"फूलों के बगीचे में दोपहर की सैर"

Started by Atul Kaviraje, December 11, 2024, 03:11:28 PM

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Atul Kaviraje

शुभ दोपहर, बुधवार मुबारक हो

"फूलों के बगीचे में दोपहर की सैर"

दोपहर की सुनहरी धूप, हल्का सा मंद रुख बदलें,
फूलों के बगीचे में कदम रखें, हर पल कुछ खास लगे,
सुस्त हवा की सरसराहट, पत्तों की झंकार में,
सुगंधित बगिया में बसी है, हर रंग की एक नई क़िस्त।

गुलाबों की खुशबू में लहराती सी नमी है,
चमेली के फूलों की सफ़ेद छांव में एक लय बसी है,
हर फुली, हर पंखुड़ी, जैसे अपना राज़ खोले,
उनकी रंगीन आभा में असीम शांति का संदेश समाए।

चलते-चलते, फिजाओं में घुल जाती है मीठी गंध,
रंग-बिरंगे फूलों की हंसी जैसी कुछ बातें कहती हैं,
तुलिप और सूरजमुखी, मंदारिन और चंपा,
हर एक फूल अपने अलग सुर में गाता है दुनिया की तानें।

कुछ झूलते पत्ते, कुछ बागबानी का सौंदर्य,
जैसे हर कदम पर प्रकृति ने छिपा रखा हो कुछ अद्भुत,
इधर-उधर बत्तखें, छोटे पक्षी, भंवरे बजी गाती धुन,
सभी मिलकर बाग में करते हैं संगीत का सुर एकत्रित।

कभी नीले आकाश से सूरज की किरणें छिटक जातीं,
कभी हवाओं में खिलती चांदनी की भीनी सी छांव आती,
यह बगिया मानो, एक रंगीन संसार की परिभाषा हो,
जो खिला हुआ हो हंसी में और खो गया हो हर दर्द के पास से।

पानी के छोटे से कुएं से पानी की छपक छुपक आती है,
उसे देखने में, अपनी दुनिया को खोते हैं सैलानी,
बगिया की नर्म छांव में जब थोडा रुकते हैं हम,
तो महसूस होता है दिल में एक नई जिंदगी की उमंग।

दोस्तों के साथ, बच्चों के साथ, या अकेले चलते हुए,
फूलों के बगीचे की सैर हर बार एक सपना सा लगता है,
मन में उठते हैं विचार, जीवन के असीम रंगों की,
जैसे हर कदम पर सजीव होते हो रिश्तों के खुशबू-भरे झोंके।

फूलों के बगीचे में दोपहर की सैर एक आदत बन जाती है,
जब तक भी हल्की धूप बगीचे में बिखरी रहती है,
तब तक हम भी इस चमत्कारी प्रकृति के बीच खो जाते हैं,
एक अद्भुत शांति की ओर, जहाँ हर पल हरा और नया लगता है।

यह कविता फूलों के बगीचे में दोपहर की सैर करते हुए प्रकृति की सुंदरता और उसमें खो जाने के अहसास को दर्शाती है। बगीचे के हर फूल, हर रंग और हवा की सरसराहट में एक अद्भुत शांति और सुख समाहित है, जो मन को संतुष्ट करता है और जीवन की सुंदरता को महसूस कराता है।

--अतुल परब
--दिनांक-11.12.2024-बुधवार.
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