"पूर्णिमा के साथ रात्रि आकाश"

Started by Atul Kaviraje, December 11, 2024, 10:39:42 PM

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Atul Kaviraje

शुभ रात्रि, बुधवार मुबारक हो

"पूर्णिमा के साथ रात्रि आकाश"

पूर्णिमा की रात, आकाश में बसी,
चाँद की रौशनी में, जैसे कोई ख्वाब खुला हो।
सुरमयी धारा सी, बिखरी चाँदनी,
गहरी रात में बसी, एक अनकही कहानी।

नीला आकाश, तारों से सजा हुआ,
चाँद की चाँदनी, जो हर दिल को लुभा हुआ।
वो नज़ारा, जैसे स्वप्नों का आलंब,
कितनी हसरतें, कितनी बातें कहें हम।

चाँद की मंद रौशनी में खो जाती दुनिया,
सभी कुछ शांति से, जैसे सुकून की नदिया।
हवाओं में बसी, चाँद की हलकी महक,
सपनों की सैर, जैसे हो कोई जादू की चुप।

तारों की झील में जो इन्द्रधनुष की छाया,
चमकते तारों में बस हर दिल का रंग भाया।
हर तारा, एक उम्मीद की किरण सी चमके,
हर बूँद में बसी एक याद, जो हर दिल में समके।

पूर्णिमा के इस नज़ारे में, आकाश हुआ अद्भुत,
चाँद की चाँदनी में बसी एक नयी शुरुआत।
समंदर की लहरें भी जैसे, चाँद से रास करतीं,
स्वप्नों की धरती पर, मीठी रचनाएँ करतीं।

हर तारा अपने भीतर, एक गहरी सर्द रात समेटे,
चाँद अपनी चाँदनी में, ढूंढे एक ऐसा मोती, जो सजे।
यह आकाश की सुंदरता, एक लम्बी यात्रा सी लगती,
पूर्णिमा की रात, हर दर्द और आँसु को सुला देती।

आकाश में बसी नीरवता में, तारे अपना गीत गाते,
हर सितारा, चाँद को अपनी कहानी सुनाते।
पूर्णिमा की रात में, जैसे हर दिल नए रंगों में खिलता,
आशा की एक चमक, हर दिल में बनता।

यह रात, आकाश की आभा, चाँद का सौंदर्य,
पूर्णिमा के संग, एक प्यार की नदी सी सूरत।
जब तक पूर्णिमा की रात, आकाश में बसी रहे,
हर दिल में उम्मीद की एक छोटी सी लौ जलती रहे।

     यह कविता पूर्णिमा की रात और आकाश की अद्वितीय सुंदरता को व्यक्त करती है, जो शांति, प्रेम, और अनंत संभावनाओं से भरी होती है।

--अतुल परब
--दिनांक-11.12.2024-बुधवार.
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