"सुबह का योगा बालकनी में करते हुए, नज़ारा देखते हुए"

Started by Atul Kaviraje, December 18, 2024, 10:04:04 AM

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Atul Kaviraje

सुप्रभात, बुधवार मुबारक हो

"सुबह का योगा बालकनी में करते हुए, नज़ारा देखते हुए"

सूरज की किरणें, धीरे-धीरे चुपके से आईं,
रात की चुप्प से, दिन की रौशनी लाईं,
बालकनी से नजरें टिकीं उस आकाश पर,
जहाँ हर रंग का एक ख़्वाब सा ताजमहल था।

संग में था, शांति का मीठा आलम,
हरी-भरी ज़मीन, आकाश का सलाम,
सूरज का पहला स्पर्श छूने चला,
मन को योगा में गहरी शांति मिली, जब मैं खड़ा था वहां।

मातृभूमि की ख़ुशबू, हवाओं में बसी,
लहरों की तरह घटाएँ धीरे-धीरे बहतीं,
हर एक सांस में, एक नयी शुरुआत,
योगा के हर आसन में नयी ताकत की बात।

पक्षी गा रहे थे अपने प्राचीन गीत,
आसमान में उनका उड़ना, था जैसे स्वप्न की मीत,
हर लहर की हलचल, एक ग़ज़ब की ध्वनि,
और सब कुछ था इतना सुकून से भरा।

पाँवों में धरती का अहसास,
हाथों में आकाश, मैं खुद को महसूस करता,
आँखों के सामने था हर रंग, हर रूप,
सूरज की रौशनी में सब कुछ था एक नया सूप।

तलवों से सिर तक, शरीर में ऊर्जा का प्रवाह,
हर व्यायाम में, जैसे दिल और मस्तिष्क का संवाद,
श्वासों के बीच छुपे थे जीवन के कई राज़,
योगा में बसी थी हर क़दम में गहरी आवाज़।

सूरज अब अपनी पूरी आभा से उभर आया,
और उस आभा में मेरी आत्मा भी गहरा समाया,
धरती की ऊर्जा, आकाश की रौशनी,
सब कुछ मिलकर एक सुंदर शांति में बसी।

बालकनी से दिखाई देती थी दूर तक की वादियाँ,
पहाड़ों की चोटी, और हरे-भरे रास्ते,
जैसे प्रकृति खुद गा रही हो एक अनमोल गीत,
जो मन को भी उस संगीत से एक गहरी राहत मिलती थी।

योगा के हर आसन में, मेरी आत्मा ने पाया,
जगत के हर कोने में अनन्त शांति का पता,
हवा में लहराती ऊर्जा का जादू,
आसमान में बसी वो नयी उम्मीदें, सब कुछ था सच।

पत्तियों की सरसराहट, पेड़ों का नृत्य,
सूरज का प्यार और धरती की सदा की क़द्र,
ये सब मिले, एक ठंडी सुबह की दुआ,
जो जीवन को और भी सुंदर बनाने का अहसास कराती है।

हर मुद्रा, हर श्वास में खोने का सुख,
जैसे समय थम जाता, जैसे कुछ भी नहीं बाकी,
ये नज़ारा, ये शांतिपूर्ण आकाश,
गहरी आत्मा में बैठा एक सुखद अहसास।

और जब अंत में मैंने अपनी आँखें बंद कीं,
मंदिर जैसा शांति का संसार खुला,
सब कुछ शांत था, पर पूरी तरह जागृत,
ये योगा की सुबह, सच्ची मुक्ति का रूप बन गई।

बालकनी में बैठा हुआ मैं अब जानता हूँ,
यह योगा, यह नज़ारा, एक अद्भुत उपहार है,
जीवन की इस यात्रा में, हर सुबह एक नई शुरुआत,
क्योंकि यहाँ, सुकून और शक्ति दोनों मिलती हैं।

--अतुल परब
--दिनांक-18.12.2024-बुधवार.
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