सूर्य देव का ‘सप्ताश्वरूप’ और उसका महत्व –1

Started by Atul Kaviraje, December 29, 2024, 10:53:15 PM

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Atul Kaviraje

सूर्य देव का 'सप्ताश्वरूप' और उसका महत्व – एक भक्ति भावपूर्ण विवेचनात्मक लेख-

परिचय:

हिंदू धर्म में सूर्य देव को जीवनदाता, शक्ति और प्रकाश के स्रोत के रूप में पूजा जाता है। उनका उल्लेख वेदों, पुराणों और शास्त्रों में अत्यधिक श्रद्धा और सम्मान के साथ किया गया है। सूर्य को देवों का राजा माना जाता है और उनकी उपासना से व्यक्ति का शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य उत्तम रहता है। सूर्य देव के सात रूपों का विशेष महत्व है, जिन्हें 'सप्ताश्वरूप' कहा जाता है। इन सात रूपों की पूजा से व्यक्ति जीवन में हर प्रकार के संकटों से उबर सकता है और उसे सुख, शांति एवं समृद्धि की प्राप्ति हो सकती है।

सप्ताश्वरूप की परिभाषा:

'सप्ताश्वरूप' शब्द का अर्थ है सूर्य के सात रूप, जिनका प्रत्येक रूप जीवन के विभिन्न पहलुओं से संबंधित है। ये सात रूप सूर्य के विभिन्न स्वरूप हैं, जिनकी उपासना करने से व्यक्ति को विभिन्न लाभ प्राप्त होते हैं। प्रत्येक रूप का अपना विशिष्ट महत्व और लाभ है, जो न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक विकास में सहायक होते हैं।

सप्ताश्वरूप के सात रूप और उनका महत्व:
मध्यमरूप (Madhyamarupa): सूर्य देव का यह रूप सूर्य के मध्यभाग से संबंधित है। इस रूप में सूर्य की किरणें सर्वप्रथम पृथ्वी पर पड़ती हैं। यह रूप विशेष रूप से शारीरिक स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होता है। इसे मानसिक शांति और ऊर्जा का स्रोत माना जाता है। इसके पूजन से शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार की शांति प्राप्त होती है।

उदाहरण: जैसे सुबह का सूरज हमें ऊर्जा और ताजगी का अहसास कराता है, उसी तरह मध्यमरूप सूर्य मानसिक थकान को दूर करता है और आत्मविश्वास बढ़ाता है।

पूर्वरूप (Purvarupa): यह सूर्य का उगता हुआ रूप है, जो नए आरंभ और नवीनीकरण का प्रतीक है। पूर्व दिशा का सूर्य जीवन में नई शुरुआत और आशा का संदेश देता है। इसे अज्ञानता से ज्ञान की ओर, अंधकार से प्रकाश की ओर जाने का मार्गदर्शक माना जाता है।

उदाहरण: जैसे सूर्योदय नए दिन की शुरुआत करता है, वैसे ही यह रूप व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने का कार्य करता है।

पश्चिमरूप (Pashchimrupa): सूर्य का अस्त होते समय यह रूप प्रकट होता है। यह सूर्य का वह रूप है जो परिपूर्णता और संन्यास का प्रतीक है। पश्चिम दिशा का सूर्य जीवन के समाप्ति और आत्मविश्लेषण की ओर इशारा करता है। यह रूप व्यक्ति को आत्म-संयम और समर्पण का मार्ग दिखाता है।

उदाहरण: सूर्यास्त के समय व्यक्ति अपने पूरे दिन के कार्यों का आकलन करता है और मानसिक शांति प्राप्त करता है। इसी प्रकार, पश्चिमरूप सूर्य हमारे जीवन में आत्मविश्लेषण और सुधार का संदेश देता है।

उत्तररूप (Uttararupa): उत्तररूप सूर्य का वह रूप है जो आकाश में उच्चतम स्थान पर होता है। यह रूप आध्यात्मिक उन्नति, समृद्धि और शक्ति का प्रतीक है। इसे उन्नति और आत्मनिर्भरता के रूप में पूजा जाता है। इस रूप की उपासना से व्यक्ति में आंतरिक बल और जीवन की दिशा को समझने की क्षमता आती है।

उदाहरण: जैसे उत्तर दिशा में जाने के लिए व्यक्ति को शिखर तक पहुंचना होता है, वैसे ही उत्तररूप सूर्य हमारे जीवन को उच्चतम लक्ष्य की ओर अग्रसर करता है।

दक्षिणरूप (Dakshinrupa): यह सूर्य का उग्र रूप है, जो गर्मी और ऊर्जा का प्रतीक है। यह रूप शारीरिक और मानसिक शक्ति को बढ़ाने का कार्य करता है। दक्षिणरूप सूर्य के पूजन से व्यक्ति की इच्छाशक्ति मजबूत होती है और वह अपने कार्यों में सफलता प्राप्त करता है।

उदाहरण: जैसे गर्मी में शरीर के अंदर ऊर्जा का संचार होता है, वैसे ही यह रूप जीवन में शक्ति और उत्साह का संचार करता है।

--संकलन
--अतुल परब
--दिनांक-29.12.2024-रविवार.
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