श्रीविठोबा और संत ज्ञानेश्वर का तत्त्वज्ञान-1

Started by Atul Kaviraje, December 18, 2024, 11:02:34 PM

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Atul Kaviraje

श्रीविठोबा और संत ज्ञानेश्वर का तत्त्वज्ञान-
(Lord Vitthal and the Philosophy of Sant Dnyaneshwar)

भारत में भक्ति आंदोलन और संतों की परंपरा ने समाज को आध्यात्मिक दृष्टिकोण से प्रगति की दिशा दी। इन संतों में विशेष स्थान श्रीविठोबा और संत ज्ञानेश्वर का है। दोनों ही महापुरुषों ने अपने जीवन और शिक्षाओं से मानवता, एकता, और भक्ति का प्रचार किया। श्रीविठोबा, जो विठोबा, पांडित्यनाथ, या विठोबाजी के रूप में भी प्रसिद्ध हैं, महाराष्ट्र के एक प्रमुख देवता माने जाते हैं। उनके साथ संत ज्ञानेश्वर का तत्त्वज्ञान गहरे रूप से जुड़ा हुआ है, जिन्होंने वेदांत और भक्ति का मेल करते हुए जीवन के उच्चतम उद्देश्य को बताया।

श्रीविठोबा का तत्त्वज्ञान
श्रीविठोबा का तत्त्वज्ञान मुख्य रूप से भक्ति, प्रेम, और मानवता पर आधारित है। उनका संदेश सरल था: "ईश्वर के प्रति निष्कलंक भक्ति से ही जीवन का उद्धार संभव है". वे एक ऐसे ईश्वर के रूप में पूजे जाते हैं जो हर व्यक्ति की कष्टों और दुखों को समझते हैं, और जिनकी कृपा से भक्तों को जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है।

श्रीविठोबा का संदेश किसी विशेष जाति, समुदाय या वर्ग तक सीमित नहीं था। उन्होंने समाज में फैली जातिवाद और ऊँच-नीच की प्रथा को नकारा और सभी मानवों को समान माना। उनका विश्वास था कि केवल प्रेम और भक्ति से ईश्वर के समीप पहुँचा जा सकता है, न कि किसी धार्मिक अनुष्ठान या पूजा-पाठ से।

विठोबा के तत्त्वज्ञान में ध्यान, साधना, और ईश्वर के प्रति अटूट प्रेम की महत्ता थी। उनके अनुसार, ईश्वर के प्रति एकाग्रता और सत्य का अनुसरण ही व्यक्ति को अपने जीवन का सही मार्ग दिखाता है। उन्होंने कहा था:

"जो अपनी श्रद्धा और प्रेम से मुझे भजे, उसे मैं अपनी शरण में लेता हूँ।"

विठोबा का यह संदेश भक्ति और प्रेम के माध्यम से आत्मज्ञान प्राप्त करने का था, जिससे व्यक्ति न केवल आत्मा का उद्धार कर सकता था, बल्कि सामाजिक और मानसिक समस्याओं से भी मुक्ति पा सकता था।

संत ज्ञानेश्वर का तत्त्वज्ञान
संत ज्ञानेश्वर का तत्त्वज्ञान जीवन को सरल, सशक्त, और मानवता के दृष्टिकोण से भरपूर बनाने का था। वे महाराष्ट्र के एक महान संत और शास्त्रज्ञ थे, जिन्होंने भक्ति और ज्ञान का अद्भुत संयोजन प्रस्तुत किया। संत ज्ञानेश्वर ने वेदांत और योग को भक्ति से जोड़ते हुए एक नई दिशा दी। उनका प्रसिद्ध ग्रंथ ज्ञानेश्वरी एक धार्मिक और दार्शनिक ग्रंथ है, जिसमें भगवद गीता का सजीव और सटीक विवेचन किया गया है।

संत ज्ञानेश्वर के तत्त्वज्ञान का मुख्य आधार था:

ईश्वर में अडिग विश्वास
संत ज्ञानेश्वर ने भगवान में अडिग विश्वास को महत्व दिया। उनके अनुसार, भगवान में विश्वास करने से ही आत्मा का कल्याण संभव है। भगवान के प्रति भक्ति, शरणागति और प्रेम को सर्वोच्च स्थान दिया गया था। ज्ञानेश्वर के अनुसार, भगवान को केवल उपासना या पूजा से नहीं, बल्कि पूरी श्रद्धा, समर्पण और भक्ति से प्राप्त किया जा सकता है।

अद्वैत तत्त्वज्ञान
संत ज्ञानेश्वर ने अद्वैत तत्त्वज्ञान का पालन किया, जिसमें आत्मा और परमात्मा के बीच कोई भेद नहीं माना जाता। उनका तत्त्वज्ञान यह कहता है कि आत्मा और भगवान एक ही हैं। यह दर्शन हमें बताता है कि आत्मा का अनुभव और परमात्मा का अनुभव एक ही हैं, और यही सत्य है।

--संकलन
--अतुल परब
--दिनांक-18.12.2024-बुधवार.
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