"सूर्यास्त के समय धुंधले पहाड़"

Started by Atul Kaviraje, December 21, 2024, 09:12:00 PM

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Atul Kaviraje

शुभ संध्या, शनिवार मुबारक हो

"सूर्यास्त के समय धुंधले पहाड़"

सूर्य की किरणें जब ढलने लगती हैं,
रंगों का अद्भुत नृत्य धरती पर बिखरता है।
सागर के किनारे, पर्वत की चोटी,
सभी के बीच एक अनोखी शांति का अनुभव होता है।

सूरज जब अपने सफर को समाप्त करता है,
और धुंधलके में ढलते पहाड़ का दृश्य अद्भुत होता है,
यह दृश्य न केवल आँखों को भाता है,
बल्कि दिल को भी एक ठंडक और सुकून प्रदान करता है।

यह पहाड़, जो कभी ऊँचे और महान थे,
अब धीरे-धीरे अपनी ऊँचाई खोने लगते हैं।
सूर्यास्त की रौशनी में उनकी परछाई गहरी हो जाती है,
और एक चुप्प सी पसर जाती है, जैसे वे भी अपनी थकान छिपा रहे हों।

कुछ समय पहले ये पहाड़ अपनी चोटी पर गर्व से खड़े थे,
अब उनकी मूकता में एक अदृश्य दर्द छिपा है।
वे जानते हैं कि सूर्य का अस्त होना,
हर दिन की समाप्ति नहीं, बल्कि एक नई शुरुआत है।

यह धुंधला परिदृश्य, जीवन की रहस्यात्मकता को उजागर करता है,
जैसे हर एक समाप्ति के साथ, कुछ नया जन्मता है।
हमारे जीवन के साथ भी यही होता है,
जैसे सूर्यास्त के समय धुंधले पहाड़, फिर एक नए दिन का स्वागत करते हैं।

शायद इस समय में पहाड़ों की खामोशी भी हमें कुछ सिखाती है,
कि जब कोई चीज़ समाप्त होती है, तो हम उसे शांतिपूर्वक स्वीकार करें।
हमारे जीवन में भी कई सूर्योदय और सूर्यास्त आते हैं,
हर पल में एक नया रंग और अर्थ छिपा होता है।

सूर्यास्त के समय जब धुंधले पहाड़ चुपचाप खड़े होते हैं,
हमारे भीतर की आवाज़ें भी शांत हो जाती हैं।
यह क्षण हमें खुद से जुड़ने का अवसर देता है,
और यह समझने का कि हर दिन के अंत में एक नया आरंभ छिपा है।

तो, जैसे पहाड़ अपने धुंधले रूप में शांत रहते हैं,
हम भी अपने जीवन के हर उतार-चढ़ाव को समझने का प्रयास करें।
सूर्यास्त के समय धुंधले पहाड़ों का दृश्य,
हमें यह सिखाता है कि जीवन में हर समाप्ति के बाद, एक नई राह होती है।

यह कविता सूर्यास्त और धुंधले पहाड़ों के दृश्य के माध्यम से जीवन की गहरी सच्चाई को दर्शाती है, जिसमें हर अंत के बाद एक नया आरंभ होता है, और हमें इसे शांति और समर्पण के साथ स्वीकार करना चाहिए।

--अतुल परब
--दिनांक-21.12.2024-शनिवार.
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