श्रीविठोबा और संत ज्ञानेश्वर का तत्त्वज्ञान-2

Started by Atul Kaviraje, December 18, 2024, 11:02:59 PM

Previous topic - Next topic

Atul Kaviraje

श्रीविठोबा और संत ज्ञानेश्वर का तत्त्वज्ञान-
(Lord Vitthal and the Philosophy of Sant Dnyaneshwar)

योग और भक्ति का संगम
संत ज्ञानेश्वर के तत्त्वज्ञान में भक्ति और योग का अद्भुत संयोजन था। उन्होंने यह बताया कि भक्ति के साथ-साथ योग का अभ्यास भी आवश्यक है। योग के माध्यम से हम अपने मानसिक और शारीरिक समन्वय को बेहतर बना सकते हैं, और भक्ति के माध्यम से आत्मा का परिष्करण और परमात्मा के साथ एकता का अनुभव कर सकते हैं।

सामाजिक समता
संत ज्ञानेश्वर ने समाज में व्याप्त ऊँच-नीच, जातिवाद, और असमानताओं के खिलाफ विरोध किया। उनका मानना था कि सभी मनुष्य समान हैं, और समाज में भेदभाव के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए। वे कहते थे:

"जो भगवान में विश्वास रखता है, वह जाति या वर्ग से परे है, और उसकी भक्ति ही सबसे बड़ी है."

विठोबा और ज्ञानेश्वर के तत्त्वज्ञान में समानताएँ
विठोबा और संत ज्ञानेश्वर के तत्त्वज्ञान में कई समानताएँ पाई जाती हैं। दोनों ही संतों ने जीवन के सर्वोत्तम मार्ग के रूप में भक्ति और प्रेम का मार्ग दिखाया। उनके अनुसार, समाज में समानता, मानवता और आत्मज्ञान के माध्यम से व्यक्ति को परमात्मा तक पहुँचा जा सकता है।

भक्ति का महत्व
दोनों ही संतों ने भक्ति को सर्वोच्च स्थान दिया। वे मानते थे कि किसी भी व्यक्ति को ईश्वर के प्रति श्रद्धा और प्रेम के साथ समर्पित होना चाहिए। भक्ति और साधना ही आत्मा के उद्धार का मुख्य मार्ग है।

सामाजिक समानता
दोनों ने समाज में जातिवाद, भेदभाव और ऊँच-नीच के विरुद्ध संघर्ष किया। उन्होंने यह सिखाया कि सब मनुष्य समान हैं और भगवान की भक्ति में कोई भेद नहीं होता।

आध्यात्मिक मार्गदर्शन
दोनों ही संतों ने आत्मज्ञान और आत्मा के सच्चे स्वरूप का बोध कराने की दिशा में मार्गदर्शन दिया। संत ज्ञानेश्वर ने अपनी ज्ञानेश्वरी में भगवान के साथ आत्मा के मिलन की बात की, वहीं श्रीविठोबा ने अपने दर्शन में यही संदेश दिया कि भक्ति के माध्यम से ही आत्मा का उद्धार संभव है।

उदाहरण
संत ज्ञानेश्वर के तत्त्वज्ञान का एक उदाहरण यह है कि उन्होंने अपने ग्रंथ ज्ञानेश्वरी में भगवद गीता का सुगम और सरल अर्थ दिया, ताकि सामान्य व्यक्ति भी उसे समझ सके। उनका यह कार्य समाज को सही दिशा दिखाने वाला था, क्योंकि उन्होंने भक्ति और ज्ञान के बीच संतुलन बनाने का प्रयास किया।

इसी तरह, श्रीविठोबा के जीवन के कई उदाहरण हैं, जहाँ उन्होंने भक्ति के महत्व को स्पष्ट किया। विठोबा के बारे में प्रसिद्ध है कि वे पंढरपूर में अपने भक्तों के बीच साक्षात प्रकट हुए और उनके दुखों का निवारण किया। यह दिखाता है कि भक्ति के माध्यम से श्रीविठोबा ने अपने भक्तों की आध्यात्मिक और भौतिक परेशानियों का समाधान किया।

निष्कर्ष
श्रीविठोबा और संत ज्ञानेश्वर का तत्त्वज्ञान केवल धार्मिक दृष्टिकोण से ही नहीं, बल्कि जीवन को सच्चे अर्थों में जीने के दृष्टिकोण से भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है। इन दोनों संतों ने भक्ति, प्रेम, और समाज में समानता की महत्वपूर्ण शिक्षाएँ दी। उनका तत्त्वज्ञान हमें यह सिखाता है कि ईश्वर के प्रति श्रद्धा, समाज में समानता और आत्मज्ञान की प्राप्ति ही जीवन का सर्वोत्तम मार्ग है। इन शिक्षाओं का अनुसरण करके हम न केवल अपने आत्मिक उन्नति की ओर अग्रसर हो सकते हैं, बल्कि समाज में शांति और समरसता की स्थापना में भी योगदान कर सकते हैं।

--संकलन
--अतुल परब
--दिनांक-18.12.2024-बुधवार.
===========================================