टेलीविजन और समाज पर इसका प्रभाव-2

Started by Atul Kaviraje, January 01, 2025, 12:08:52 AM

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Atul Kaviraje

टेलीविजन और समाज पर इसका प्रभाव-

सामाजिक अलगाव: जबकि टेलीविजन ने परिवारों को एकजुट करने का कार्य किया है, वहीं दूसरी ओर यह परिवारों में सामाजिक अलगाव भी उत्पन्न कर सकता है। जब लोग अधिकतर समय टेलीविजन के सामने बिताते हैं, तो वे एक-दूसरे से मानसिक रूप से दूर हो जाते हैं। यह परिवारों में आपसी संवाद की कमी को जन्म देता है, जिससे रिश्ते कमजोर हो सकते हैं।

उदाहरण: लॉकडाउन के दौरान, जहां टेलीविजन ने लोगों को मानसिक रूप से व्यस्त रखा, वहीं यह भी देखा गया कि परिवारों में आपसी संवाद की कमी हो गई, और लोग ज्यादा समय टेलीविजन या मोबाइल स्क्रीन पर बिता रहे थे।

विज्ञापन और उपभोक्तावाद: टेलीविजन पर विज्ञापन का प्रभाव बहुत गहरा होता है। विशेष रूप से बच्चों और युवाओं के लिए आकर्षक विज्ञापनों ने उपभोक्तावाद को बढ़ावा दिया है। ये विज्ञापन किसी उत्पाद को खरीदने के लिए लोगों को प्रेरित करते हैं, जबकि कई बार यह उत्पाद उनकी जरूरतों से मेल नहीं खाते। इससे एक उपभोक्ता समाज विकसित हो रहा है जो अनावश्यक वस्त्रों और सेवाओं का अधिक से अधिक उपयोग करता है।

उदाहरण: विभिन्न शैम्पू, क्रीम, फास्ट फूड और उत्पादों के विज्ञापन, जो युवाओं और महिलाओं को उन्हें अपनाने के लिए प्रेरित करते हैं, और वे इस पर अत्यधिक खर्च करने लगते हैं।

टेलीविजन के प्रभाव को संतुलित करना:

टेलीविजन के प्रभाव को सकारात्मक दिशा में ले जाने के लिए कुछ उपाय किए जा सकते हैं:

समीक्षात्मक और रचनात्मक कार्यक्रमों का प्रसार:
टेलीविजन चैनल्स को समाज के लिए रचनात्मक और शैक्षिक कार्यक्रमों का प्रसारण करना चाहिए। इसके साथ ही बच्चों के लिए भी सुरक्षित और प्रेरणादायक कार्यक्रमों की आवश्यकता है।

निगरानी और विनियमन:
सरकार को टेलीविजन पर प्रसारित कार्यक्रमों की निगरानी और विनियमन करने की आवश्यकता है, ताकि समाज पर नकारात्मक प्रभाव डालने वाले कार्यक्रमों को रोका जा सके।

परिवारों में संवाद को प्रोत्साहित करना:
टेलीविजन के प्रभाव से परिवारों में संवाद बढ़ाने के लिए, परिवारों को एक साथ बैठकर टेलीविजन कार्यक्रमों पर चर्चा करने के लिए प्रेरित करना चाहिए।

निष्कर्ष:

टेलीविजन का समाज पर गहरा और व्यापक प्रभाव पड़ा है। जहां यह समाज में जागरूकता, शिक्षा और मनोरंजन का प्रमुख साधन बना है, वहीं इसके कुछ नकारात्मक पहलू भी हैं। यह हमारे जीवन का अहम हिस्सा बन चुका है और इसे सही दिशा में प्रयोग किया जाए तो यह समाज की बेहतरी में सहायक बन सकता है। इसके माध्यम से समाज में जागरूकता, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और शिक्षा का प्रसार करना संभव है, बशर्ते इसका संतुलित उपयोग किया जाए।

--संकलन
--अतुल परब
--दिनांक-31.12.2024-मंगळवार.
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