शिवरात्रि और उसका महत्त्व –1

Started by Atul Kaviraje, December 02, 2024, 02:29:12 PM

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Atul Kaviraje

शिवरात्रि और उसका महत्त्व – भक्तिभावपूर्ण विस्तृत लेख-

प्रस्तावना:

शिवरात्रि एक ऐसा महत्वपूर्ण पर्व है, जिसे भारतीय हिंदू धर्म में अत्यधिक श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है। यह पर्व भगवान शिव की उपासना के लिए विशेष रूप से समर्पित है। शिवरात्रि का दिन विशेष रूप से आध्यात्मिक उन्नति, आत्मसाक्षात्कार, और भगवान शिव से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए महत्त्वपूर्ण माना जाता है। यह पर्व हर वर्ष फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चौदहवीं रात को मनाया जाता है, जो आमतौर पर फरवरी और मार्च के बीच आता है।

भगवान शिव को हिंदू धर्म में "महादेव" अर्थात् देवों के देवता कहा जाता है, जो समस्त संसार के रचनाकार, पालनहार और संहारक हैं। शिवरात्रि के दिन, विशेष रूप से रात्रि में भगवान शिव की पूजा, व्रत, उपवास और ध्यान साधना की जाती है। यह दिन भक्तों के लिए विशेष रूप से आशीर्वाद प्राप्त करने और आत्मा की शुद्धि का अवसर है।

शिवरात्रि का धार्मिक महत्त्व
भगवान शिव का पूजन और उपासना: शिवरात्रि के दिन, भक्त भगवान शिव की उपासना करते हैं और उनकी पूजा अर्चना में लीन होते हैं। भगवान शिव का पूजा का विधि विशिष्ट होती है, जिसमें शिवलिंग पर जल, दूध, शहद, घी, बेल पत्र, वेल पत्तियां आदि चढ़ाकर उनका अभिषेक किया जाता है। इस दिन की पूजा का उद्देश्य भगवान शिव से पवित्रता, शक्ति और आशीर्वाद प्राप्त करना होता है।

रात्रि जागरण और भजन: शिवरात्रि के दिन रात्रि जागरण का विशेष महत्व है। इस दिन को 'रात्रि व्रत' के रूप में मनाया जाता है। भक्त पूरे दिन उपवासी रहते हैं और रात्रि में जागरण करते हुए भगवान शिव के भजनों का गान करते हैं। यह रात्रि, भक्ति और साधना का सबसे पवित्र समय माना जाता है, जिसमें भक्त भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए जागरण करते हैं।

शिव का तंत्र और योग विद्या: शिवरात्रि का दिन विशेष रूप से तंत्र विद्या और योग साधना के लिए भी महत्वपूर्ण माना जाता है। भगवान शिव को योगियों के गुरु के रूप में पूजा जाता है। इस दिन, साधक अपने मन को एकाग्र करके ध्यान करते हैं और भगवान शिव से तंत्र और साधना में सफलता प्राप्त करने की प्रार्थना करते हैं।

शिवरात्रि की पौराणिक कथाएं
शिवरात्रि से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं हैं, जो इस दिन के महत्व को और बढ़ाती हैं। इन कथाओं में से कुछ प्रमुख कथाएँ इस प्रकार हैं:

भगवान शिव और देवी पार्वती का विवाह: एक कथा के अनुसार, महाशिवरात्रि भगवान शिव और देवी पार्वती के विवाह का प्रतीक है। पुराणों में कहा गया है कि शिवरात्रि के दिन भगवान शिव ने देवी पार्वती से विवाह किया था। इस दिन भगवान शिव ने अपनी साधना समाप्त की और पार्वती को पत्नी के रूप में स्वीकार किया। शिव-पार्वती का विवाह जीवन में संतुलन, सुख, और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।

राक्षस रत्नाक्षी का वध: एक अन्य कथा में, भगवान शिव ने राक्षस रत्नाक्षी का वध किया था, जो पृथ्वी पर अत्याचार कर रहा था। भगवान शिव ने उसे अपनी शक्ति से नष्ट कर दिया और पृथ्वी को रक्षिता किया। इस कारण शिवरात्रि का दिन राक्षसी प्रवृत्तियों को नष्ट करने का दिन माना जाता है।

शिव द्वारा ब्रह्मा और विष्णु का अंशदान: एक अन्य कथा के अनुसार, शिवरात्रि के दिन भगवान शिव ने ब्रह्मा और विष्णु दोनों को अपना अंश प्रदान किया था। यह दिन शिव के सर्वोच्च रूप और उनके सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के रचनाकार के रूप में प्रतिष्ठित होने का दिन है।

शिवरात्रि की पूजा विधि
शिवरात्रि के दिन विशेष पूजा विधि का पालन किया जाता है, जो इस प्रकार है:

शिवलिंग अभिषेक: सबसे पहले, शिवलिंग की पूजा की जाती है। शिवलिंग पर गंगाजल, दूध, घी, शहद और जल अर्पित किया जाता है। इसके बाद, बेल पत्र, ताजा फूल, वेल पत्तियां और चंदन चढ़ाए जाते हैं। सभी पूजा सामग्रियों को भगवान शिव की कृपा पाने के लिए अर्पित किया जाता है।

मंत्र जाप: शिवरात्रि के दिन 'ॐ नमः शिवाय' मंत्र का जप विशेष रूप से किया जाता है। यह मंत्र भगवान शिव की महिमा को प्रकट करता है और भक्त के जीवन में शांति और समृद्धि लाने के लिए उपयोगी होता है। मंत्र जाप से पापों का नाश और पुण्य की प्राप्ति होती है।

व्रत और उपवास: इस दिन उपवासी रहकर व्रत किया जाता है। कुछ भक्त पूरे दिन और रात उपवासी रहते हैं और सिर्फ जल का सेवन करते हैं। व्रत रखने से शरीर और मन की शुद्धि होती है और भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

रात्रि जागरण और भजन-कीर्तन: इस दिन विशेष रूप से रात्रि जागरण किया जाता है। भक्त भगवान शिव के भजनों, आरतियों, कीर्तन और मंत्रों का उच्चारण करते हैं। यह रात्रि भगवान शिव के दर्शन की रात्रि मानी जाती है, जिससे भक्तों को भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है।

--संकलन
--अतुल परब
--दिनांक-02.12.2024-सोमवार.     
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