शिव को अर्पित व्रत और पूजा विधि-1

Started by Atul Kaviraje, December 09, 2024, 05:12:37 PM

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Atul Kaviraje

शिव को अर्पित व्रत और पूजा विधि-
(व्रत और पूजा विधियों के माध्यम से शिव की उपासना)

भगवान शिव, जिन्हें महादेव, महाकाल, गंगाधर, और भोलेनाथ जैसे नामों से भी पूजा जाता है, हिंदू धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक हैं। शिव की उपासना करने से भक्तों के जीवन में सुख, शांति, समृद्धि और मुक्ति प्राप्त होती है। शिव को अर्पित व्रत और पूजा विधियों में विशेष रूप से भक्तों का समर्पण, तप और भक्ति भावना प्रदर्शित होती है। इस लेख में हम भगवान शिव को अर्पित किए जाने वाले प्रमुख व्रत और पूजा विधियों का विवेचन करेंगे, साथ ही इन व्रतों के महत्व और उदाहरणों के साथ उनकी प्रभावशीलता पर चर्चा करेंगे।

भगवान शिव के व्रत और पूजा विधि का महत्व
भगवान शिव की पूजा और व्रत न केवल भक्तों के जीवन में आंतरिक शांति और सुख लाते हैं, बल्कि ये उनके पुण्य और आत्मा के शुद्धिकरण का मार्ग भी खोलते हैं। शिव का व्रत विशेष रूप से व्यक्ति को उसकी इच्छाओं और पापों से मुक्त करने, मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त करने में सहायक होता है। शिव के व्रत में भक्त को अपने आचार-व्यवहार, जीवन के दृष्टिकोण और समर्पण को सुधारने का एक अवसर मिलता है।

1. शिवरात्रि व्रत
(Mahashivaratri Vrat)
शिवरात्रि व्रत भगवान शिव की पूजा का सबसे प्रमुख अवसर है। हर महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को शिवरात्रि मनाई जाती है, लेकिन विशेष रूप से महाशिवरात्रि जो हिंदू कैलेंडर के अनुसार फाल्गुन माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को आती है, वह अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस दिन व्रति रात्रि को जागरण करते हैं, मंत्रों का जाप करते हैं और शिवलिंग पर जल, बेलपत्र, दूध, शहद, दही आदि चढ़ाते हैं।

विधि:

सबसे पहले भक्त अपने घर या शिव मंदिर में साफ-सफाई करते हैं।
फिर शिवलिंग को पवित्र जल और गंगाजल से स्नान कराते हैं।
बेलपत्र, फल, फूल, और भस्म अर्पित करते हैं।
"ॐ नमः शिवाय" या "महामृत्युंजय मंत्र" का जप करते हैं।
रात्रि भर पूजा करके, भगवान शिव से अपने पापों के प्रायश्चित और आत्मज्ञान की प्राप्ति की कामना करते हैं।
उदाहरण:
महाशिवरात्रि व्रत के बारे में एक प्रसिद्ध कथा है कि राक्षसों के विनाश के बाद, भगवान शिव ने अपनी देवी पार्वती से व्रत का महत्व बताया और यह व्रत रखने से भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

2. सोमवार व्रत
(Somwar Vrat)
सोमवार का व्रत विशेष रूप से भगवान शिव की पूजा के लिए है। प्रत्येक सोमवार को भगवान शिव का पूजन विशेष रूप से फलदायक माना जाता है। यह व्रत किसी भी प्रकार की विशेष इच्छा, जैसे संतान सुख, रोग से मुक्ति या शांति के लिए रखा जा सकता है।

विधि:

सोमवार को सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और सफेद वस्त्र धारण करें।
शिवलिंग पर जल, दूध, शहद, बेलपत्र और फूल चढ़ाएं।
"ॐ नमः शिवाय" मंत्र का जप 108 बार करें।
इस दिन विशेष रूप से व्रति शाकाहारी भोजन करते हैं।
सोमवार व्रत के पूरे 16 सोमवार तक यह व्रत रखने से विशेष फल प्राप्त होते हैं।
उदाहरण:
कहानी है कि राजा हरिश्चंद्र ने भगवान शिव का सोमवार व्रत किया था और अपने वचन का पालन करते हुए सत्य बोलने का दृढ़ संकल्प लिया था। इस व्रत ने उन्हें महान प्रतिष्ठा और सम्मान दिलाया।

3. पंचाक्षरी मंत्र का जप
(Panchaakshari Mantra Japa)
पंचाक्षरी मंत्र "ॐ नमः शिवाय" का जप भगवान शिव की पूजा का एक प्रमुख और सरल तरीका है। यह मंत्र भगवान शिव के पांच नामों का प्रतिनिधित्व करता है, जो शिव के विभिन्न रूपों और शक्तियों को दर्शाते हैं।

विधि:

मंत्र "ॐ नमः शिवाय" का जप प्रातः काल उठकर गंगाजल या शिवलिंग पर जल अर्पित करते हुए करें।
मंत्र का जप 108 या 1008 बार करें।
इस मंत्र का नियमित जप मानसिक शांति, पापों के नाश और मुक्ति की प्राप्ति के लिए अत्यंत प्रभावी माना जाता है।
उदाहरण:
महर्षि कश्यप ने भगवान शिव का "ॐ नमः शिवाय" मंत्र जपकर शिव के आशीर्वाद से अपने जीवन के सभी संकटों को दूर किया और परमात्मा के साक्षात्कार का आशीर्वाद प्राप्त किया।

--संकलन
--अतुल परब
--दिनांक-09.12.2024-सोमवार.
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