"घास पर ओस के साथ एक शांत खेत"

Started by Atul Kaviraje, December 26, 2024, 09:29:37 AM

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Atul Kaviraje

सुप्रभात, शुभ गुरुवार मुबारक हो

"घास पर ओस के साथ एक शांत खेत"

सुबह की पहली किरण छूने चली आई,
घास की पत्तियों पर ओस की बूँदें बसी आई।
शांति का एक अहसास फैला हुआ है आस-पास,
जैसे समय भी थम जाए, ठहर जाए हर एक सांस।

धरती की गोदी में हर पत्ता निखरता,
ओस की बूँदों में जैसे हर रंग बिखरता।
वह हल्की सी चमक, वो स्वर्णिम रेखा,
मानो सुबह का हर पल हो एक गहरी कविता।

आकाश में हलका सा नीला रंग बसा,
सूरज की किरने ने धरती को धीरे-धीरे गले लगा।
गवाक्ष पर हर बूँद, जैसे एक मोती हो,
जो सूरज की रोशनी में चमकते हुए खो जाए।

शांत खेत में कहीं दूर बकरियों की बकरीली आवाज़,
पशुओं की हलचल में भी है एक गूढ़ साज।
जैसे इस विशाल ब्रह्मांड में कुछ नहीं है फालतू,
हर एक चीज़ अपने स्थान पर, जैसे हर कोई हो पूरा।

ओस के नन्हे मोती घास पर बिखरे हुए,
और खेत की मिट्टी की महक, मन को सुकून दे रहे।
हर एक ध्वनि में समाई शांति की सरगम,
धरती के दिल की धड़कन, है यह स्वाभाविक संगम।

दूर से आती हलकी सी हवा की बयार,
सुरम्य आनंद की यह बयार भी हो रही तैयार।
आकाश में उड़ते पक्षी गा रहे गीत,
इनकी धुन में घुली है सुकून की लय, अपूर्वीत।

जितनी देर ठहरे रहते हैं सूरज की किरणें,
उतना ही खेत में एक नया रूप चुराते हैं वे।
चाँद भी गूढ़ नज़र से खेत को निहारता,
हर ओस की बूँद को अपनी छांव में सवारता।

जहां देखो वहाँ हरियाली ही हरियाली बसी,
हर पत्ता, हर शाखा, जैसे जीवन की सवारी हो सजी।
ओस की बूँदों में जैसे प्रेम की कोई कहानी हो,
सपनों में बसी हो एक सुरीली नज्म की कोई रवानी हो।

चिड़ियों के गीतों में बसी शांति की मिठास,
आकाश में उड़ते हुए फूलों का रंगीन एहसास।
घास पर ओस की हल्की सी चमक,
और एक शांत खेत में हर कोई अपने में रमक।

यह शांति का पथ है, हर सांस को नयी ताकत देती,
ओस की बूँदें, जैसे खुशियों की छांव सी मिलती।
धरती और आकाश का मेल हुआ,
शांति के समुद्र में हर जख्म भर चुका।

और मैं बैठा, बस इस शांत खेत में,
सूरज के हलके स्पर्श को महसूस करता हूँ स्नेह में।
हर बूँद, हर पत्ता, हर छोटी-सी सांस,
यह खेत, यह ओस, है जैसे कोई अनुपम रचना, एक खूबसूरत आस।

--अतुल परब
--दिनांक-26.12.2024-गुरुवार.
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