भारतीय काव्यशास्त्र: इसका विकास –1

Started by Atul Kaviraje, December 30, 2024, 10:41:48 PM

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Atul Kaviraje

भारतीय काव्यशास्त्र: इसका विकास – उदाहरण सहित विस्तृत विवेचन-

भारतीय काव्यशास्त्र भारतीय साहित्य का एक अत्यंत महत्वपूर्ण और समृद्ध हिस्सा है। यह काव्य के गुण, उसकी रचनात्मकता, उसकी उद्देश्यपूर्णता और उसके प्रभावों का अध्ययन करता है। भारतीय काव्यशास्त्र के विकास में प्राचीन से लेकर आधुनिक समय तक विविध दृष्टिकोण और सिद्धांत जुड़ते गए हैं। यह शास्त्र न केवल काव्य की प्रकृति और उसके अंगों का विवेचन करता है, बल्कि यह भी बताता है कि काव्य समाज और संस्कृति में किस प्रकार की भूमिका निभाता है।

भारतीय काव्यशास्त्र का प्रारंभ और विकास
भारतीय काव्यशास्त्र की नींव प्राचीन भारत में रखी गई थी। काव्यशास्त्र का प्रचलन सबसे पहले वेदों में हुआ, जहां मंत्रों और गाथाओं के माध्यम से काव्य का प्रचार हुआ। बाद में इस शास्त्र का विस्तार हुआ और विभिन्न काव्यरचनाओं और काव्यगुणों पर विचार किया गया।

1. वेदों में काव्यशास्त्र का आरंभ:
भारतीय काव्यशास्त्र की सबसे प्राचीन शुरुआत वेदों से हुई। वेदों में काव्य का महत्व बहुत अधिक था, विशेष रूप से ऋग्वेद, जिसमें मंत्रों का गायन और उच्चारण काव्यशास्त्र के रूप में माना जाता था। वेदों के मंत्रों में ध्वनि, लय और संगति का विशेष ध्यान रखा गया। उदाहरण के तौर पर, ऋग्वेद के मंत्र जैसे "ॐ हिरण्यं यनिशं यः" में काव्य की लय और स्वरों की विशिष्टता को महसूस किया जा सकता है।

2. नाट्यशास्त्र और रस सिद्धांत:
काव्यशास्त्र के विकास में एक महत्वपूर्ण कदम भारत मुनि के नाट्यशास्त्र से जुड़ा हुआ है। नाट्यशास्त्र में काव्य, अभिनय, नृत्य और संगीत के एकत्रित रूप का वर्णन किया गया है। इसके अलावा, नाट्यशास्त्र में रस का सिद्धांत भी दिया गया, जो भारतीय काव्यशास्त्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। रस का मतलब होता है वह भावनात्मक अनुभव, जिसे काव्य के माध्यम से पाठक या श्रोता अनुभव करता है।

रस के आठ प्रकार बताए गए:

श्रृंगार रस (प्रेम),
वीर रस (साहस),
करुण रस (दुःख),
हास्य रस (हंसी),
रौद्र रस (क्रोध),
भयानक रस (भय),
अद्भुत रस (विचित्रता),
शांत रस (शांति)।

उदाहरण के तौर पर, एक शृंगार रस की कविता जैसे: "तेरे बिना जीना मुश्किल है, तेरी यादों में खो जाना है, तेरी आँखों की नमी को, अपने दिल में समाना है।"

इस कविता में प्रेम और संवेदनशीलता की भावना स्पष्ट रूप से व्यक्त की गई है, जो श्रृंगार रस का आदान-प्रदान करती है।

--संकलन
--अतुल परब
--दिनांक-30.12.2024-सोमवार.
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