गणेश पूजन एवं उसके शास्त्र-1

Started by Atul Kaviraje, December 10, 2024, 08:32:40 PM

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Atul Kaviraje

गणेश पूजन एवं उसके शास्त्र-
(Lord Ganesha's Worship and Its Scriptures)

प्रस्तावना:
गणेश पूजन भारतीय धार्मिक परंपरा का एक महत्वपूर्ण और आदिकाल से चला आ रहा हिस्सा है। भगवान गणेश को विघ्नहर्ता, बुद्धि और समृद्धि के दाता माना जाता है। हर कार्य की शुरुआत में भगवान गणेश का स्मरण और पूजा करना विशेष महत्व रखता है। गणेश पूजन की प्रक्रिया शास्त्रों में बहुत ही विधिपूर्वक और विस्तृत रूप से बताई गई है, जो न केवल धार्मिक कर्तव्यों का पालन करने के लिए, बल्कि जीवन में सुख, शांति, और समृद्धि प्राप्त करने के लिए भी आवश्यक है। इस लेख में गणेश पूजन के शास्त्र, उसका महत्व, विधि, और उससे संबंधित शास्त्रों की विवेचना की जाएगी।

गणेश पूजा का महत्व:
भगवान गणेश का महत्व केवल धार्मिक रूप से नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। गणेश की पूजा न केवल धार्मिक कर्तव्यों को पूरा करने के लिए की जाती है, बल्कि यह जीवन में सुख, शांति और समृद्धि की प्राप्ति के लिए भी की जाती है। गणेश पूजा विशेषकर विघ्नों को दूर करने और प्रत्येक शुभ कार्य में सफलता प्राप्त करने के लिए की जाती है। गणेश जी को विशेष रूप से बुद्धि, ज्ञान, और नूतन प्रारंभ का प्रतीक माना जाता है।

गणेश पूजा का शास्त्र:
गणेश पूजा का शास्त्र बहुत ही विस्तृत है, जिसमें पूजा की विधि, मंत्र, मंत्रों का उच्चारण, और भगवान गणेश की उपासना से संबंधित सभी क्रियाएँ शामिल हैं। यह शास्त्र विशेष रूप से गणेश पुराण, गणेश गीता, गणेश स्तोत्र और अन्य धार्मिक ग्रंथों में विस्तृत रूप से वर्णित हैं। गणेश पूजा के शास्त्र में कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं पर ध्यान केंद्रित किया गया है:

गणेश मूर्ति की स्थापना: गणेश पूजा की शुरुआत भगवान गणेश की मूर्ति की विधिपूर्वक स्थापना से होती है। शास्त्रों में उल्लेखित है कि गणेश जी की मूर्ति को विधिपूर्वक घर के सबसे शुभ स्थान पर रखा जाना चाहिए। मूर्ति की स्थापना करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि वह स्थान शुद्ध और पवित्र हो, ताकि पूजा में किसी भी प्रकार की विघ्न नहीं आये।

पूजा का प्रारंभ: गणेश पूजा का प्रारंभ सबसे पहले भगवान गणेश के चरणों का पूजन करके किया जाता है। इसके बाद भगवान गणेश को दीप, धूप, और पुष्प अर्पित किए जाते हैं। शास्त्रों के अनुसार, पूजा करने से पहले अपने शरीर को शुद्ध करना अत्यंत आवश्यक है। इसके बाद पूजा में प्रयोग होने वाली सामग्री जैसे फूल, फल, जल, गंध, दीपक, और नैवेद्य (भोग) को विधिपूर्वक तैयार किया जाता है।

मंत्रों का उच्चारण: गणेश पूजा में मंत्रों का विशेष महत्व है। "ॐ गण गणपतये नमः" यह प्रमुख मंत्र है, जो भगवान गणेश की उपासना में इस्तेमाल होता है। इसके अलावा, गणेश अष्टकशतक, गणेश स्तोत्र और गणेश सहस्रनाम के मंत्रों का भी उच्चारण पूजा के दौरान किया जाता है। ये मंत्र भगवान गणेश के विविध रूपों की पूजा और स्तुति करते हैं और पूजा के समय इनका जाप करना पुण्य और लाभकारी माना जाता है।

नैवेद्य अर्पण: भगवान गणेश को प्रिय भोग अर्पित करना शास्त्रों के अनुसार पूजा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। गणेश जी को मोदक और लड्डू विशेष रूप से प्रिय हैं। इसके अलावा, पंखड़ी, फल, दूध, शहद और गुड़ भी नैवेद्य के रूप में अर्पित किए जाते हैं। नैवेद्य अर्पण के बाद भगवान गणेश से आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है।

अर्चना और प्रार्थना: पूजा के दौरान भगवान गणेश की महिमा का बखान करते हुए, भक्त उन्हें प्रार्थनाएँ अर्पित करते हैं। शास्त्रों के अनुसार गणेश अष्टकशतक और गणेश वन्दना के द्वारा गणेश की पूजा करना चाहिए, जिससे उनके द्वारा दिए गए आशीर्वाद से जीवन में समृद्धि और सुख की प्राप्ति होती है।

--संकलन
--अतुल परब
--दिनांक-10.12.2024-मंगळवार.
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