"एक शांत झील पर सुबह की धुंध"

Started by Atul Kaviraje, December 20, 2024, 09:06:39 AM

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Atul Kaviraje

सुप्रभात, शुक्रवार मुबारक हो

"एक शांत झील पर सुबह की धुंध"

सुबह का सूरज धीरे-धीरे चमकता है,
झील के पानी में उसकी किरणें बिखरता है।
पर, उस पानी पर जो लहरें नहीं उठतीं,
उनके ऊपर एक धुंध की चादर फैल जाती है।

मुलायम और ठंडी, जैसे किसी ने चुपके से,
झील पर धुंध का एक शॉल ओढ़ा दिया हो।
वो धुंध, एक जादुई पर्दा, जो सब कुछ छुपा लेती है,
बस, शांत पानी की छांव में कुछ ढूँढती रहती है।

झील की गहरी खामोशी, जैसे कुछ नहीं बदला,
हर चीज़ स्थिर, समय भी जैसे ठहर सा गया।
सूरज की किरणें अब भी उसे छूने की कोशिश करतीं,
लेकिन धुंध के बीच में हर इशारा खो जाता है।

हर पेड़ की छाया, धुंध में घुली हुई,
सारंगी की तरह, शांति का संगीत गाती है।
पानी की सतह पर वो हल्की सी लहरें,
जो दूर से दिखतीं, जैसे आकाश और पृथ्वी का संवाद।

सन्नाटे की गहराई में, धुंध सटीक बैठी है,
किसी अदृश्य हाथ से हर चिठ्ठी लिखी जाती है।
चिड़ियों की चहचहाहट धीमी-धीमी सुनाई देती है,
मानो वे भी इस शांति में खुद को खो देती हैं।

धुंध के परे, कुछ ना कुछ नया सा है,
झील में फिर एक नई शुरुआत का वादा है।
चमकते सूरज की पहली किरणें अब धीरे से
धुंध के बीच एक नृत्य कर के निकल आती हैं।

वह धुंध, एक गुप्त सी कहानी बयां करती है,
जो कुछ नहीं कहती, पर सब कुछ समझाती है।
झील की शांत गोदी में अब हर चीज़ समाई है,
सूरज की किरणें और धुंध की छांव मिलाई है।

यह एक लम्हा है, जो हमें सिखाता है,
शांति के बीच ही असल अर्थ पाते हैं हम।
झील की धुंध और सूरज का मिलन,
दुनिया को फिर से एक उम्मीद दिखलाता है।

एक शांत झील पर सुबह की धुंध,
बस यही जीवन का असली रूप है,
हर दिन का नया सूर्योदय,
एक अनकहा सच हमें जीवन में दिखलाता है।

--अतुल परब
--दिनांक-20.12.2024-शुक्रवार.
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