"शांत देहात में उड़ते पक्षी"

Started by Atul Kaviraje, December 14, 2024, 09:10:05 AM

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Atul Kaviraje

सुप्रभात, शनिवार मुबारक हो

"शांत देहात में उड़ते पक्षी"

शांत देहात की हवा में,
पंखों में बहती बयार,
उड़ते हैं पक्षी मस्त हवाओं में,
जैसे मुक्त हो हर एक विचार।

हर सुबह की सुनहरी किरण,
संग लाती है नयी उम्मीद,
पक्षी उड़ते हैं नदियों के ऊपर,
जहां हर बूँद में होती है संगीत।

हरे-भरे खेतों की मूक गोदी में,
पक्षी खोजते हैं अपना घर,
फूलों की महक, पत्तों का गीत,
ये सभी मिलकर रचते हैं इन्द्रधनुष सा संसार।

आसमान में फैला नीला विस्तृत,
और नीचे पसरती सोंधी धरणी,
पक्षी उड़ते हैं ऊँचे-ऊँचे,
जहां कोई नहीं देख सकता उनकी दृषटि।

तारों से जड़ी हुई रात में,
चाँदनी से नहाई हुई धरा,
पक्षी आकाश में चुपचाप उड़ते,
जैसे वक्त खुद में थमा हो, कभी न चला हो।

सपनों में खोने की चाहत नहीं,
उन्हें बस अपनी उड़ान की तलाश,
हर पल उनके पंखों में छिपी होती है,
नया आकाश, नई राह।

झीलों के किनारे, पर्वतों के रुख,
हर ओर वे अपनी दिशा तय करते,
न डर, न रुकावट, न कोई भय,
बस उड़ते जाते हैं, खुद से भी दूर होते।

गांव के उन लहराते खेतों में,
जहां हर कदम पर होती है मौन छाँव,
वहीं पक्षी, बादल, और हवा,
मिलकर रचते हैं एक अलग ही सौंदर्य का राग।

उनकी उड़ान में, मिलन की प्रार्थना है,
हर आहट में, हर स्वर में गीत,
वो उड़ते हैं अपने घर की ओर,
जहां हर फूल करता है उनका स्वागत,
और हर रंग कहता है उनका नाम।

दूर कहीं, इन शांत देहातों में,
जहाँ सन्नाटा है गहरी रात की तरह,
पक्षी उड़ते रहते हैं निरंतर,
अपनी राहों पर, अपनी सवेरे की तलाश।

उन्हें न कोई मंज़िल चाहिए,
न कोई सीमा, न कोई ठहराव,
बस चलते जाना है, हर पल,
आगे, बिना किसी रुकावट के,
बस अपनी धरती, अपने आकाश के बीच,
जीते जाना है एक खुली, स्वच्छ हवा में।

शांत देहात की वो हवाएँ,
पक्षियों के पंखों में रंग भर देती हैं,
उनकी उड़ान में कोई खो नहीं सकता,
क्योंकि वो स्वयं में एक रहस्य और आनंद हैं।

आओ, हम भी उड़ें उन पक्षियों के संग,
जिनकी उड़ान में छुपा है जीवन का सुकून,
शांत देहात की इस पवित्र हवा में,
जहां हर दिशा में बसी है आत्मा का शांति संगीत।

--अतुल परब
--दिनांक-14.12.2024-शनिवार.
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