार्यों की कथाएँ भारतीय संस्कृति में गहरी छाप छोड़ चुकी हैं। कृष्ण के जीवन की सबसे प्यारी और प्रेरणादायक कथाओं में से एक कथा व्रजराज (नंद महाराज) और उनकी गोपाळकथा है।

व्रजराज, जिनका नाम नंद महाराज था, गोकुल के राजा थे। गोकुल वह जगह थी जहाँ श्री कृष्ण का पालन पोषण हुआ था और उन्होंने बचपन में कई लीलाएँ कीं, जिनका महत्व आज भी भक्तों के दिलों में है। इस लेख में हम कृष्ण के बाल्यकाल की कहानी, उनके माता-पिता, और व्रजराज नंद के साथ उनके संबंधों पर विस्तृत चर्चा करेंगे।

1. कृष्ण का जन्म और नंद महाराज का कर्तव्य
कृष्ण का जन्म मथुरा में हुआ था, और उनका जन्म देवकी और वसुदेव के घर हुआ था। लेकिन मथुरा के कंस द्वारा देवकी और वसुदेव के बच्चों को मार डालने की वजह से कृष्ण को उनके जन्म के बाद जल्द ही मथुरा से गोकुल भेज दिया गया था। गोकुल में नंद महाराज और उनकी पत्नी यशोदा रहते थे। व्रजराज नंद और यशोदा दोनों ही बहुत अच्छे और दयालु व्यक्ति थे। नंद महाराज को भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त था, और उनका जीवन बहुत ही साधारण और शांतिपूर्ण था।

नंद महाराज ने श्री कृष्ण को अपने घर में गोद लिया और उन्हें अपने पुत्र की तरह पाला। यशोदा और नंद दोनों ने कृष्ण का पालन पोषण बहुत ही स्नेह और प्रेम से किया। यद्यपि कृष्ण असल में वसुदेव और देवकी के पुत्र थे, लेकिन उन्होंने नंद और यशोदा को अपने वास्तविक माता-पिता की तरह माना।

2. कृष्ण की लीलाएँ और व्रजराज का स्नेह
कृष्ण के बाल्यकाल की लीलाएँ अद्भुत थीं। वह न केवल एक सामान्य बालक की तरह खेलते थे, बल्कि उन्होंने गोकुलवासियों को कई चमत्कारी कार्यों से चमत्कृत भी किया। नंद महाराज और यशोदा ने कृष्ण के इन अद्भुत कार्यों को देखा और वे भगवान कृष्ण के प्रति अपने प्रेम में और अधिक समर्पित हो गए।

गोवर्धन पर्वत उठाना:
एक प्रमुख घटना जो कृष्ण के अद्भुत कार्यों को दर्शाती है, वह थी गोवर्धन पर्वत उठाने की घटना। एक बार इन्द्रदेव ने गोकुलवासियों पर मूसलधार बारिश भेजी, जिससे सभी लोग भयभीत हो गए। कृष्ण ने अपनी छोटी अंगुली पर गोवर्धन पर्वत को उठाया और गोकुलवासियों को पर्वत के नीचे शरण दी। यह दृश्य नंद महाराज के लिए अत्यंत चमत्कारी था। उन्होंने अपने पुत्र के अद्वितीय बल और दिव्य शक्ति को देखा और वे कृष्ण की पूजा करने लगे।

माखन चोर की कहानी:
कृष्ण को माखन (घी) बहुत प्रिय था, और वह अक्सर घरों से माखन चुराते थे। नंद महाराज और यशोदा को यह भलिबुअत पसंद नहीं थी, लेकिन कृष्ण का चुराना भी एक प्रकार से लीलाओं का हिस्सा था। यशोदा ने एक बार कृष्ण को माखन चोरी करते पकड़ा और उन्हें कई बार डांटा, लेकिन कृष्ण ने अपनी चुटकीले बातों से उन्हें फिर से हंसी में डाल दिया।

