पारंपरिक कला और उसका संरक्षण-2

Started by Atul Kaviraje, December 21, 2024, 10:11:34 PM

Previous topic - Next topic

Atul Kaviraje

पारंपरिक कला और उसका संरक्षण-

पारंपरिक कला का संरक्षण

पारंपरिक कला का संरक्षण केवल सांस्कृतिक दृष्टिकोण से ही नहीं, बल्कि इसके आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक लाभों को ध्यान में रखते हुए भी जरूरी है। समय के साथ पारंपरिक कला रूपों में बदलाव आया है, और अनेक पारंपरिक कला रूप लुप्त हो गए हैं। इसलिए, उनका संरक्षण अत्यंत आवश्यक हो गया है।

शैक्षिक कार्यक्रम और संस्थाएँ: पारंपरिक कला रूपों के संरक्षण के लिए कई शैक्षिक कार्यक्रम और संस्थाएँ काम कर रही हैं। कला शिक्षण संस्थान, नृत्य विद्यालय, संगीत अकादमी, और कला म्यूज़ियम इन कलाओं के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

उदाहरण: 'संगीत नाटक अकादमी', 'भारत भवन', 'राष्ट्रीय शिल्प मेला', और 'अखिल भारतीय कला परिषद' जैसी संस्थाएँ पारंपरिक कला के संरक्षण और प्रचार के लिए कार्यरत हैं। ये संस्थाएँ कलाकारों को मंच प्रदान करती हैं और समाज में कला के महत्व को बढ़ावा देती हैं।

संवर्धन और प्रचार: पारंपरिक कला का संरक्षण केवल उसे बचाने तक सीमित नहीं है, बल्कि उसे नए रूप में प्रस्तुत करना और उसका प्रचार भी आवश्यक है। मीडिया, फिल्म उद्योग, और ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म पर पारंपरिक कला का प्रचार करने से इसकी पहुँच और लोकप्रियता बढ़ाई जा सकती है।

उदाहरण: 'नृत्यशाला', 'गायन महोत्सव', 'हस्तशिल्प मेले', और 'आर्ट फेस्टिवल' जैसी गतिविधियाँ पारंपरिक कला रूपों के प्रचार का महत्वपूर्ण माध्यम हैं। यह कलाकारों को एक बड़ा मंच प्रदान करती हैं और पारंपरिक कला को नई पीढ़ी तक पहुँचाती हैं।

स्थानीय कला और शिल्प का प्रोत्साहन: पारंपरिक कला और शिल्प को संरक्षित करने के लिए उन कलाकारों को प्रोत्साहित करना आवश्यक है, जो इन कलाओं को जीवित रखते हैं। सरकार और गैर सरकारी संगठन विभिन्न योजनाओं के माध्यम से इन कलाकारों की मदद कर सकते हैं।

उदाहरण: 'कला उन्नति योजना' और 'राष्ट्रीय शिल्प मेला' जैसी पहलें शिल्पकारों और पारंपरिक कारीगरों को वित्तीय सहायता और प्रोत्साहन प्रदान करती हैं। यह उन्हें अपनी कला को संरक्षित और बढ़ावा देने के लिए प्रेरित करती हैं।

प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण: पारंपरिक कला में अक्सर प्राकृतिक संसाधनों जैसे मिट्टी, लकड़ी, रेशम, बांस, और हाथ से बनी वस्त्रों का उपयोग होता है। इन संसाधनों का संरक्षण और सतत उपयोग पारंपरिक कला के संरक्षण के लिए अत्यंत आवश्यक है।

उदाहरण: भारतीय हस्तशिल्प, जैसे 'बनारसी साड़ी', 'कांथा कढ़ाई', 'कश्मीर के शॉल', और 'पंजाबी पटियाला सुथनी' जैसे पारंपरिक शिल्पों का संरक्षण प्राकृतिक संसाधनों के सतत उपयोग पर निर्भर करता है।

निष्कर्ष
पारंपरिक कला हमारी सांस्कृतिक धरोहर का अहम हिस्सा है, और इसका संरक्षण हमारे समाज और संस्कृति के लिए अत्यधिक आवश्यक है। यदि हम पारंपरिक कला के संरक्षण पर ध्यान देंगे, तो यह न केवल हमारी पहचान बनाए रखने में मदद करेगा, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी अपनी संस्कृति से जोड़ने का कार्य करेगा। हमें यह समझने की जरूरत है कि पारंपरिक कला केवल एक कला रूप नहीं है, बल्कि यह हमारे अतीत, वर्तमान और भविष्य का एक अनमोल हिस्सा है। इसलिए, हमें इसे संरक्षित करने के लिए सक्रिय प्रयास करने चाहिए, ताकि यह आने वाली पीढ़ियों के लिए भी जीवित और प्रासंगिक बने रह सके।

--संकलन
--अतुल परब
--दिनांक-21.12.2024-शनिवार.
===========================================