कृष्ण की गायों के साथ घुमना:
कृष्ण का गोकुल में एक और प्रिय कार्य गायों की देखभाल करना था। वे दिन भर गायों के साथ घूमा करते थे और बांसुरी बजाकर वातावरण को प्रेम और शांति से भर देते थे। उनके बांसुरी के स्वर से गोकुलवासी मोहित हो जाते थे। गोकुल में कृष्ण के गायों के साथ बिताए गए पल नंद महाराज के लिए गर्व और सुख का कारण थे, क्योंकि वे जानते थे कि उनका पुत्र भगवान श्री कृष्ण है और उनकी लीलाएँ संसार को नया मार्ग दिखाएंगी।

3. व्रजराज नंद की भक्ति और समर्पण
व्रजराज नंद की कृष्ण के प्रति भक्ति अद्वितीय थी। वे जानते थे कि कृष्ण भगवान हैं, लेकिन उन्होंने कभी इस बात को अपनी सगाई और परिवार से अलग किया। नंद महाराज ने अपने पुत्र की दिव्यता को स्वीकार किया, लेकिन उनका प्रेम और विश्वास केवल कृष्ण के ऊपर था। नंद महाराज के दिल में कृष्ण के लिए अथाह भक्ति थी, और वे जानते थे कि उनका पुत्र महापुरुष है जो संसार के दुखों का निवारण करेगा।

जब कृष्ण ने गोकुलवासियों के लिए गोवर्धन पर्वत उठाया, तो नंद महाराज ने भगवान कृष्ण के प्रति अपनी श्रद्धा को और गहरा किया। वे कृष्ण को भगवान मानते थे, लेकिन वे हमेशा उन्हें अपने बेटे के रूप में भी देखते थे। उनके लिए कृष्ण का पालन-पोषण करना, उन्हें सिखाना और उनके साथ समय बिताना एक दिव्य अनुभव था।

4. कृष्ण का यश और गोकुलवासियों का प्रेम
कृष्ण के अस्तित्व से गोकुल में हर कोई अभिभूत था। गोकुलवासी कृष्ण के बारे में एक बात जानते थे कि उनका हर कार्य किसी अद्भुत उद्देश्य के लिए है। चाहे वह गोवर्धन पर्वत उठाना हो, माखन चुराना हो, या गायों के साथ बांसुरी बजाना हो – कृष्ण ने गोकुलवासियों को एक नया दृष्टिकोण दिया और उनके दिलों में प्रेम और विश्वास का संचार किया।

नंद महाराज के नेतृत्व में गोकुलवासी कृष्ण के प्रति न केवल श्रद्धा रखते थे, बल्कि उनका जीवन एक आदर्श बन गया। नंद महाराज और यशोदा ने जो शिक्षा दी, वह आज भी हमारे लिए मार्गदर्शन का कारण है। उनके प्यार और समर्पण का महत्व न केवल गोकुल में, बल्कि सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में महसूस किया गया।

5. निष्कर्ष:
कृष्ण और नंद महाराज की गोपाळकथा न केवल एक महान धार्मिक काव्य है, बल्कि यह हमें जीवन के सत्य और भक्ति का पाठ भी सिखाती है। यह कथा दिखाती है कि कृष्ण, एक दिव्य शक्ति होते हुए भी, अपने परिवार और कुटुंब के प्रति स्नेह और प्रेम को कभी नहीं भूलते। नंद महाराज और यशोदा की भक्ति और समर्पण ने कृष्ण के जीवन को और भी अद्भुत बना दिया। गोकुल में बीते कृष्ण के बाल्यकाल के पल आज भी हमारे हृदयों में एक सजीव छवि के रूप में जीवित हैं, जो हमें प्रेम, भक्ति और सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं।

--संकलन
--अतुल परब
--दिनांक-27.11.2024-बुधवार.
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